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Reservation politics | आरक्षण नामा

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aarakshan nama आरक्षण की राजनीति एक बार फिर शुरू हो गई है. जहाँ सही गलत का कोई अर्थ नहीं है. यहाँ सिर्फ राजनैतिक नफा-नुकसान का खेल चल रहा है.हमारे राजनैतिक दलों ने अपना आधार जातीय और धार्मिक समीकरणों पर खड़ा कर रखा है. ऐसे में इनसे किसी नेक नियति की उम्मीद करना बेमानी होगी. अंग्रेजों की बांटों और राज करो की नीति आज भी उतनी कारगर है और हमारे राजनैतिक दल इसका पूरा अनुसरण कर रहें हैं. इनका मकसद सिर्फ सत्ता पाना है और अपने वोट बैंक को बनाए रखना है. हम राजनैतिक दलों और व्यक्तियों की गुंडागर्दी भी इसी अर्थ देख और समझ सकते हैं. जहाँ राजनीति एक व्यवसाय बन गयी है और व्यवसाय चलाने के सारे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं.        आज भी अनुसूचित जातियों और जनजातियों की जो सामाजिक,आर्थिक स्थिति है, वह किसी भी प्रगतिशील समाज के लिए शर्मनाक है. अब भी किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति को शहरों में भी  आसानी से कमरा नहीं मिल पाता और जिस तरह के जातीय पूर्वाग्रह से पढ़ा-लिखा वर्ग भी ग्रसित है, वह वास्तव में शिक्षित होने का अर्थ ही खो देता है. गावों की तो बात ही छोडिए. अभी हमारे एक मित्र जो कि अनुसूचित जाति से सम्