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Showing posts from January, 2020

To intellectuals

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आदरणीय बुद्धिजीवियों,        निश्चित रूप से आप एक बड़ी brand हैं (क्योंकि बुद्धिजीवी महिला है)  और आपको लगता है कि आप जितना कह रही हैं उतना ही सही है और बड़ा नाम होने का यही फायदा है कि आपकी किताब और लेख आसानी से बिकता रहता है और बकवास करने पर ज्यादा popular होता है। आपके ऐसे गुणों से सम्पन्न होने की वजह से मीडिया कवरेज की  guarantee तो हो ही जाती है। अभी इनका random साक्षात्कार किसी news channel पर देख रहा था। इसके बाद psephologist आदरणीय महानुभाव जी का भारतीय परंपरा वाला quote जो स्वामी विवेकानंद जी का का उद्धरण था। आपकी बेहतरीन बातें सच में सपनों के सच होने का यकीन पैदा करती हैं। पर आप लोगों की वैचारिक परम्परा से हमारे समाज में क्या वास्तव में कोई बदलाव आया, हम आज तक अपना समाजवाद क्यों नहीं ढूँढ़ पाए और सोचिये भारत जैसे जटिल सामाजिक ताने-बाने में उधार का विचार कब तक सांसे ले सकता है। उसका दम धीरे धीरे घुट रहा है, इस बात को स्वीकार कर लीजिए। हमारे यहाँ का वामपंथी समाजवाद हकीकत से न जाने कितना दूर है और वह किताबों, मीडिया और चंद लोगों के बीच सिमट कर रह गया है, जहाँ सर्वहारा के लिए

Shahinbagh

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शाहीनबाग  सही-गलत किसी कोने में छोड़ देते हैं, सलाम इस जज्बे को जो खुद के होने का यकीन दिलाता है। मैं सही-गलत नहीं, इस जज्बे के साथ हूँ। जो आवाज उठाना, खड़ा होना, सिखाता है क्योंकि जिंदगी में शुरूआत ही सबसे कठिन होती है और जब  कोई लड़ना सीख लेता है तो उसे कोई और सही-गलत, बहुत दिन तक, नहीं समझा सकता।   धीरे-धीरे वह-सही क्या है?    वह यह भी जानने लग जाता है।     ऐसे ही उसमें समझने और ढूंढने की एक आदत आ जाती है और तब सोचिये.. यह आदत उसे कहाँ तक ले जाएगी... .?? ..    अब एक दूसरा पहलू भी देखते हैं कि सच में यह सब कुछ प्रायोजित न हो बल्कि हमारी महिलाओं ने अगर हक, स्वतंत्रता, समानता अधिकार, संविधान जैसे शब्दों का अर्थ समझ लिया तो क्या होगा? वैसे कर्तव्य वाला जो शब्द है, उसके अर्थ का ज्ञान हमें हमारी महिलाओं को देखकर ही होता है क्योंकि उनके पास इस कर्तव्य के विरासत को संजोने की जिम्मेदारी जन्म लेते ही मिल जाती है और वह इस बोध और दायित्व को अपने जीवन का हिस्सा बना लेती है। आमतौर पर वह किसी भी समाज में अधिकार की मांग नहीं करती या हम यूँ कहें उसे मांगने का कभी अधिकार नहीं दिया गया औ