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human rights

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हम महान मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विचारकों के बीच रह रहें हैं | जो मीडिया में बने रहने कि खूबी से युक्त हैं और बड़ी आसानी से अपने आपको बिना कुछ किए ही चर्चा में बनाए रखते हैं | इसको हम २००९ के नोबेल शांति पुरस्कारों से समझ सकते है | जहाँ ओबामा को यह पुरस्कार इसलिए दिया गया कि उन्होंने दुनिया में अपने भाषणों से एक उम्मीद जगाई | पर किया क्या किसी को पता नहीं |                          किसी भी देश को जिसे हम आज देख रहें हैं , वह अतीत में हुए अनेकों विध्वंशों, अच्छाइयों और बुराइयों का परिणाम है | किसी भी सामाजिक , राजनितिक ढांचे को एक देश बनाने के लिए वहां के नागरिकों को अपने व्यक्तिगत दुराग्रहों को छोड़ना पड़ता है | जो क्षेत्र,धर्म,भाषा,जाति आदि पर आधारित होते हैं, वह भी किसी महान कुर्बानी के भाव से नहीं छोड़ा जाता बल्कि खुद को अधिक ताकतवर,सुरक्षित और सक्षम बनाने के लिए किया जाता है ,यह एक तरह का समझदारी भरा स्वार्थ है, खास तौर पर भारत के सन्दर्भ में | हम अपनी तुलना अमेरिकी या यूरोपीय देशों से नहीं कर सकते जहाँ कि आबादी हमारे एक जिले से भी काम हो और न ही जाति धर्म, भाषा या फिर भौगोलिक आध

हमें जीने दो

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महसूस करने के लिए मनुष्य होना जरूरी नहीं है. क्योंकि संवेदनाएं सिर्फ मानव जाति की धरोहर नहीं होती. जो अपनी और अपनों की फ़िक्र में दिन रात लगी रहती हैं. हमारी ब्यक्त करने की क्षमता ही हमें अन्य प्राणियों से अलग करती है |                                              यह घटना एक दिन दोपहर की है,मै अलसाया हुआ पड़ा था, तभी अचानक एक  तेज आवाज़ हुई , मै चौक कर बहार निकला तो देखा कि बिजली के तारों में एक कौवा चिपका हुआ है | इसी वजह से यह सार्ट सर्किट हुआ था.वहीँ एक दूसरा कौवा उसके ऊपर मडरा रहा है ,लेकिन वह अपने आपको अपने साथी से ज्यादा देर तक दूर नहीं रख पाया और मै कुछ समझ पता कि वह भी प्रशासन कि तरह लचर और ढीले पड़े तारों में उलझ गया | ऐसा होते-होते अगले दिन सुबह तक पांच कौवे अपनी जान गवां बैठे, तीन ऊपर तारों में लटके रहे और दो जमीन पर पड़े थे |  कौवे अब भी अपने साथियों कि खोज खबर लेने आ रहे हैं और ऐसे में हमारी इश्वर से यही कामना है कि ए जिस वक्त जहाँ भी अपने लोगों के साथ ऐसे ढीले तारों पर बैठें , उस वक्त बिजली न हो |