human rights


हम महान मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विचारकों के बीच रह रहें हैं | जो मीडिया में बने रहने कि खूबी से युक्त हैं और बड़ी आसानी से अपने आपको बिना कुछ किए ही चर्चा में बनाए रखते हैं | इसको हम २००९ के नोबेल शांति पुरस्कारों से समझ सकते है | जहाँ ओबामा को यह पुरस्कार इसलिए दिया गया कि उन्होंने दुनिया में अपने भाषणों से एक उम्मीद जगाई | पर किया क्या किसी को पता नहीं |
                         किसी भी देश को जिसे हम आज देख रहें हैं , वह अतीत में हुए अनेकों विध्वंशों, अच्छाइयों और बुराइयों का परिणाम है | किसी भी सामाजिक , राजनितिक ढांचे को एक देश बनाने के लिए वहां के नागरिकों को अपने व्यक्तिगत दुराग्रहों को छोड़ना पड़ता है | जो क्षेत्र,धर्म,भाषा,जाति आदि पर आधारित होते हैं, वह भी किसी महान कुर्बानी के भाव से नहीं छोड़ा जाता बल्कि खुद को अधिक ताकतवर,सुरक्षित और सक्षम बनाने के लिए किया जाता है ,यह एक तरह का समझदारी भरा स्वार्थ है, खास तौर पर भारत के सन्दर्भ में | हम अपनी तुलना अमेरिकी या यूरोपीय देशों से नहीं कर सकते जहाँ कि आबादी हमारे एक जिले से भी काम हो और न ही जाति धर्म, भाषा या फिर भौगोलिक आधार पर इतनी विविधता है |
                             जहाँ तक हमारे देश का सवाल, आज कि वर्तमान परिस्थितियों में हमारे पास एक श्रेष्ठ संविधान है और इसके बाद भी हम अगर दायित्व बोध और कर्तव्यों से मुख मोड़े रहें तो हमारी कोई मदद नहीं कर सकता | हर लोकतान्त्रिक देश कि तरह सरकार का अर्थ कोई एक पार्टी या व्यक्ति नहीं होता | इसमें सम्पूर्ण संसद शामिल होती है, जिसमे विपक्ष कि भी उतनी ही भूमिका होती है जीतनी कि सत्ता पक्ष की |
                                                                                                                            लोकतान्त्रिक देश की मजबूती और सरकार की पारदर्शिता, उसके चारों स्तंभों पर टिकी होती है ,इसमे कोई भी सरकार से अलग नहीं होता और प्रत्येक स्तम्भ का यह कर्तव्य है की वह संविधान का सही ढंग से पालन सुनिश्चित  करे करे और नागरिक अधिकारों को किसी भी अतिक्रमण से बचाए | आज मवाधिकारों को सिर्फ भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र से खतरा नहीं है ,बल्कि यह तमाम नेताओं,धर्म,जाति,भाषा के ठेकेदारों ,आतंकी संगठनों और मीडिया के लोगों से भी है | क्योकि मुनाफा और स्वार्थ हर चीज़ पर भारी पड़ रहा है |
                                                                          यह सच है की हमारे देश की व्यवस्था में ढेर सारी कमियां और नाकामियां हैं | लेकिन आज जो भी उपलब्धियां हैं वह किसी निजी संगठन या व्यक्ति के प्रयास से नहीं हासिल हुई हैं , वह भारत सरकार की ही देन है | हमें देश को और अच्छा बनाने के लिए हर कमी की आलोचना करनी चाहिए और उस कमी को दूर करने का प्रयास करना चाहिए परन्तु देश की अखंडता और एकता के साथ कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए | जहाँ तक हमारे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का सवाल है तो वे ज्यादातर सरकार की ही आलोचना करते हैं ,क्या यह ज्यादा सुरक्षित और आसान नहीं होती ? एक तो सरकर को सुरक्षा देनी पड़ती है दूसरे अगर जेल भेजा दिया गया तो एक बड़े शांति पुरस्कार की गारंटी समझिए ,साथ ही महान होने का तमगा भी  हासिल हो जाता है | अब अगर किसी आतंकी संगठन या किसी जाति धर्म के ठेकेदार की आलोचना की तो ए लोग तुरंत लाठी डंडा ले कर आ धमकते हैं,ऐसे में इतनी मुसीबत कौन ले ?अगर गलती कुछ कह दिया तो  तुरंत माफ़ी मांग लिया और मामला रफा दफा किया |
                                                                       वैसे एक संप्रभु राष्ट्र में कुछ लोग अगर हथियार बंद होकर  कुछ भी मांग करे और तोड़ फोड़ पर अमादा हो तो सरकार क्या करेगी ?ए हथियार और गोला बारूद खेतों में तो उगते नहीं | इनको बाकायदा खरीदा जाता है और इस्तेमाल का प्रशिक्षण लिया जाता है और सेना के लोग ऐसे क्षेत्रों में पिकनिक मनाने नहीं जाते | उन्हें वहां तभी भेजा जाता है ,जब स्थिति नियंत्रण से बहार हो जाती है | हमारे संविधान ने  हमें पार्यप्त आजादी दे राखी है कि हम सचिन,अमिताभ,शाहरुक,इरफ़ान,प्रेमजी,कलाम,लालू ,मुलायम ,छोटा राजन,दाऊद,तेलगी कुछ भी बन सकते हैं ,लेकिन इसके लिए हमें ही परिश्रम करना होगा ,एक जगह से दूसरी जगह दूरियां तय करनी होंगी |
        इस समय  देश कि आबादी एक अरब बीस करोड़ से भी ज्यादा है और ऐसे में क्या सारे लोग संतुष्ट रह सकते हैं |जहाँ किसी भी वाद पर चंद रूपए खर्च करके ,कुछ लोगों कि भीड़ इकट्ठी कि जा सकती हो, वैसे भी संविधान ने अभिव्यक्ति और संगठन बनाने कि छूट दे राखी है | हमारे इलाहाबाद कि आबादी पचास लाख को पार कर चुकी है और मेरे गाँव कि आबादी पांच हज़ार से तो ज्यादा ही है और गाँव के लोग सड़क,बिजली,पानी,शिक्षा कि समस्यायों से ग्रसित है | ऐसे में हमें कम से कम एक अलग जिले कि मांग तो करनी ही चाहिए  और हमें पूरी उम्मीद है कि मानवाधिकार से जुड़े तमाम कार्यकर्त्ता हमारे साथ खड़े होंगे ||
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  1. लोकतान्त्रिक देश की मजबूती और सरकार की पारदर्शिता, उसके चारों स्तंभों पर टिकी होती है ,इसमे कोई भी सरकार से अलग नहीं होता और प्रत्येक स्तम्भ का यह कर्तव्य है की वह संविधान का सही ढंग से पालन सुनिश्चित करे करे और नागरिक अधिकारों को किसी भी अतिक्रमण से बचाए | आज मवाधिकारों को सिर्फ भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र से खतरा नहीं है ,बल्कि यह तमाम नेताओं,धर्म,जाति,भाषा के ठेकेदारों ,आतंकी संगठनों और मीडिया के लोगों से भी है | क्योकि मुनाफा और स्वार्थ हर चीज़ पर भारी पड़ रहा है |

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