To intellectuals

बुद्धिजीवी 


आदरणीय बुद्धिजीवियों, 
      निश्चित रूप से आप एक बड़ी brand हैं (क्योंकि बुद्धिजीवी महिला है)  और आपको लगता है कि आप जितना कह रही हैं उतना ही सही है और बड़ा नाम होने का यही फायदा है कि आपकी किताब और लेख आसानी से बिकता रहता है और बकवास करने पर ज्यादा popular होता है। आपके ऐसे गुणों से सम्पन्न होने की वजह से मीडिया कवरेज की  guarantee तो हो ही जाती है। अभी इनका random साक्षात्कार किसी news channel पर देख रहा था। इसके बाद psephologist आदरणीय महानुभाव जी का भारतीय परंपरा वाला quote जो स्वामी विवेकानंद जी का का उद्धरण था। आपकी बेहतरीन बातें सच में सपनों के सच होने का यकीन पैदा करती हैं। पर आप लोगों की वैचारिक परम्परा से हमारे समाज में क्या वास्तव में कोई बदलाव आया, हम आज तक अपना समाजवाद क्यों नहीं ढूँढ़ पाए और सोचिये भारत जैसे जटिल सामाजिक ताने-बाने में उधार का विचार कब तक सांसे ले सकता है। उसका दम धीरे धीरे घुट रहा है, इस बात को स्वीकार कर लीजिए। हमारे यहाँ का वामपंथी समाजवाद हकीकत से न जाने कितना दूर है और वह किताबों, मीडिया और चंद लोगों के बीच सिमट कर रह गया है, जहाँ सर्वहारा के लिए कोई जगह नहीं है। इस बात को समझने के लिए, थोड़ा इन संगठनों को देखिए। 
   अब अस्तित्व की लड़ाई चल रही है। जहाँ नेता बने रहने का संघर्ष है क्योंकि दूसरी विचारधारा वर्तमान सामाजिक संघर्ष में कहीं अधिक यथार्थ लग रही है, सही-गलत से कुछ लेना देना नहीं है, पुराना propaganda नये से replace हो रहा है और समानता, समरसता के सपने देखने से ऊब होने लगी है और यह सवाल भी लाजिम है कि इतने साल आपके साथ चले तो और आपको खूब मौका भी दिया, तो आप कौन सा बदलाव हमारे जीवन में लाए, आखिर हमें भी तो पता चलना चाहिए कि हम किस बदलाव का हिस्सा हैं। हमें किन असमानताओं से आजाद किया गया या फिर हम, सिर्फ सोए रहे और सपने देखते रहे और आप "वाद" के घोड़े पर सवार अपना हित साधते रहे। फिलहाल पूरी दुनिया में धर्म वाला कार्ड चल रहा है। अगर पास-पड़ोस में एक ही धर्म के लोग हैं तो उसकी category जैसे शिया-सुन्नी, catholic-protestent.  फिर हमारे यहाँ तो जाति-धर्म का सबसे बड़ा menu card है। चाहे जिस तरफ, कोई भी हुनरमंद खिलाड़ी अपनी विसात बिछा सकता है। हमारी परेशानी खिलाड़ियों से नहीं है। अब परेशानी आइने से है जो एक खास तरह का चेहरा बनने के लिये परेशान हैं। आप सच में आइना हैं तो चयनित सच (selective truth) से बचिए और सच में "सच कहिए" .. मेरा वाला सच... तेरा वाला सच... हमने सुना है कि थरूर अंकल ने caa आंदोलन को secular बनाने की कोशिश की थी, बेचारे अंकल के सामने ही मासूम बच्चों ने.. 
          इस उपदेश के बाद चलिए बात आगे बढ़ाते हैं। बहुत से लोग इतना ज्ञान देते वक्त ए भूल जाते हैं कि ए सारी बातें तब सही होती, जब अखंड भारत होता, मतलब धर्म के आधार पर मुसलमानों के लिए पाकिस्तान और हिंदुओं के लिए हिंदुस्तान न बनता, हलांकि हम secular India हैं और इसमें कोई हर्ज नहीं है और इस रूप में हमने खुद को बरकरार रखा है और यह हमारी ताकत है, इस पर संदेह नहीं होना चाहिए। 
      चलिए अब एक बहस करते हैं और इनकी बात मान लिया जाय तो क्या यह साबित नहीं होता कि हमारे जिन मुस्लिम भाइयों ने इस्लामिक देश बनाया वह एक भयानक गलती थी क्योंकि उन्होंने एक ऐसा नाकाम देश बनाया जो इस्लामिक होने के बाद भी वहाँ, मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं। 
           खैर अन्य मजहबी लोगों के आंकड़े देखकर तो कुछ समझ में आता है पर मुस्लिम उत्पीड़न वाले दावे के लिये हमारी सहानुभूति होनी चाहिए और मानवाधिकार की रक्षा, भारतीय परंपरा,.. मैम ने जो. जो कहा सबका ध्यान रखते हुए no radcliffe, No Durand line, movement शुरू करना चाहिए.. 
मैम.. ए भी बताइए कि भारत से पीड़ित किस धर्म के कितने लोग किस पड़ोस में गए और उनकी आबादी कितनी कम हुई है... आपके पास तो international data होगा ही।
आपकी बात सुनकर, यह बात जाहिर है कि इस मसले को आपने ठीक से पढ़ा नहीं है, Mam plz एक बार पढ़ लीजिए।
             भाजपा या किसी भी राजनीतिक दल और विचारधारा का विरोध, खूब करिए, वैसे कोई भी किसी का घोषित विरोधी हैं तो राजनीतिक अस्तित्व के लिये उसका लगातार विरोध जायज है। लेकिन खुद को बुद्धिजीवी घोषित करके किसी का भी एक खास लाइन मेंटेन करना उसे पक्षपाती बना देता है, यदि आप सत्ता या फिर विपक्ष के खास वाद को अपने निष्पक्षता वाले पक्ष से बनाये रखते हैं तो आप कमाल के बौद्धिक gymnast हैं।
       ऐसी बिकाऊ और बाजारू व्यवस्था में हमें लगता है कि media houses और so called intellectuals को भी अपनी party line declare करके बात करनी चाहिए। जैसे कन्हैया कुमार को देखिए BJP का विरोध करने वाला शानदार वक्ता, अपनी बात क्या बेहतरीन तरीके से रखता है, एकदम अपनी पार्टी लाइन पर। ऐसा और इससे कहीं अच्छा आप भी, खूब जमकर बोलिए.. पर लोगों को यह जरूर बताइए कि मैं किस दल या कथित विचारधारा से belong करती/करता हूँ... मुझे नहीं लगता कभी किसी को कोई परेशानी होगी।
https://rajhansraju.blogspot.com/2020/01/citizdnship.html

Comments

  1. ऐसी बिकाऊ और बाजारू व्यवस्था में हमें लगता है कि media houses और so called intellectuals को भी अपनी party line declare करके बात करनी चाहिए।

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