स्वच्छ भारत

इस तरह के दृश्य निश्चित रूप से बहुत क्षोभ उत्पन्न करते हैं और जब ए सुना जाता है कि एक जाति विशेष के लोग ही ए काम करते हैं, या उस जाति के जन्म लेते ही ए काम करते आ रहे हैं या कुछ यूँ कहें कि यह जाति अस्तित्व में ही इसी लिए आयी। अब हम खुदको कैसे देखते समझते हैं, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हम खुद का ही सामना नहीं कर सकते हैं। हम जितने भी दावे करें, कितनी भी दलीलें दें मगर यह दृश्य.....       
      फिर मनुष्य के रूप में किसी के भी साथ ऐसी अमानवीय, गैरबराबरी वाला वर्ताव भला कोई सभ्य समाज कैसे बर्दाश्त कर सकता है। दरअसल ए पूरी व्यवस्था ही शर्मनाक है, पर जो इसकी जातीय राजनीति है वह लोगों को वास्तविक समस्याओं से भटका देती, इस तरह के काम कोई भी करे वह मानव गरिमा के विरुध्द और राष्ट्रीय शर्म की बात है।
                  आमतौर पर ए काम समाज के सर्वाधिक गरीब लोग पैसे के लिए ही करते हैं और शहरों में आए गरीब सवर्ण जब ए काम करते हैं, तब वो अपनी जाति और असली नाम नहीं बताते हैं और गाँव से आए ज्यादातर गरीब दलित, मुस्लिम, सवर्ण काम के दौरान एक दूसरा नाम रख लेते हैं यानी असली नाम नहीं बताते, एक बार ..... खैर! छोड़िए कहानी समझ गए होंगे। चलिए दूसरा वृत्तांत बताते हैं यह है UP में सफाई कर्मियों की भर्ती के दौरान कई जगहों पर सवर्णों के भर्ती में शामिल होने पर अभ्यर्थियों ने आपस में विवाद किया कि पूरी सरकारी प्रक्रिया सेे भर्ती होने पर सिर्फ 23% ही उनकी जाति के लोग भर्ती हो पाएंगे.. और इससे वो अपने हक से वंचित हो जाएंगे, तो इस बात का आशय सिर्फ रोजगार ही था कि कैसे भी करके हासिल किया जाय।
       इसी तरह पंडिताई को भी निजी उद्यम से सरकारी नौकरी में बदल दिया जाय तो समस्या खत्म हो जाएगी.. एक बात साफ कर लीजिए कि सारे ब्राह्मण पंडित, पुरोहित नहीं होते और न उनको संस्कृत आती है, ज्यादातर गाँवों में किसान हैं या फिर शहरों में चौकीदार, driver, ... और सफाई कर्मी भी है पर थोड़ा बहुत पढ़े लिखे होने के कारण कुछ ढंग का काम उन्हें मिल जाता है.. जैसे छोटी-बड़ी दुकानों में तमाम तरह के काम होते हैं और कितना भी गरीब ब्राह्मण हो अपनी हैसियत के हिसाब से अपने बच्चों को पढ़ाता जरूर है। हमारे यहाँ खुद को सम्पन्न कैसे बनाया जाय इस पर बात नहीं होती, किसको कैसे बेइज्जत किया जाय इस पर ज्यादा जोर होता है, बस मै सही हूँ, तुम गलत हो, मेरा उत्थान हो या न हो, पर! तुम्हारा पतन जरूर हो, ए वाला concept गजब का है। सवर्णों के बारे में कथित दलित विद्वानों की राय कुछ ऐसे ही है कि जैसे सारे दलित सफाई कर्मी, पीड़ित, अशिक्षित, निरीह, बेचारे type हैं जिनका हर जगह शोषण हो रहा है। वैसे ही जैसे सारे सवर्ण सम्पपन्न हैं और उनके पाास एक ही काम है दलितों का शोषण करना। जबकि समाज में जो भी वंचित और कमजोर है उसका शोषण होता ही है और तब उसे उसीकी जाति वाले नही छोड़ते, ज्यादा समझना हो तो अपने ही घर में महिलाओं की स्थिति देख लीजिए।  
      तो ए जान और मान लीजिए कि जब तक कोई व्यक्ति स्वयं संघर्ष करके नहीं खड़ा होगा, वह अपनी जगह नहीं बना पाएगा, उसे चाहे जितने सहारे दे दिए जांय, वह उसे निरंतर कमजोर बनाते जाएंगे, संघर्ष को सहानुभूति से कमजोर मत बनाइए।
      चलिए थोडा सा positive होते हैं और उनके जीवन के इस संघर्ष को सराहते और सलाम करते हैं। वैसे भी शहर ने सबको मजदूर बना दिया है, सब बाज़ार के हाथ में है, जहाँ हर चीज खरीदी और बेची जा रही है, चाहे वह ज्ञान हो या श्रम। अब आपकी हुनर है कि आप खुद को कैसे और कितने में बेंचते हैं। बाकी यह कामना और कल्पना मत करिए कि कोई और भी इस तरह के अमानवीय दौर से गुजरे, बल्कि जो अब भी इस तरह से भी जीवन यापन का संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें इस काम से मुक्ति मिले और अब तो इस तरह के काम के लिए मशीन और तकनीक दोनों आ चुकी है, जिसे चलाने के लिए technician यानी operator चाहिए।
🌹🌹❤️🙏🙏🙏❤️🌹🌹

🌹🌹🙏🙏❤️🌹🌹




      








******************************
my facebook page 
**************************

*************************
facebook profile 
***********************

***************





*********************************
my You Tube channels 
**********************
👇👇👇



**************************
my Bloggs
************************
👇👇👇👇👇



*******************************************





**********************

Comments

अवलोकन

ब्राह्मणवाद : Brahmnism

Ramcharitmanas

Swastika : स्वास्तिक

Message to Modi

अहं ब्रह्मास्मि

narrative war

Jagjeet Singh | श्रद्धांजली-गजल सम्राट को

Manusmriti

Women reservation bill

वाद की राजनीति