अहं ब्रह्मास्मि

विमर्श

जाति विमर्श में गाली गालौज एक अनिवार्य शर्त जैसा नजर आता है और ज्यादातर लोग किसी वाद या फिर राजनीतिक दल के समर्थक, विरोधी होने का कारण उनका अपना जाति बोध है। हलाँकि वो खुद को जाति वाद और ब्राह्मण वाद के सबसे बड़े विरीधी होते हैं। पर खुदकी जाति को लेकर भावुक हो जाते हैं और अपने जातीय, धार्मिक या दलीय चेतना के बोध में उन्हें कोई खोट नजर नहीं आता। खैर आगे बढ़ते हैं-
वास्तव में जिससे संघर्ष करने की बात कही जाती है वह ब्राह्मणवादी मानसिकता है यानि कि वर्चस्ववाद के खिलाफ, लेकिन यह बात कहते कहते जो विमर्श होता है वह जाति विमर्श  के रूप में सामने आता है जिसमें जातियों का विरोध, समर्थन शुरू हो जाता है, फिलहाल आज की राजनीति पर गौर करिए तो हर पार्टी और संगठन एक तरह की ब्राह्मणवादी मानसिकता से ग्रसित है और उसका सर्वोच्च नेतृत्व कैसा है, क्या वह किसी और को कुछ और बनने की गुंजाइश दे रहा है? तो वह ठीक ब्राह्मणों जैसा ही है जिसमें किसी संगठन को कुछ खास लोग नियंत्रित कर रहे हैं, जो संगठन का अगुआ यानी ब्राह्मण है और यही बात हमेशा से होती आयी है। जब कबीर और मीरा जैसे ज्ञानियों से किसी पुरोधा को खतरा होगा तो विरोध स्वाभाविक ही है। ऐसे में किसी संगठन का प्रभावशाली व्यक्ति उस संगठन पर अपना वर्चस्व लगातार बनाए रखना चाहता है जिसके लिए वह तमाम तिकड़म रचता रहता है। अब भी आप चाहें तो किसी संगठन में जाकर देख लीजिए कि आपके ज्ञान की कितनी कद्र है, क्या आपके ज्ञान की वजह से आपको कोई जगह मिलती है?
  वास्तव में देखा जाए तो जो संघर्ष और शोषण की कहानियां कही जाती हैं। वह किसी एक व्यक्ति के शोषण या फिर किसी एक उस व्यक्ति की होती है जो कि वर्चस्व वादी है, वह उसके क्रूरता की कहानी होती है, लेकिन जब उसका विश्लेषण होता है, तब उसे समस्त लोगों पर लागू कर दिया जाता है कि पूरा समाज, ऐसा ही था, जो कि सच नहीं होता। अब कबीर के पक्ष में कितने ब्राह्मण खड़े हुए उनका कोई जिक्र नहीं होता। हो सकता है उनकी बहुत बड़ी संख्या रही हो, जिसके कारण उस वर्चस्ववादी व्यक्ति या व्यक्तियों को बात माननी पड़ी हो।
      अब थोड़ा आज की स्थिति पर गौर करिए। जिस ब्राम्हणवाद का आज, जिस तरीके से विरोध किया जा रहा है, वह क्या है? तो निश्चित रूप से वह खुद को ब्राह्मण बनाने की कोशिश है। अब मेरे  सिद्धांत मानो, तुम्हें कुछ नहीं ढूंढना है, मैं जो कह रहा हूँ- "सिर्फ़ उसे मानो।" एकदम कथित ब्राह्मणवादी मानसिकता, पता चला जो आरोप ब्राह्मणों पर लगाया जाता था कि वो धर्म से डरा कर अपना हित साधते हैं।
       तो अब आप क्या कर रहे हैं? आप भी जिस सत्य की व्याख्या कर रहे हैं वह आपकी अपनी है और आपको भी ... उन्हीं कथित ब्राह्मणों जैसा बना रहा है और आप भी ईश्वर बनने और बनाने की फिराक में हैं। जबकि लोगों को अपना सच जानने के लिए किसी भी गुलाम मानसिकता से आजाद होने की जरूरत है और यह आजादी खुद हासिल करनी होती है। चाहे आप मीरा बनें या कबीर .... दलित..  ब्राह्मण... आपकी मर्जी शिक्षित होइए, संघर्ष करिए, आगे बढ़िए।

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Comments

  1. shabdon ki behtareen kareegari hum sabke sath share karane ke lie shukriya
    इन शानदार शब्दों तक पहुंचना आसान नहीं होता क्योंकि ज़्यादातार इस ट्राफिक मे चीजें खो जाती हैं और बहुत सी अच्छी और सही बातें हम तक नहीं पहुँच पाती

    ReplyDelete
  2. कबिरा खड़ा बज़ार में, लिया लुकाठी हाथ।
    बन्दा क्या घबराएगा, जनता देगी साथ।।
    छीन सके तो छीन ले, लूट सके तो लूट।
    मिल सकती कैसे भला, अन्नचोर को छूट।।
    आज गहन है भूख का, धुँधला है आकाश।
    कल अपनी सरकार का, होगा पर्दाफ़ाश।।
    (नागार्जुन)

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