I'm fool | मैं मूर्ख हूँ

मूर्ख कहीं के 

यह बात स्वीकार कर लेने में कोई हर्ज नहीं है कि हम मूर्ख हैं और इस मूर्खतापूर्ण व्यवहार का राष्ट्रीयकरण हो चुका है, जहाँ आगे निकलने की मूर्खतापूर्ण होड़ लगी है।
     किसी व्यक्ति के विचार को ही आज तमाम राजनीतिक कारणों से अंतिम सत्य की तरह व्याख्या की जाती है जबकि सभी लोग किसी खास वाद से ग्रसित होकर किसी दूसरे वाद का विरोध सिर्फ़ राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ही करते हैं। हमारे कथित बुद्धि जीवियों की समस्या यह है कि वह कुछ नया गढ़ने में सक्षम नहीं हैं। वह सिर्फ़ अतीत के महिमामंडन या गाली गलौज करने को अपनी विद्वता मान बैठे हैं।
             कृपा करके आज के समाज और समस्याओं को देखिए.. उनका समाधान सुझाइए। वैसे इस बात पर विचार करिए कि आज भी शिक्षा कोई मुद्दा क्यों नहीं है.. कैसे भी संगठन और व्यक्ति हों, वो क्या कभी इस पर बात करते हैं कि आपको अपने समाज में भी यदि कोई अधिकार मिलेगा तो वह शिक्षा से ही मिलेगा इसके लिए आपको अपने बच्चों को स्कूल भेजना होगा और शिक्षा कैसे भी करके हासिल की जानी चाहिए। इससे कोई भी समझौता नहीं होना चाहिए क्योंकि अधिकारों को हासिल करने की जो लड़ाई होती है वह इसी से शुरू होती है।
         शिक्षा जरूरी नहीं है कि आपको किसी सरकारी नौकरी की  गारंटी दे, बल्कि यह आप को जीवन में संघर्ष करना सिखाती है और संघर्ष वही व्यक्ति कर सकता है जिसे पता हो कि उसके अधिकार क्या है? साथ ही उसके कर्तव्य क्या हैं? अगर यह बोध नहीं है तो कोई अधिकार जीवन में हासिल नहीं किया जा सकता है।
       जीवन में जिंदा रहने के जद्दोजहद के बाद, पहली आवश्यकता है “सही शिक्षा” जिसकी कहीं कोई चर्चा नहीं की जाती बस हर तरफ राजनीतिक नारे और यह जितने नारे होते हैं, वह आम लोगों के लिए नहीं होते। यह नारे किसी व्यक्ति या राजनैतिक दल के हित के लिए होते हैं और जैसे ही आप भक्त बनते हैं वह दल और विचारधारा सफल हो जाती है क्योंकि वह संगठन आपकी आंखों पर अपना चश्मा लगाने में कामयाब हो जाता है। अब आप को कुछ और नहीं दिखाई पड़ेगा और आप उसकी भक्ति में लीन हो जाएंगे और अब आप कहीं भी भीड़ का हिस्सा, आसानी से बन जाएंगे और कहीं भी तोड़फोड़ में लग जाएंगे और देश समाज से आपको कोई वास्ता नहीं रहेगा क्योंकि अब आप सिर्फ भीड़ हैं आपके हाथ में एक डंडे वाला झंडा है। जो सिर्फ मारपीट करने के काम आता है, आपकी कोई पहचान नहीं आप सिर्फ भीड़ है। आमतौर पर किसी भी राजनीतिक, जातीय, धार्मिक संगठन को इसी तरह के भक्तों की आवश्यकता होती है। जो कुछ भी देख समझ न पाते हों, और उन्हें कुछ भी समझा दिया जाए । अतीत किसी हिस्से को कैसे भी तोड़ मरोड़ कर  कुछ भी कह दिया जाए वह लोगों के लिए एकदम अंतिम सत्य बन जाता है। कभी भी कोई भी किसी की कुछ भी व्याख्या कर देता है, तो कभी कुछ और व्याख्या हो जाती है और वही महिमामंडन, गाली गलौज की एक अंतहीन श्रृंखला शुरु हो जाती है। मैं ही सही हूँ, यही सही है और फिर सामने वाला भी यही सारी बातें करता है और यह चलता ही रहता है और इसका मजा तभी तक है जब तक आम लोग शिक्षा से वंचित हैं, वह किताबें न पढ़े, विचारों को न समझें या यूं कहें कि कुछ नया न करें, उन्हें जो समझा दिया जाए वही उनके लिए सच हो।
        देखा जाय तो सच में यह सफलता उस  संगठन या विचारधारा की है कि वह आपके अंदर एक गुलाम मानसिकता को जन्म देकर उसे लगातार बनाए रखें और आप उसके गुलाम बने रहें आखिर नारा लगाने के लिए, .. तो भीड़ चाहिए ही, तो फिर बधाई हो आपको भीड़ बने रहने के लिए। नारे लगाइए और जाइए अपनी जाति वाले को वोट दे आइए या फिर अपने मजहब वाले को, नहीं तो अपने क्षेत्र वाले को …..
            बस एक काम करिए यह स्वीकार कर लीजिए हम मूर्ख हैं और हममें अक्ल जैसी कोई चीज नहीं है.. अगर इस बात से असहमत हों तो अपने आसपास बस थोड़ा सा गौर करिए…
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Comments

  1. सहमत
    हम सबकी एक ही व्यथा है

    ReplyDelete
  2. इस दुनिया को,
    आबाद रखने की यही शर्त है,
    इसका खारापन सोखने को,
    हमारे पास,
    एक समुंदर हो।

    ReplyDelete

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