लोकतंत्र जिंदाबाद

लोकतंत्र 


हमारे पहाँ media के लोग जल्दबाजी में चंद बहुरूपियों को भारतीय समाज का सम्पूर्ण प्रतिनिधि घोषित कर देते हैं, जो कि बिलकुल भी सही नहीं है, आम लोगों के चुप होने का मतलब आप से सहमत होना नहीं है, बल्कि हमारे यहाँ जब लोग किसी से बहुत ज्यादा नाराज होते हैं तब वो सिर्फ बात करना बंद कर देते हैं, एकदम "मौन" फिर किसी दिन कोई अप्रत्याशित परिणाम सामने होता है। अगर इसे उ०प्र० के चुनावों के संदर्भ में देखा जाय तो विगत चुनाव परिणाम चाहे वह BSP, SP या फिर BJP के पक्ष में हो इस तरह के जनादेश की उम्मीद किसी ने नहीं की थी। जिसे जनता ने बिना किसी संकोच के दिया, फिर इस सत्ता और शक्ति का सही इस्तेमाल न करने पर इन  दलों के राजनीतिक अस्तित्व को चुनौती भी दिया है। जनता के सेवक जब खुद को मालिक समझने की भूल करने लग जाते हैं, तब यही कुछ न समझने वाले, जाति, धर्म के  दायरों में बंधे लोग, (जैसा कि आम लोगों के बारे में media के चिंतित, प्रबुद्ध वर्ग की धारणा होती है) कैसे एकदम सहजता से किसी को भी सत्ता से बेदखल कर देते हैं। 
    ऐसे में कथित बुद्धिजीवी, मीडिया और खुद को राजनीति, धर्म अथवा जाति का चतुर खिलाड़ी मानने  वाले तमाम लोग जो तरह तरह का स्वांग रचकर आम लोगों का प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं, तो अपनी गलत फहमी दूर कर लें, क्योंकि आपकी कोई भी भेषभूषा, गालीगलौज, गुंडागर्दी आम लोगों को किसी भी तरह से अच्छी नहीं लगती और 'आप' सिर्फ खुद के प्रतिनिधि हैं। भारत और भारतियों का जो वास्तविक चरित्र है उसमें सरलता और उदारता एक स्वभाविक गुण है, इसी वजह से यहाँ कभी भी, किसी भी अतिवाद को ज्यादा दिन तक बर्दास्त नहीं किया गया और अंततः सहअस्तित्व को बनाए रखने की अपनी अटूट परम्परा बनी रह जाती है..
लोकतंत्र जिंदाबाद, आमजन जिंदाबाद ..
Rajhans Raju
🌹🌹🌹❤️🙏🙏❤️🌹🌹


 हमारी ग्रामीण कम शिक्षित जनता कुछ समझती हो या न समझती है लेकिन वह लोकतंत्र का अर्थ और मायने कथित शिक्षित और समझदार लोगों से ज्यादा समझते हैं इसको आप हर चुनाव में देख सकते हैं जहां बड़े-बड़े विशेषज्ञ और जानकार तमाम खतरों का जिक्र करते हैं और आम लोगों की सोच और समझ कर हमेशा प्रश्नचिन्ह उठाते हैं जबकि चुनाव में उनकी विशेषज्ञता धरी की धरी रह जाती है और जाति धर्म में क्षेत्र के आधार पर बंटे लोग ही कमाल का जनादेश दे देते हैं और सत्ता परिवर्तन भी एक सामान्य प्रक्रिया की तरह ही हो जाता है। जहां आपने आपको राजा या स्थानीय क्षत्रिय समझने वाले लोग, यह सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं किन्हीं विश्लेषण करें कि उनसे कहां गलती हुई और वह आम लोगों से क्यों नहीं जुड़ पाए। जबकि आम लोग बड़े ही सहज तरीके से किसी को भी सत्ता से बाहर कर देते हैं तो ऐसे में आम लोगों की बुद्धि पर प्रश्न मत उठाइए क्योंकि उन्होंने इंदिरा को भी चुनाव में  हराकर लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया था तो दूसरी तरफ भाजपा का जो सबसे उदारवादी चेहरा था जिन्हें हम अटल बिहारी वाजपेई के नाम से जानते हैं तमाम अच्छी फीडबैक के बाद भी 2004 में सत्ता में वापसी नहीं कर पाए थे और डॉक्टर मनमोहन सिंह 10 वर्ष तक प्रधानमंत्री बने रहे जिसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही हो  कि ऐसा आदमी जो सिर्फ अध्ययन अध्यापन से संबंध रखता है अपनी सरलता और शालीनता के बल पर भारत जैसे देश का 10 साल तक प्रधानमंत्री बना रहा है। अब इसका अलग अलग विश्लेषण कर सकते हैं लेकिन यह सच है और बात फिर वही आती है कि हमारे यहां आम लोग एक सरल सौम्य और उदारवादी व्यक्ति को ही सदैव सर्वोच्च स्थानों पर देखना चाहते हैं अब भारतीय इतिहास में भी देखिए तो वहीं शासक सफल हुए जो उदार थे और उन्होंने सब लोगों को साथ लेकर चलने का प्रयास किया। 
   लोकतंत्र में चुनाव और हार जीत

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Comments

  1. इस दुनिया को,
    आबाद रखने की यही शर्त है,
    इसका खारापन सोखने को,
    हमारे पास,
    एक समुंदर हो।

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