Jagjeet Singh
श्रद्धांजली-गजल सम्राट को
तुम जग छोड़ के चले गए, तुम्हारे बिना गजल अकेली हो गयी, वह उदास, तन्हा तुम्हें याद कर रही है, तुम्हारी आवाज़ में ढलकर वह निखर जाती थी, हम तक सुनहरे अल्फाज़ शहद कि मिठास लेकर आते थे, तुम्हारे बिना ग़जल कैसे रहेगी, तुम्ही ने तो उसमे नयी जान डाली थी, खास से आम तक तुम्हारी जादुई आवाज़ ने पहुचाई थी. किसी रुख से जब नकाब सरका था, जुल्फ के झटकने से टूटते मोतिओं को जाना था, बचपन में वापस लौटकर कागज़ कि कश्ती चलाई थी, फिर तुम बिना किसी सन्देश हमें छोड़ गए. तुम्हारी हर गजल हमारी धरोहर है, इनमे तुम्हारी सांसों का एहसास छुपा है. जो इस दुनिया के कायम रहने तक हर दिल में रहेगी.
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Jagjit Singh Birth Anniversary:
कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी...जगजीत सिंह ने जालंधर में गाया था पहला गीत
जालंधर से जगजीत सिंह का रिश्ता बनाए रखने के लिए आल इंडिया रेडियो की बहुत बड़ी भूमिका है। रेडियो पर कार्यक्रम देने लगे तो उस दौर के उभरते शायर सुदर्शन फाकिर से नजदीकियां बढ़ीं। जालंधर AIR पर ही पहला गीत कागज की कश्ती गाकर वह चर्चित हुए थे।
By Pankaj Dwivedi
गजल गायक जगजीत सिंह ने जालंधर के डीएवी कालेज से पढ़ाई की थी।
मशहूर शायर निदा फाजली ने एक बार कहा था 'जगजीत सिंह की आवाज में जादू है। उसमें मां जैसी मिठास है, पिता के प्यार सी सुंदरता है। एक गहरे रिश्ते की नजाकत है और इन सबसे ज्यादा वह किसी चोट पर मरहम जैसा आराम देती है।' ठीक कहा था फाजली साहब साहब ने क्योंकि जगजीत सिंह ने रेशमी आवाज से 50 एलबमें और 50 करोड़ प्रशंसकों से दुनिया को अचंभित कर दिया। जगजीत अभी लड़कपन के दौर में थे, श्री गंगानगर के एक गुरुद्वारे में जाकर गुरबाणी के पवित्र शबदों को गाते थे। प्रारंभिक शिक्षा श्रीगंगानगर (राजस्थान) से प्राप्त की और आर्ट्स की डिग्री जालंधर के डीएवी कालेज से ग्रहण की।
जालंधर से रिश्ते में आल इंडिया रेडियो की बड़ी भूमिका
जालंधर से जगजीत सिंह का रिश्ता बनाए रखने के लिए आल इंडिया रेडियो की बहुत बड़ी भूमिका है। रेडियो पर कार्यक्रम देने लगे तो उस दौर के उभरते शायर सुदर्शन फाकिर से नजदीकियां बढ़ीं। रेडियो स्टेशन की दीवार के साथ जिधर आजकल लज्जावती अस्पताल है, वहां छोटा सा टी स्टाल हुआ करता था। सुदर्शन फाकिर और जगजीत को जब भी फुर्सत मिलती, वहां देर तक बैठे शेर गुनगुनाते रहते। सुदर्शन फाकिर की शायरी का प्रभाव उन दिनों बेगम अख्तर ने एक गजल रेडियो पर गाकर दुनिया को दिखा दिया था। उस गजल के बोल थे, 'कुछ तो दुनिया की इनायत ने दिल तोड़ दिया...'। तभी जगजीत सिंह ने पहला गीत गाया। सुदर्शन फाकिर का लिखा 'दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी। किस्मत की खूबी देखिए कि जगजीत सिंह का जो पहला रिकार्ड था, उसका नाम था 'कागज की कश्ती'।
होठों से छू लो तुम... गीत की दिल छूने वाली कहानी
प्रेम जालंधरी की एक फिल्म 'प्रेम गीत' के लिए जब संगीत निर्देशन के लिए कहा गया गया तो जगजीत सिंह ने इन्कार कर दिया। तब प्रेम जालंधरी ने कहा कि आप यह गीत पढ़ लें, अच्छा न लगे तो छोड़ दीजिए। जगजीत सिंह ने वह कागज देखा और फिर वो गीत लोकप्रियता की हदें पार कर गया। उसके बोल थे, 'होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो...। कहा जाता है कि जगजीत सिंह ने इस फिल्म के लिए संगीत निर्देशन भी किया और पारिश्रमिक भी नहीं लिया।
आडियो और वीडियो दोनों में जादुई आवाज और शोखी शरारत से भरा जगजीत सिंह का अंदाज लोगों के दिलों पर छाने लगा। एक पत्रकार ने प्रश्न किया कि अब तो आप पर वीडियो के डीवीडी भी रिलीज होने लगे, तब जगजीत ने मुस्कुरा कर कहा था कि विजुअल का जमाना है। संगीत सुनना भी चाहते हैं, देखना भी चाहते हैं। पहले हम लोग आवाज और संगीत के लिए जाने जाते थे, पर अब वीडियो में दिखना होता है। यह सब इसलिए क्योंकि यही बिकता है और बदकिस्मती से हम भी उसी जाल में फंस गए हैं।
मुहावरा बन गए जगजीत सिंह के गाए गीत
वर्ष 1978 में लायंस क्लब जालंधर ने जगजीत सिंह और उनकी पत्नी चित्रा का युगल कार्यक्रम था। यहां पर जगजीत सिंह ने इंद्रजीत हसनपुरी का लिखा एक पंजाबी गीत गाया था। इसके बोल थे 'ढाई दिन न जवानी नाल झलदी, कुड़ती मलमल दी...'। इस पर पंडाल में बहुत देर रात तक तालियों से गूंजता रहा। जगजीत सिंह ने लगभग सभी मशहूर शायरों की गजलें व गीत गाए। निदा फाजली की गजल 'होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है... से लेकर सुदर्शन फाकिर, जावेद अख्तर, इंदीवर व नजीर फाकरी की गजलें और गीत इतने मशहूर हुए कि मुहावरा बन गए। जैसे कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी, क्या-क्या देखा क्या बतलाएं, सारे मंजर भूल गए, उनकी गली से गुजरे तो अपना ही घर भूल गए, तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है उसको छुपा रहे हो...।
बेटे की मौत के बाद जालंधर में गुजारा समय
वर्ष 1990 में उस वक्त जब जवान इकलौता बेटा चल बसा और एक वर्ष तक जगजीत सिंह ने किसी भी मंच पर जाना छोड़ दिया। उनकी पत्नी चित्रा जी ने भी संगीत से संन्यास ले लिया। उस एक वर्ष में जगजीत सिंह कुछ समय तक जालंधर रहे और यहां उनके दोस्तों का एक बहुत बड़ा दायरा बन गया। कुछ डीएवी कालेज के सहपाठी और कुछ रेडियो स्टेशन से जुड़े कलाकार इन्हें दिलासा देते रहे। 1994 में इनके भजनों की एक कैसेट एचएमवी ने निकाली, परंतु वह सफल नहीं रही। कुछ समय बाद उस कैसेट का मात्र एक भजन 'हे राम...' संगीत प्रेमियों को मिला। यह कैसेट एक करोड़ से अधिक बिकी। जगजीत सिंह ने इसके बाद 'एक ओंकार सतनाम' की कैसेट 'हे राम" के अंदाज में निकाली। यह भी सराही गई।
तुम शहर-ए-मुहब्बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं...
धीरे-धीरे जगजीत सिंह फिर गीत-गजलों की दुनिया में वापस आ गए। एक बार उनके एक मित्र ने उन्हें पूछा कि आप जालंधर क्यों चले आए, तब उन्होंने कहा कि मैं जहां से आया हूं, उसके बारे में सिर्फ इतना ही कह सकता हूं 'पत्थर के सनम, पत्थर के खुदा, पत्थर के इंसा पाए हैं, तुम शहर-ए-मुहब्बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं'। यह कहते-कहते उनकी आंख की दहलीज पर एक कतरा पानी दिखाई दिया।
मां ने कहा था- वाहेगुरु की कृपा से बेटा तुम बहुत आगे जाओगे
जगजीत सिंह जिंदगी के आखिरी दौर में कहा करते थे कि शायरी का स्तर गिरता जा रहा है। कोई कुछ भी गा रहा है। किसी तरह की रोक-टोक नहीं है। पहले तो आकाशवाणी में एक गायक की आवाज की जांच होती थी। उसका स्तर तय होता था, तभी उसे कार्यक्रम में बुलाया जाता था। जगजीत सिंह को अपना बचपन याद आता तो कहते थे कि जब वह गुरुद्वारे में शबद गाने लगे तो मां ने कहा था कि बेटा वाहेगुरु की कृपा से तुम बहुत आगे जाओगे। हुआ भी यही।
8 फरवरी, 1941 जन्मा ये महान कलाकार 10 अक्टूबर 2011 को हमसे शारीरिक रूप से विदा हो गया था। उनकी आवाज आज भी सिर चढ़कर बोलती है। जब तक गीत और गजल सुनने वाले रहेंगे, तब तक जगजीत सिंह जीवित रहेंगे। कहा जाता है कि जो याद किए जाते हैं, वो अमर होते हैं।
-दीपक जालंधरी (लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं)
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एक अपूरणीय क्षति
ReplyDeleteजगजीत कभी मरते नहीं हैं
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