JNU/CAA/NRC
जब तक आप कथित, स्वघोषित हिंदू संगठनों, राजनीतिक दलों की आलोचना, मतलब बैंड बजाते रहेंगे, तब तक आप निष्पक्ष, उदार, प्रगतिशील, लोकतांत्रिक, संविधानवादी और पूरी तरह ईमानदार माने जाएंगे... लेकिन जैसे ही आप निष्पक्ष तरीके वाले, इन्हीं पैमानों पर अल्पसंख्यकों के संगठनों, राजनीतिक दलों, स्वघोषित समाजवादियों, उदारवादियों.. समझ रहे हैं न? हलांकि ए लोग भी उतने ही आक्रामक और बाकी सबकुछ हैं, पर इनकी एक खूबी है, इनकी भाषा साहित्यिक और विरोध काफ़ी रचनात्मक होता है। कुल मिलाकर ए विरोध बहुत अच्छा करते हैं। एकदम सपनों वाली बातें, किसे अच्छी नहीं लगती मानवतावादी, पुनर्जागरण के हसीन ख्वाब.. वाह.. बेहतरीन कविता पाठ, सच में मजा आ जाता है। ऐसे शानदार विरोध का हिस्सा बनकर, समाजवाद एकदम अंदर तक उतर जाता है। एकदम वैसे ही जैसे मेरी जाति या मेरा धर्म खतरे वाली तकरीर होती है और तब डिजाइनर त्रिशूल नजर आता है, हाथों में तलवारें लहराने लगती है। एकदम मीडिया फ्रेंडली, सब कुछ कैमरे के सामने, हलांकि पकड़ने का ढंग देखकर हंसी आ ही आती है। इसके मंचन के बाद, अब टीवी चैनल और सो...