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भक्त

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हमारे एक परम मित्र नया-नया मोदी जी से प्रभावित होना शुरू हुए हैं वैसे वो बहुत दिनों से मौके की तलाश में थे कि कोई उचित अवसर मिले और वो भी सिंधिया ही जाऐं। हालांकि राज्य सभा तो नहीं परन्तु भक्त मंडली की अमृत वाणी से स्वयं को अभिसिंचित करने का सौभाग्य उन्होंने हासिल कर लिया है।           बस निरंतर भक्तों की आलोचना करते रहने के कारण थोड़ा बहुत संकोच होना स्वाभाविक है उसी को दूर करना है इस प्रक्रिया में सर्वप्रथम स्वयं को आलोचकों से विरत होना होता है और भक्ति साहित्य का रसास्वादन करना होता है। ऐसे ही धीरे-धीरे व्यक्ति कब एक चरम भक्त बन जाता है उसे इस बात का ज्ञान ही नहीं होता।    आइए इस प्रक्रिया का थोड़ा मनोविश्लेषण करें कि यह भक्त बनने का प्रथम चरण किस प्रकार होता है। जिसमें व्यक्ति आसानी से यह बात स्वीकार नहीं करता और उसे निरंतर खास तरह के चैनलों से विचारपान करना पड़ता है इसके पश्चात कुछ और दिखाई देना धीरे-धीरे स्वयं ही बंद हो जाता है और वह पूरी तरह मोदी मय होकर, मोदी चालीसा का पठ करने लग जाता है। शुरुआत में किसी और से अपने बारे में यह सुनना, स्वयं के ज्ञान और समझ पर प्रश्न चि

OSHO

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झूठ अनेक, मगर सत्य! सिर्फ एक सत्य से दोस्ती कठिन  जीवन के हर आयाम में सत्य के सामने झुकना मुश्किल है और झूठ के सामने झुकना सरल। ऐसी उलटबांसी क्यों है? उलटबांसी जरा भी नहीं है; सिर्फ तुम्हारे विचार में जरा सी चूक हो गई है, इसलिए उलटबांसी दिखाई पड़ रही है। चूक बहुत छोटी है, शायद एकदम से दिखाई न पड़े, थोड़ी खुर्दबीन लेकर देखोगे तो दिखाई पड़ेगी। सत्य के सामने झुकना पड़ता है; झूठ के सामने झुकना ही नहीं पड़ता, झूठ तुम्हारे सामने झुकता है और इसीलिए झूठ से दोस्ती आसान है, क्योंकि झूठ तुम्हारे सामने झुकता है और सत्य से दोस्ती कठिन है, क्योंकि सत्य के सामने तुम्हें झुकना पड़ता है। अंधा अंधेरे से दोस्ती कर सकता है, क्योंकि अंधेरा आंखें चाहिए ऐसी मांग नहीं करता, लेकिन अंधा प्रकाश से दोस्ती नहीं कर सकता है, क्योंकि प्रकाश से दोस्ती के लिए पहले तो आंखें चाहिए। अंधा अमावस की रात के साथ तो तल्लीन हो सकता है, मगर पूर्णिमा की रात के साथ बेचैन हो जाएगा। पूर्णिमा की रात उसे उसके अंधेपन की याद दिलाएगी; अमावस की रात अंधेपन को भुलाएगी, याद नहीं दिलाएगी। मिठास के आदी हो गए तुम कहते हो, 'जीवन