CAA/CAB : नागरिकता संसोधन अधिनियम/बिल

नागरिकता संशोधन  अधिनियम-
ई #CAA /#CAB पर जो हल्ला मच रहा उसके पीछे मूलकारण अल्पसंख्यक शब्द है क्योंकि हमारे यहाँ जैसे ही ए शब्द आता है लोग तुरंत समझ जाते हैं कि इसका मतलब मुसलमान ही होता है। जबकि सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों यानी हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसियों कि बात कर रही है, जिनका उनके धर्म के कारण उत्पीड़न हुआ है और इनमें से जो लोग ३१ दिसम्बर २०१४ तक शरणार्थी के रूप में यहाँ आए हैं न कि घुसपैठिए बनकर, उन्हीं को नागरिकता दी जाएगी। मतलब इस बिल का भारत के नागरिकों से कुछ भी लेना देना नहीं है क्योंकि यहाँ किसी की नागरिकता छीनी नहीं जा रही है। साथ ही नागरिकता प्राप्त करने के दूसरे तरीकों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। अदनान सामी की तरह कोई भी नागरिकता के लिये आवेदन करके (शर्तों को पूरा करने के पश्चात) नागरिकता प्राप्त कर सकता है।
  पूरे प्रकरण में हर जगह अल्पसंख्यक-अल्पसंख्यक का बार-बार जिक्र होने से खुद को अल्पसंख्यक, पीड़ित और बेचारा का विशेषाधिकार रखने वाले लोगों को बड़ी आसानी से, कोई भी उनको खतरा है, वाली धारणा, उनमें महजता से स्थापित कर देता है और हाय रे समझ और शिक्षा... भाई.. कुछ.. अपने से भी पढ़ लिख लिया करो... ये what's app और Facebook के अलावा कुछ और नहीं पढ़ सकते तो, एक ठो Google भी होता है, इस पर भी कुछ देर search कर लो।
  खैर सरकारी सम्पत्ति तो अपना ही माल है, चाहे जितना तोड़ो, फूंको और मजे लो आगजनी का, वैसे भी भीड़ बनने का अपना ही आनंद है, क्योंकि कि सबसे डरपोक आदमी भी एक बड़ी सी सरकारी बस में या कहीं भी आग लगा देता है, जानते है क्यों? क्योंकि वह बेचेहरा होता है, वह सिर्फ भीड़ होता है जिसे कोई पहचान नहीं सकता। आप कहीं भी देखिए भीड़ हमेशा अराजक होती है और भीड़ से किसी संयमित व्यवहार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, बस लोगों को भीड़ बनने से रोकिए और खुदको उसका हिस्सा मत बनाइये। वैसे भी हमारे यहाँ दलीय सरकार की उम्र सिर्फ पांच साल होती है ऐसे में अपनी ताकत को जाया मत करिये और वक्त आने पर अपनी मनमाफिक सरकार चुन लीजिए जैसाकि अब तक करते आए हैं-
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   #rajhansraju

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         C/P

अच्छा तो अब आइए कानूनी और संविधानिक स्थिति को समझते हैं

     संवैधानिक निर्देशों के तहत बनाया गया नागरिकता अधिनियम, 1955 यह प्रावधान करता है कि कौन भारतीय नागरिकता हासिल कर सकता है और किस आधार पर-
       वह व्यक्ति भारतीय नागरिक बन सकता है, अगर उसने भारत में जन्म लिया हो या उसके माता-पिता भारतीय हों या एक निश्चित अवधि से वह भारत में रह रहा हो, इत्यादि। हालांकि अवैध प्रवासियों द्वारा भारतीय नागरिकता हासिल करना प्रतिबंधित है। एक अवैध प्रवासी वह विदेशी है जो: (i) वैध यात्रा दस्तावेजों, जैसे पासपोर्ट और वीजा के बिना देश में प्रवेश करता है, या (ii) वैध दस्तावेजों के साथ देश में प्रवेश करता है लेकिन अनुमत समयावधि के बाद भी देश में रुका रहता है।

      अवैध प्रवासियों को विदेशी अधिनियम 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) एक्ट, 1920 के अंतर्गत कारावास दिया जा सकता है या निर्वासित किया जा सकता है। 1946 और 1920 के एक्ट केंद्र सरकार को भारत में विदेशियों के प्रवेश, निकास और निवास को रेगुलेट करने की शक्ति प्रदान करते हैं। 2015 और 2016 में केंद्र सरकार ने दो अधिसूचनाएं जारी करके अवैध प्रवासियों के कुछ समूहों को 1946 और 1920 के एक्ट्स के प्रावधानों से छूट प्रदान की। ये समूह अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं जिन्होंने भारत में 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले प्रवेश किया है।  इसका अर्थ यह है कि अवैध प्रवासियों के इन समूहों को वैध दस्तावेजों के बिना भी भारत में रहने पर निर्वासित नहीं किया जाएगा या कारावास नहीं भेजा जाएगा।

      2016 में नागरिकता एक्ट, 1955 में संशोधन करने के लिए एक बिल पेश किया गया। यह बिल उन्हीं छह धर्मों और तीन देशों के अवैध प्रवासियों को नागरिकता की पात्रता प्रदान करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव रखता है। बिल भारत की विदेशी नागरिकता (ओसीआई) वाले कार्डहोल्डरों के पंजीकरण से संबंधित प्रावधानों में भी संशोधन प्रस्तावित करता है। इसे ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी को भेजा गया जिसने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी।  8 जनवरी, 2019 को बिल लोकसभा में पारित हो गया। हालांकि 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ बिल लैप्स हो गया। परिणामस्वरूप दिसंबर, 2019 को लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) बिल, 2019 को पेश किया गया।

            2019 का बिल अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासियों को नागरिकता की पात्रता प्रदान करने का प्रयास करता है। वह पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों को इस प्रावधान से छूट देता है। बिल ओसीआई कार्डहोल्डर्स से संबंधित प्रावधानों में भी संशोधन करता है। एक विदेशी 1955 के एक्ट के अंतर्गत ओसीआई के रूप में पंजीकरण करा सकता है, अगर वह भारतीय मूल का है (जैसे भारत के पूर्व नागरिक या उनके वंशज) या भारतीय मूल के किसी व्यक्ति का स्पाउस (पति या पत्नी) है। इससे वे भारत आने और यहां काम करने एवं अध्ययन करने जैसे लाभों को प्राप्त करने के लिए अधिकृत हो जाएंगे। बिल एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव रखता है जिसके अंतर्गत अगर ओसीआई कार्डहोल्डर केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी कानून का उल्लंघन करता है तो उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।

      बिल में प्रावधान है कि चार शर्तों को पूरा करने वाले प्रवासी भारतीयों के साथ एक्ट के अंतर्गत अवैध प्रवासियों के तौर पर व्यवहार नहीं किया जाएगा। ये शर्तें निम्नलिखित हैं: (क) वे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई हैं, (ख) अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हैं, (ग) उन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया है, (घ) वे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के कुछ आदिवासी क्षेत्रों, या ‘इनर लाइन’ परमिट के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों यानी अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड में नहीं आते।

जान लें भारतीय संविधान में नागरिकता के प्रावधान क्या हैं-
जन्म के द्वारा नागरिकता

26 जनवरी 1950 के बाद परन्तु 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति जन्म के द्वारा भारत का नागरिक है।

1 जुलाई 1987 को या इसके बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक है यदि उसके जन्म के समय उसका कोई एक अभिभावक भारत का नागरिक था।

7 जनवरी 2004 के बाद भारत में पैदा हुआ वह कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाता है, यदि उसके दोनों अभिभावक भारत के नागरिक हों अथवा यदि एक अभिभावक भारतीय हो और दूसरा अभिभावक उसके जन्म के समय पर गैर कानूनी अप्रवासी न हो, तो वह नागरिक भारतीय या विदेशी हो सकता है।

वंश के द्वारा नागरिकता

26 जनवरी 1950 के बाद परन्तु 10 दिसम्बर 1992 से पहले भारत के बाहर पैदा हुए व्यक्ति वंश के द्वारा भारत के नागरिक हैं यदि उनके जन्म के समय उनके पिता भारत के नागरिक थे।

10 दिसम्बर 1992 को या इसके बाद भारत में पैदा हुआ व्यक्ति भारत का नागरिक है यदि उसके जन्म के समय कोई एक अभिभावक भारत का नागरिक था।

3 दिसम्बर 2004 के बाद से, भारत के बाहर जन्मे व्यक्ति को भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा यदि जन्म के बाद एक साल की अवधि के भीतर उनके जन्म को भारतीय वाणिज्य दूतावास में पंजीकृत ना किया गया हो. कुछ विशेष परिस्थितियों में केन्द्रीय सरकार के अनुमति के द्वारा 1 साल की अवधि के बाद पंजीकरण किया जा सकता है। एक भारतीय वाणिज्य दूतावास में एक अवयस्क बच्चे के जन्म के पंजीकरण के लिए आवेदन देने के साथ अभिभावकों को लिखित में उपक्रम को यह बताना होता है कि इस बच्चे के पास किसी और देश का पासपोर्ट नहीं है।

पंजीकरण द्वारा नागरिकता

केन्द्रीय सरकार, आवेदन किये जाने पर, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत किसी व्यक्ति (एक गैर क़ानूनी अप्रवासी न होने पर) को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है यदि वह निम्न में से किसी एक श्रेणी के अंतर्गत आता है:--
भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले सात साल के लिए भारत का निवासी हो
भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी भी देश या स्थान में साधारण निवासी हो
एक व्यक्ति जिसने भारत के एक नागरिक से विवाह किया है और पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले सात साल के लिए भारत का साधारण निवासी है
उन व्यक्तियों के अवयस्क बच्चे जो भारत के नागरिक हैं
पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति जिसके माता पिता सात साल से भारत में रहने के कारण भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हैं।
पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति, या उसका कोई एक अभिभावक, पहले स्वतंत्र भारत का नागरिक था और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले एक साल से वह भारत में रह रहा है।
पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति जो सात सालों के लिए भारत के एक विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकृत है और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले वह एक साल से भारत में रह रहा है।

समीकरण के द्वारा नागरिकता

एक विदेशी नागरिक समीकरण के द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है जो बारह साल से भारत में रह रहा हो. इसके लिए आवश्यक है कि आवेदक 7 साल की अवधि में कुल 5 साल के लिए भारत में रहा हो और आवेदन से पहले उसने 12 महीने का समय भारत में व्यतीत किया हो.

भारत के संविधान की शुरुआत में नागरिकता

26 नवम्बर 1949 को भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवासित व्यक्ति भारतीय संविधान के सांगत प्रावधानों के अनुसार स्वतः ही भारत के नागरिक बन गये। (अधिकांश संवैधानिक प्रावधान 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आये) भारतीय संविधान ने पाकिस्तान के उन क्षेत्रों से आने वाले अप्रवासियों की नागरिकता के सम्बन्ध में भी प्रावधान बनाये हैं, विभाजन से पहले भारत का हिस्सा थे।
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