Mahakumbh

 महकुम्भ 2025 

महाकुम्भ मिलने, बिछड़ने, खोने, अच्छी-बुरी स्मृतियों कि कहानी कहने की जगह है जहां एक जन समुद्र जाने-अनजाने में गढ़ता है और फिर बारह साल के इंतजार में अपने लोगों को अपनी कहानी सुनाता है और कहानी महाकुम्भ का मायने समझने के लिए नये लोगों को आज कि तरह ही फिर से तैयार कर देती है और उस अनुभव से गुजरने के लिए लोग चल पड़ते हैं और ऐसे ही पिछली बार से बड़ा जनसैलाब तीर्थराज कि पावन भूमि पर एकाकार हो जाता है और सारी समझ, ज्ञान, तर्क,बुद्धि अपनी सीमाओं पर ठहर कर संगम क्षेत्र में आकर एक चित्त महाकुम्भ को निहारने के अतिरिक्त कुछ नहीं रह पाता ...

सोचिए महाकुंभ का वास्तविक अर्थ क्या हम/आप समझ पाए हैं तो और गहराई में अगर हम/आप महाकुंभ का अर्थ समझना चाहते हैं तो महाकुम्भ, सनातन, हिंदू, योगी,मोदी,बीजेपी विरोधी लोगों के वीडियो और वक्तव्य देखिए सुनिए कि वह किस तरह के वीडियो फोटो लोड कर रहे हैं और लगातार क्या बातें कह रहे हैं लिख रहे हैं तो आपको ज्यादा बेहतर जवाब मिल जाएगा, किस बात से दुखी हैं, भीड़ से दुखी हैं, जन समुदाय का जो समुद्र है, उससे दुखी हैं, 100 करोड़ से ऊपर हिंदुओं की जो आस्था है, वह कहीं एकजुट, बिना भेदभाव, जिसमें भाषा, जाति, क्षेत्र और संस्कृति से जुड़ी जो पहचान है उससे अभिन्न होकर किसी एक जगह पर सनातनी इकट्ठा हो सकते हैं वह भी संगम क्षेत्र में, जहां पर महाकुंभ हो रहा है और यह सनातनियों का सबसे बड़ा उत्सव है जो हर 12 साल पर होता है, 6 साल पर कुंभ होता है और बारह साल पर महाकुंभ होता है, हम किसी भी विचारधारा के समर्थक हों, विरोधी हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है अंततः कोई एक जगह ऐसी होती है जहां पर हम एक हो जाते हैं उस एक जगह का नाम ही महाकुंभ है। ऐसे में विरोधियों का दुखी होना स्वाभाविक है।

सोचिए यह जो धुर विरोधी और नए आस्थावान लोग हैं जो तीर्थयात्रा में और तीर्थ स्थल पर टूरिस्ट बनकर आना चाहते हैं और होटल वाली सुख सुविधा ढूंढ रहे हैं और वह भी ऐसे शहर में जहां पर 5 करोड़ से ऊपर लोग उपस्थित हों, वह भी मौनी अमावस्या के दिन, उस दिन क्या हाल था? 10 करोड लोग हमारे शहर में मौजूद थे, ऐसे में शहर की क्या हालत हुई होगी और कैसे चीजें संभली होंगी या संभाली गई होंगी इसकी कल्पना करके देखिए और जो लोग 10 करोड़ लोगों के जन सैलाब में मौजूद थे उनकी क्या हालत थी, सारे शहर के लोग, शासन, प्रशासन, पुलिस से जुड़े सभी लोग डरे हुए थे कि किसी तरह से मौनी अमावस्या निपट जाए।
अब सोचिए सड़कों की चौड़ाई मेला क्षेत्र में और शहर में पहले से तीन से चार गुना कर दी गई है पहले के कुंभ, महाकुंभ के दौरान महज 18 पीपा के पुल अधिकतम बनाए जाते थे। इस बार के महाकुंभ में 30 पीपा के पुल बनाए गए हैं। 41 स्नान घाट हैं उसके बाद भी सब कम पड़ जाता है सड़कों पर तिल रखने की भी जगह नहीं है और जब ऐसा हो जाता है तब इसी का नाम महाकुंभ हो जाता है अब सोचिए ऐसा अवसर फिर कब आएगा 12 वर्ष बाद और इन 12 वर्षों में कुंभ की कौन सी कहानी कही जाएगी। जिन लोगों ने भी मौनी अमावस्या पर स्नान किया और मेला क्षेत्र में मौजूद थे चाहे वह पुलिस, प्रशासन से जुड़े लोग थे, नाविक, स्नानार्थी, तीर्थयात्री, टूरिस्ट, देसी, विदेशी कोई भी थे।

इस तरह का जन सैलाब क्या वह अपने जीवन में कभी देखे रहे होंगे और अब 12 साल बाद क्या होगा कैसे होगा? यह तो 12 साल बाद ही पता चलेगा फिर आलोचनाएं होंगी, प्रशंसाएं होगी, सरकारें आएंगी जाएंगी, पता नहीं किस पार्टी की सरकार होगी, कौन व्यक्ति मुख्यमंत्री होगा, प्रधानमंत्री होगा, लेकिन जो यादें होंगी, स्मृतियां होंगी, वह कैसी होगी कि हम एक महासमुद्र के हिस्सा थे, कैसे बस संगम क्षेत्र में पहुंच गए और न जाने कब कैसे स्नान करके चले गए और इस दौरान कितने किलोमीटर चले, कई बार तो लोगों ने 50 किलोमीटर भी पैदल यात्रा कर लिया और पता ही नहीं चला, बस धक्का खाते, घूमते-घामते, इधर-उधर, एक ही जगह पर चार बार चक्कर लगाते, स्टेशनों की हालत, बसड्डों की हालत, सड़कों की हालत ,एक जैसी थी सब जगह महाकुम्भ था, जो रास्ते, पगडंडी गंगा की तरफ जा रहे थे सब महाकुम्भ बन गए थे, कहीं भी जगह खाली नहीं थी, देश के किसी भी कोने से जो गाड़ी महाकुंभ के लिए चल रही थी भरी पड़ी थी।
अब शिकायत किस बात का करेंगे? 10 करोड लोगों के साथ होने की शिकायत करेंगे, जाम की करेंगे, पैदल चलने की करेंगे, इधर से आने-जाने नहीं दिया गया, ऐसा क्यों था? ऐसा क्यों नहीं हुआ? वीआईपी मोमेंट, वीआईपी घाट? सब सही है, क्योंकि सब एक साथ घटित होने का नाम ही महाकुम्भ है, किसी की बात गलत नहीं है पर क्यों? तो इसका जवाब यही है उस दिन मौनी अमावस्या, वही अमौसा का मेला महाकुम्भ था।
तो अगर आपमें सामर्थ्य, हिम्मत, धीरज, आस्था, अनुशासन है तो आपको हफ्ता दस दिन मेला क्षेत्र में रहना चाहिए अंदर से कुम्भ, महाकुम्भ को समझना चाहिए और ए कुछ मिनट के फोटो वीडियो से दुखी या प्रसन्न मत होइए यह कुछ भी नहीं है। चलिए महाकुम्भ में नहीं आ सके तो कोई बात नहीं, इसका ककहरा आप माघ मेले में आकर पढ़ सकते हैं

और कुंभ को समझने की शुरुआत कर सकते हैं यह हर साल हमारे प्रयागराज में इसी संगम क्षेत्र में होता है और मौनी अमावस्या का स्नान इस मेले में भी होता है और भीड़ इतनी तो नहीं होती पर भीड़ कम भी नहीं होती, मतलब महाकुंभ और कुंभ की झांकी आपको देखनी हो, मेल प्रबंधन समझना हो और शाही/अमृत स्नान भी देखना हो तो उस दौरान आप उसका अनुभव कर सकते हैं फिर आपको व्यवस्था से शिकायत नहीं होगी और कैसे जीना है, कैसे रहना है, बड़ी आसानी से आप देख सकते हैं। हर तरह की खबरें लगातार आ रही है और इसके आलोचक महाकुम्भ की अच्छी व्याख्या कर रहे हैं। सब लोग अपने काम में लगे रहिए आखिर सबकी रोजी-रोटी का सवाल है। वैसे कुछ लोगों का विघ्न संतोषी स्वभाव आलोचना और व्याख्या उनके गिद्ध भाव से जुड़ा होने के कारण ही हैं फिर भी वह लगातार महाकुम्भ का कवरेज कर रहे और संगम क्षेत्र का लगातार दर्शन करा रहे हैं इसके लिए इनका आभार कि आप लगातार बता रहे हैं कि जब करोड़ों लोग कहीं इकट्ठा होते हैं तो क्या होता है और इसका वजह हिन्दुओं कि एकता, शक्ति, अभिन्नता का बोध और जन आस्था है जिसका मूल कारण महाकुम्भ है
©️राजहंस राजू

मीडिया और महाकुम्भ 

महाकुंभ जैसा अवसर हमारी हर जातीय धार्मिक पहचान को मिटा देता है और प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति रह जाता है और एक दूसरे के साथ खड़ा हो जाता है हम अपने प्रयागराज में इसका दर्शन बड़ी आसानी से कर सकते हैं क्योंकि जब कोई मदद कर रहा होता है तब वह कभी यह नहीं सोचता है कि सामने वाला कौन है बस जो कर सकता है उसे करना होता है और वह उसे करता है अब सोचिए ढेर सारे बड़े बुजुर्ग जो उम्र की एक जो सामान्य स्वस्थ रहने की सीमा है उसके पार जा चुके हैं और शरीर सिर्फ अपने जरूरी काम कर ले उस लायक ही बचा है ऐसे में तीर्थ यात्रा करना और मुक्ति की कामना करना एक स्वाभाविक गुण या जरूरत बन जाता है ।
ऐसे में शहर के सभी लोग बोलें या ना बोलें या फिर इस बात को कैसे कहना है कि हम समझ रहे हैं आपकी भावनाएं, यह कहने का तरीका उन्हें नहीं आता है लेकिन उन बुजुर्गों के साथ वह खड़े रहते हैं और जितना मदद कर सकते हैं, करते हैं, यह तादाद बहुत बड़ी संख्या में होती है लोग अपने घर के दरवाजे खोल देते हैं या फिर जैसी हैसियत है शरीर से, धन से, जगह से, भोजन से, लोगों के लिए जो कर सकते हैं, करते हैं और कहीं कोई न तो अपनी पहचान के बारे में सोचता है ना तो सामने वाले की, बस कुछ कर सकते हैं इसलिए कर रहे हैं और सबसे बड़ा धर्म या फिर यूं कहें पुण्य यही है और हर आदमी इस महाकुंभ में वह कमा लेना चाहता है।

जो दूर कहीं से आए हैं संगम में डुबकी लगाने के लिए, उन्हें जो पुण्य मिलेगा वह तो वही जाने पर यहां जो सेवा भाव से कर रहे हैं उन्हें निश्चित रूप से कुछ तो मिलता होगा और शायद उस चीज का नाम संतोष है।
दूसरी तरफ हमारे यहां गिद्ध मीडिया और कुछ लोग कुछ खास तरह के एजेंडे और बातों पर लगातार खुद को फोकस रखते हैं और शायद उनके व्यापार का यही तरीका है या यूं कहें सिर्फ मार्केटिंग और बाजार से कुछ कमा लेने की जो कोशिश है उसकी वजह से अजीबोगरीब हरकतें करते रहते हैं ।
सरकारें आएंगी जाएंगे व्यवस्था आज कोई और देख रहा है कल कोई और देखेगा हम भी आज हैं कल नहीं रहेंगे और चीजें जैसी चल रही है उससे कुछ बेहतर होगी या फिर बदतर होंगी लेकिन हम क्या कर रहे हैं हमारा क्या उसमें योगदान है हम किस तरफ हैं कुछ अच्छा करने की तरफ की सब बर्बाद करने की तरफ, हमारा परसेप्शन कुछ भी हो सकता है लेकिन अपनी तरफ से बेहतर करने की कोशिश हर समय निरंतर करते रहना है अब सोचिए समाचारों को रील की तरह आजकल कैसे बनाया जाता है कुछ मिनट कुछ सेकेंड के वीडियो कैसे समाज में फैल जाते हैं और कोई भी ऐरा-गैरा तुरंत सेलिब्रिटी बन जाता है और उसपर पैसों की बरसात होने लगती है ।

कोई बेवकूफी भरा वक्तव्य, वेशभूषा, कुछ भी बोल देने कि उनकी मूर्खता भरी क्षमता जो लगभग गाली गलौज जैसी ही होती है वही उनका गुण बन गया है और जो सब कुछ गोबर बना देता है।
जबकि मेला प्रशासन से जुड़े लोग जिसमें सभी जाति धर्म के लोग शामिल होते हैं और वह अथक परिश्रम करते हैं कि किसी तरीके से मेला संपन्न हो जाए सोचिए जब हमारे घर चंद मेहमान आ जाते हैं और गांव या आसपास कोई छोटा-मोटा मेला होता है। उसको हम लोग कैसे निपटाते हैं या फिर कितनी दिक्कत होती है और जब एक बड़ी व्यवस्था और पूरा सिस्टम कहीं लगा हुआ है और लाखों लाख लोग चले आ रहे हैं यह संख्या कितने करोड़ तक पहुंच जाएगी बस अनुमान लगाया जाता है अगर अनुमान सहज बना रह जाता है और सब कुछ इस अनुमान के अंदर रहता है तब चीजें व्यवस्थित कर ली जाती हैं और जब अनुमान ध्वस्त होने लगते हैं तब कितना मुश्किल हो जाता है काम करना। सोचिए हम जहां खड़े हैं हमारे आगे पीछे कितने लोग हैं या यूं कहें कितने लाख लोग हैं इसका भी अनुमान हम नहीं लगा सकते हैं ऐसे में धैर्य, अनुशासन की बहुत ज्यादा जरूरत होती है और फिर अब सबके हाथ में मोबाइल है हर आदमी फोटो वीडियो बना रहा है तो क्या लोड करना है क्या बताना है क्या दिखाना है इसकी भी जिम्मेदारी समझ में आ जाती तो कितना अच्छा होता।

यह देखो फैला जाति फला धर्म के लोगों ने अपने दरवाजे खोल दिए, क्या बकवास कर रहे हो? इसमें कौन सी अनोखी बात है, ऐसा तो किया ही जाता है, सभी लोग करते हैं यह खास जाति और धर्म का होने की वजह से नहीं किया जा रहा है, वह आदमी भावुक है ऐसा करता ही है वह जहां भी मौजूद होता है वह यही करता है अगर नहीं करता है जो लोग इस श्रेणी में नहीं आते करने वालों के, तब गलत होता है, उसे बात की भरपूर आलोचना होनी चाहिए निंदा होनी चाहिए,
क्योंकि करना तो सामान्य माना जाना चाहिए, मंदिर हो, मस्जिद हो सब इंसानों के लिए ही तो बने हैं। अगर उनके दरवाजे, उनके कपट नहीं खुलते हैं तब बुरा है।
जो लोग भी सरकारी सेवा में हैं या फिर किसी तरह की भी सेवा कर रहे हैं और अपने कर्तव्य से विमुख होते हैं और उसमें कोताही बरतते हैं तब बड़ा दुर्भाग्य होता है, काम करना बड़ी बात नहीं है काम तो करना ही चाहिए और आप इसीलिए हैं। जब आप काम करते हैं तब कोई बड़ी बात नहीं करते हैं लेकिन जब नहीं करते हैं तब आप गलत करते हैं तो ऐसे ही जो हमारा सोशल मीडिया है और जो लोग चंद सेकंड में वायरल होने की खोज में लगे हैं यह लोग अब गिद्ध की भूमिका में आ गए हैं जो लगातार सेंसेशन क्रिएट करने में लगे रहते हैं यह देखो ...
और सेंसेशन कहां से आता है मौत की खबरों से, बुरी खबरों से उनके फोटो वीडियो से, तो अगर आप इंसान हैं तो साबित करिए कि जिंदा भी हैं और आप में भावनाएं हैं तो उसका यही तरीका है, सभी तरह के फोटो वीडियो लोड करने से बचें और अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझिए।
गिद्ध होने से बचने की जिम्मेदारी हम सब की है आप चाहे जिसके समर्थक-विरोधी हो, चाहे जो एजेंडा चला रहे हों आपनी मूर्खता और व्यापार के चक्कर में समाज की समरसता को मत बिगाड़िए और जैसे चल रहा है चलने दीजिए बेहतर नहीं कर सकते हैं तो उसे खराब और ध्वस्त मत करिए, आपका इतना योगदान काफी होगा

©️राजहंस राजू

दुष्प्रचार से बचें

जिन लोगों को मेले के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं है , वह किसी तस्वीर या वीडियो पर भरोसा कर लेंगे कि सच में ऐसा है और ऐसी ही व्यवस्था है। कुछ ऐसे ही फोटो video लगातार बहुत सारे लोग share करते रहते हैं
जैसे VVIP और VIP को लेकर
पता चला जो VVIP एरिया आप बता रहे हैं यह अखाड़ा मार्ग पर, अखाड़ों के स्नान के लिए आरक्षित जगह है जो मुख्य स्नान पर्व के लिए होता है और ब्रह्म मुहूर्त से लेकर दोपहर तक अखाड़े लगातार अमृत स्नान करते हैं और पूरी दुनिया इन्हीं के दर्शन के लिए परेशान रहती है।
आम लोगों को उनके स्नान में कोई समस्या ना हो और वह सुरक्षित रहें इसलिए इन्हें आम लोगों से अलग कर दिया जाता है यह कोई वीआईपी घाट नहीं है और आम लोगों के लिए दस पक्के घाट और 31 सामान्य घाट हैं ऐसे में लोगों को बरगलाने के लिए लगातार इस तरह की तस्वीरों का इस्तेमाल सोची समझी शरारत के सिवा कुछ नहीं है।
जो VIP घाट है वह अलग है और वहां जब मुख्य स्नान नहीं होता तभी VIP का आगमन होता है। वह भी DPS नैनी में helipad बना है। वहां से Movement होती है और उसी तरफ अरैल घाट से ही संगम स्नान होता है और फोटो video बनाए जाते हैं उससे भी मुख्य मेला क्षेत्र और आम लोगों से लेना देना नहीं रहता । बाकी बकवास कोई भी कर सकता है

कृपया सभी लोग अपनी जिम्मेदारी समझें
कुछ भी बताने दिखाने की होड़ न लगाएं अर्थात
सबसे पहले सबसे तेज होने से बचना होगा
🙏🙏🙏
अफवाहों से बचिए धैर्य रखिए
ए महाकुम्भ है अर्थ समझिए
यहांँ जन आस्था का महासमुद्र है
कुछ भी सामान्य नहीं है
सबकी परीक्षा है
आस्था भक्ति
पुलिस प्रशासन
आम खास
हम सबके
कर्तव्य की
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कुम्भ में जाम

कुछ लोग पीपा पुल और रास्ता खोलने बंद करने को लेकर ज्ञान दे रहे हैं जबकि उन्हें ढंग से कुछ भी पता नहीं होता अब सोचिए पीपा पुल या रास्ता बंद करना जरूरी क्यों होता है तो सीधा सा जवाब है जिससे इस तरफ की भीड़ दूसरी तरफ कि भीड़ से अलग रहे क्योंकि हर तरफ भीड़ होती है और सब लोग संगम कि तरफ न जाएं इसलिए बंद किया जाता है जो जिस तरफ हैं वहीं नहाकर उसी तरफ से लौट लें और जरूरत के हिसाब से उन्हें खोला बंद किया जाता है ।
इसी शहर और जिले में भी व्यवस्था का संचालन किया जाता है और जो लोग जहां पर फंसे होते हैं उन्हें सिर्फ अपने आसपास का हिस्सा ही दिखाई पड़ता है जबकि प्रशासन हर जगह की movement के हिसाब से निर्णय लेता है और उसी हिसाब से कभी बिलकुल कहीं नहीं रोका जाता तो कभी कुछ किलोमीटर से लेकर शहर और जिले के border पर भी लोगों को रोकना पड़ जाता है और ऐसे में जो जहां फंसे होते हैं उनकी परेशानी समझी जा सकती पर लोगों का सुरक्षित रहना ज्यादा जरूरी है ऐसे कुछ घंटे की परेशानी सहने के लिए अनुशासन और संयम के साथ तैयार रहना चाहिए।
एक बात और मुख्य स्नान के दौरान कोई VIP movement नहीं रहता बाकी समय जब रहता है तो DPS नैनी में Helipad बना है वहां से VIP घाट (अरैल) पर बिना किसी और को बाधित किए आया-जाया जाता है और प्रशासन के लिए 30 पीपा पुल में से दो से चार जरूरत के हिसाब से आरक्षित रखा जाता है emergency services के लिए और VIP के लिए भी ... जिससे आम लोगों का लेना-देना नहीं होता कि कौन कहां आया गया। यह सिर्फ TV और social network पर ही चलता है। जहां गिद्ध अपने काम में लगे रहते हैं


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Comments

  1. महाकुंभ में सबकुछ अद्वितीय है

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  2. अद्भुत अलौकिक कुम्भ एकत्व का सही प्रतीक महाकुम्भ है

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