Raksha Bandhan | रक्षा बंधन

                                     बहनों द्वारा भाई की कलाई में बांधे जाने वाला एक मामुली धागा जो उनके उनके प्यार और उम्मीद का प्रतीक है कि मै तुम्हारे रहते सुरक्षित हूँ , फ़िक्र की कोई बात नहीं है मेरा भाई मेरे साथ है, भाई भी बहन के लिए दुनिया से लड़ने को तैयार है. अब चलिए इस अर्थ को थोडा और आगे बढ़ाते हैं, आज जिस तरीके से दुनिया बदल गयी है या फिर बदल रही है. वहां लड़कियों को कमज़ोर मानना उनका अपमान करना होगा, यह सच्चाई भी है की लड़कियां क़ाबलियत में लड़कों से किसी मामले में कम नहीं हैं, फिर भी  हम हर वक़्त अपनी लड़कियों को अतिरिक्त सुरक्षा देने में लगे रहते है, इसका परिणाम यह होता है की उनके अन्दर एक अनजाना डर बैठने लगता है और यह डर उनका आत्मविश्वाश धीरे-धीरे  कम करता जाता है, इसी वज़ह से घर के बाहर डरी सहमी बच्चियों को हम देखते हैं, जो खुद की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं होती, यह आत्म विश्वाश की कमी ही लड़कियों के खिलाफ होने वाली ज्यादती का सबसे बड़ा कारण है. हमारा पुरुष प्रधान समाज अब भी अपनी बीमार मानसिकता से बाहर  नहीं निकल पाया है और पाबंदियों के नए नियम, रोज़ गढ़ने में लगा है. सडकों पर हमारी बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं तो इसका मात्र कारण हमारे लडके या पुरुष हैं जिनका व्यवहार घर से निकलते ही अजीब पागलों जैसा हो जाता है. वह लड़कियों को ऐसे देखते और पेश आते है जैसे कोई आश्चर्य जनक प्राणी उनके बीच आ गया हो और अजीब हरकते शुरू कर देते है. अरे भाई घर पर जिस माँ, बहन, बेटी,पत्नी को छोड़कर आए हो यह भी उसी जैसी है और इसका भी घर है. अगर हमें अपनी लड़कियों को देश और समाज में सुरक्षा देनी है तो इसकी शुरुआत अपने घर से, अपने लड़कों से करनी होगी, जहाँ हम उन्हें महिलाओं का सम्मान करना सिखाएँ, उन्हें यह पता होना चाहिए की घर से बाहर कैसा व्यवहार करना है,  जिसकी सीख सिर्फ घर में दी जा सकती है और लड़कों को एक जिम्मेदार नागरिक बनाया जा सकता है. जो अपने आस-पास के लोगों से एक विनम्र व्यवहार करे न कि सड़क पर गुंडे और मवालियों जैसी हरकते करते नज़र आएं.
रक्षा बंधन, रक्षा करने का व्रत है, जहाँ व्यक्ति अपने को आत्मा, बुद्धि और शरीर से इतना सक्षम समझता है कि वह अपने भाई- बहन, परिवार , देश समाज सभी की सुरक्षा के लिए तत्पर रहने का व्रत लेता है, यहाँ सभी की सुरक्षा एक दूसरे से जुडी है क्योंकि हर इकाई, एक लम्बी चैन की आवश्यक कड़ी है. यहाँ सुरक्षा का अर्थ महिलाओं को कमजोर मानकर उनकी सुरक्षा नहीं करनी है बल्कि उन्हें भी इतना ताकतवर बनाना है कि वह खुद कि और अन्य लोगों कि सुरक्षा स्वयं कर सके. वैसे भी किसी महिला को कमज़ोर कहना पूरी स्त्री जात का अपमान होगा. यह धागा एक व्रत है, जिसे कोई भी किसी को बाँध सकता है, अगर भाई भी बहन कि कलाई में बांधे तो यह जो इस बात का एहसास कराएगा कि तुम कमज़ोर नहों हो. मै ही नहीं तुम्हे भी मेरी रक्षा करनी होगी और हम दोनों बराबर हैं. इस धागे कि जरूरत हम दोनों को है जिसने रिश्तों को बड़े प्यार से बाँध रखा है. 
                                                  तो क्या इस रक्षा बंधन हम इस बात का व्रत लेंगे कि हम अपने समाज को महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित बनाएगे. आज कहीं भी जात, धर्म, भाषा, देश को लेकर कोई भी समस्या हो सर्वाधिक शिकार महिलाओं को ही बनाया जाता है, कोई भी देश कैसा भी समाज हो सारे कानून और बंदिशें महिलाओं के लिए ही हैं. किस तरह उन्हें मारना है, प्रताड़ित करना है और फिर उसे नैतिकता और नियम का जामा पहना देना है. साथ ही साल में एक बार इस त्यौहार को भी मना लेना है. ऐसे ही बस अपना काम हो गया ? आखिर कब ? हम इस सुरक्षा बोध को जगाने की अपनी जिम्मेदारी निभाएँगे? 
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