shame
एक बार फिर हम पूरी दुनिया के सामने अपना मजाक बनाने में लग गए हैं.जहाँ जाति और मज़हब को लेकर हमें कोई भी भड़का सकता है और लोग मज़े के लिए तोड़ फोड़ में शामिल हो जा रहे हैं, बिना सही गलत जाने और यह वोट की राजनीति हमारे पूरे तंत्र को निकम्मा बना देती है. आखिर कब हम एक देश की तरह व्यवहार करना शुरू करेंगे, जहाँ एक ही मज़हब, एक ही पहचान हो, वह भारतीयता की हो, हम एक हैं, हम भारतीय हैं, हम एक दूसरे की सुरक्षा का करण बने न कि खतरा.. हमारी नयी पीढ़ी जो हर वक़्त नेट पर लगी रहती है, वह महज़ मनोरंजन कि तलाश करती रहती है और अनजाने में ही अफवाहों को तूल देने का काम कर जाती हैं. जबकि नेट पर जानने समझने के लिए ढेरों सामग्री होती है जिसे देखने पढ़ने कि फुर्सत किसी को नहीं होती, अरे भईया कुछ शेयर, लाइक करने से पहले उसके पीछे के मकसद को भी तो समझने कि कोशिश कर लो और आज बड़ी आसानी से पढ़े लिखे लोगों को भी कुछ शातिर लोग शिकार बना लेते हैं और हर जगह मज़ा लेने के लिए, बेकार, बेरोजगार लोगों कि फ़ौज तो मौजूद ही है. जो कभी कुछ समझने कि कोशिश ही नहीं करती, किसी भी कही सुनी बात को तुरंत सच मन लेने कि अजीब बीमारी हो गई है अरे अपने अक्ल का भी तो कुछ इस्तेमाल करो, आए दिन हमारे जाति और धर्म को लेकर खतरा उत्पन्न हो जाता है. फिर सुरक्षा देने के लिए पता नहीं कहाँ से एक नया नेता भी पैदा हो जाता है . क्या हमारे धार्मिक मान्यताओं का आधार इतना कमज़ोर है कि कोई भी ऐरा-गैरा जब चाहे इनकी जड़ें हिला दे? फिर इस लड़ाई झगड़े से क्या किसी को फायदा होता है? अगर होता है तो वह कौन है? कमसे कम एक बात तो निश्चित है कि वह आम आदमी नहीं है जो रोज़ जिंदगी के ज़द्दो ज़हद में शामिल है और किसी तरह से दो वक़्त कि रोटी का जुगाढ़ कर पाता है जिसकी जात-मज़हब से शायद ही किसी को वास्ता हो, हम किसी मजदूर से उसकी जात नहीं पूंछते और न ही रिक्शे वाले से. फिर यह आग किसने लगायी और घी कौन लोग डाल रहा हैं? समाज में एक ऐसा वर्ग हमेशा मौजूद होता है जिसके होने का आधार ही अरज़कता होता है और वह उसका सञ्चालन पूरे व्यवसायिक तरीके से करता है. उसे सिर्फ बहाना चाहिए अपने औचित्य को सिद्ध करने के लिए. हमारी नासमझी और कम जानकारी इनका काम आसान कर देती है. इसलिए हमें अधिक सचेत और जागरूक होने कि जरूरत है. हमें हर हाल में भीड़ और तोड़ फोड़ का हिस्सा होने से बचना होगा. खास तौर पर हमारा कोई इस्तेमाल न कर सके. यह जिम्मेदारी हमारे नवयुवकों कि कहीं ज्यादा है क्योंकि हाथों में लाठी डंडे लिए यही सबसे आगे नजर आते हैं, अब मुद्दा कुछ भी हो.
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