Manusmriti

मनुस्मृति के विषय में 

विश्व के विद्वानों का मत

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C/P- यह social media से प्राप्त ज्ञान है। ऐसे तमाम रोचक जानकारियों को एक जगह सहेज लेने में कोई हर्ज नहीं है। 
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मनु प्रतिष्ठा स्थानीय, राष्ट्रिय नही विश्व व्यापी है। विश्व के सभी विद्वानों ने मनु की प्रशंसा की है इस प्रकार मनु एक महान और व्यापक प्रभाव बाले महापुरुष है, जिनका भारत ही नही विश्व के अधिकांश साहित्य, इतिहास, वंशपरम्परा, संस्कृति, सभ्यता आदि से गहरा सम्बन्ध है। मनु के सम्बंधित मान्यताये विश्व के विद्वान लेखको में स्थापित और मान्यता प्राप्त है।
1.   ‘A history of Sanskrit Literature’ में संस्कृत साहित्य के समीक्षक यूरोपीय विद्वान लेखक ए. बी. कीथ मनुस्मृति के विषय में लिखते है की यह किसी समुदाय विशेष के लिए नही अपित राष्ट्र के समस्त वर्गों के लिए समानरूप से मार्गदर्शक है। इसका महत्व ‘ला बुक’ और धर्मशास्त्र दोनों तरह है। इसमें जीवन की अभिव्यक्ति और राष्ट्र की अंतरात्मा साकार हो उठी है। वह कहते है – “The Manusmriti however, is not merely important as law book, it is unquestionably rather to be compared with the great poem of Lucretius, beside which it ranks as the expression of philosophy of line, in that case, however, the views presented were merely those of a school of wide but not commanding influence; in Manu we have soil of a great section of a people. Characteristic also is the lack of individuality in the work, which causes so deep contrast with passionate utterances of Lucretius against tyranny of superstition tantrum religic potuit suadera malorum.” (P-443)

“Yet another early development within the Vadic Period was building up school of law in the wide sense of that term which includes religious and civil and criminal law. This must have been done together with the development of society and necessity for having some standards to guide the Brahmins who acted as adviser and judges to the ruling class. The smirit of manu…. Not to guide the life of any single community, but to be a general guide for all the classes of state” (P-404)  

2.    जर्मन के विख्यात फिलोस्फर नीत्से ने मनुस्मृति को पढने के बाद निष्कर्ष निकाला की मनुस्मृति एक बहुत ही उत्तम धर्मशास्त्र है। उसकी वर्णव्यवस्था बड़ी व्यावहारिक और न्यायोचित है। उन्होंने मनुस्मृति की प्रशंसा में यंहा तक कहा की “मनुस्मृति बाइबल से उत्तम धर्मशास्त्र है। बल्कि बाइबल से तो अश्लोलता और बुरइयो की बदबू आती है। अतः मनुस्मृति और बाइबल की तुलना करना ही पाप है।
“How wretched is the new testament compared to Manu. How foul it smells!” (Beyond Good and Evil)
नीत्शे ने मनु की समाज व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए कहा लिखा की “मानवता के पुनरुद्धार के लिए विश्व को मनु का अनुसरण करना चाहिए” उन्होंने पाश्चात्य देशो को नारा दिया था – “Close the Bible and open the Code of Many” (P-126)

3.   “ ए हिस्टरी ऑफ़ संस्कृत लिटरेचर” में प्रष्ठ संख्या 432 पर प्रसिद्ध यूरोपीय विद्वान ए ए मैकडानल लिखते है की मनुस्मृति बहुत प्राचीन और महत्वपूर्ण धर्मशास्त्र है।
“The most important and earliest of metrical smrities is the Manava Dharma shashtra or code of Manu.”
4.   भारत के प्रसिद्ध चिन्तक विद्वान एवं लेखक श्री अरविन्द, मनु को एक व्यक्ति ही नहीं अपितु एक पूरी संस्था, अर्थदेव (Demi-God) और दिव्यविधिप्रणेता (Divine-Degislator) मानते है। वे मनु के विधानों को व्यावारिक और सभी वर्गों के लिए समानरूप से उपयोगी घोषित करते है। “दि आइडियल ऑफ़ ह्यूमन यूनिटी” पुस्तक में लिखते है  -
His law is the manava-dhrmshashtra, the science of the law of conduct of the mental or human being and in this sense we may think of the law of any human society as being the conscious evolution of the type and lines which its Manu has fixed for it. If there comes an embodied Manu, a living Moses of Mohamed, he is only prophet of spokesman of Divinity who is veiled in the fire and the cloud, Jehovah on Sinai, Allah speaking through his angles.” (P-425

5.   ‘इंडियन नेशनलिज्म’ पुस्तक में प्र 35 पर डॉ ए. वी. एल. अवस्थी ने मनुस्मृति की प्रशंसा और महत्ता बतालाते हुए लिखा है  -
“Manu-smriti does not give expression to individual views, opinions and sentiments but to those of the nation. Manu is Mirror of age, reflecting the manners of customs and the opinions of the entire nation. The Hindus in their hear of heats believe that there is chosen land, where men must be born to be worthy of final salvation” (P-35)
6.   “Hindu religion, customs and manners” नामक प्रसिद्ध पुष्तक में यरोपियन विद्वान पी थामस ने मनुस्मृति की प्रशंसा करते हुए उसे ‘धर्मशास्त्र’ और ‘लॉ बुक’ के रूप में सबसे मुख्य, सबसे प्रमाणिक सबसे महत्वपूर्ण और सबसे पहला शास्त्र माना है वे लिखते है –
“Dharma shastra is the collective name for this various law books this Hindus, which regulate their political, religious, and social life…. Of all the law books, the code of Manu is the most ancient, comprehensive and authoritative…….. Manu seems to have been the first law – giver of Indo Aryans, and all later law givers accept his authority as unquestionable.”
The Code of Manu is of great antiquity, only less ancient than three Vedas. Later writers made additions in the name Manu, and some passages the code breathes the spirit of medieval writers
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7.   भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाक्रष्णन में अपनी विश्विख्यात पुष्तक ‘इंडियन फिलासफी’ में मनु को सर्वमान्य और सर्वोच्च प्रतिष्ठित ‘धर्मशास्त्र’ और ‘लॉ बुक’ बताया है। ‘मनु ला गिवर’ के साथ साथ सामाजिक तथा नैतिक व्यवस्थाओ के संस्थापक थे। मनुस्मृति नैतिक एवं सामाजिक विधान का ग्रन्थ है, उसमे उत्तम सन्देश है, वे लिखते है-  

Before we take up the Bhagvatgita we may refer briefly to the code of Manu, to which a high position is assigned among the Smritis. Attempts are made to relate the author of this law book with the Manu mentioned in the Vedas. In the Rig Vedas he is often called the father Manu. He is the founder of the social and moral order, who first settled the dharma. He is progenitor of mankind through he may not be an individual’s law-giver, the dharmashastra ascribed to him is held in great respect.” (P-515)
“This book is of popular character intended for those who cannot get the fountain head.” (P-516)

8. यूरोपियन लेखक लुईस रेनो अपनी पुष्तक “Religious of ancient India” में मनुस्मृति का महत्त्व इस रूप में दर्शाते है की मनु को उद्धत करके ही महाभारत में अपनी बाते कंही गई है। उनके मतानुसार महाभारत एक धर्म निरपेक्ष ग्रन्थ है इस प्रकार उसका आधाभूत ग्रन्थ मनुस्मृति भी धर्मनिरपेक्ष है  - 
“The earliest available text, the mahabaharata, which is rightly regarded as a ‘Summa’ of ancient Hinduism, devotes no special attention to religion, even in its didactic passages. Its inspiration if fundamentally secular, its task is to focus attention on a certain type of man, the ‘Kshatriya’. The law of Manu provides good illustration of the interlacing of themes in Indian literature: here we have a legislative text, or at any rate a book of legal maxims” (P-49)
9. एशिया के इतिहास पर पेरिस यूनिवर्सिटी से ड. लिट्. की उपाधि प्राप्त और बाजूत से पुरुस्कारों से सम्मानित येताहासिक विद्वान श्री सत्यकेतु विद्यालंकार ने ‘दक्षिण –पूर्वी और दक्षिणी एशिया में भारतीय संस्कृति’ नामक पुस्तक में इस विषयक बहुत से जानकारी दी है, वे लिखते है  -
(I)       फिलिपिन्स के निवासी यह मानते है की उनकी आचार संहिता मनु और लाओत्से की स्मृतियों पर आधारित है इसलिए वहां की विधानसभा के द्वार पर इन दोनों की मूर्तियाँ भी स्थापित की है। (P-47)
(II)      चम्पा (दक्षिण वियतनाम) के अभिलेखों, राजकीय शिलालेखो से सूचित होता है की वहां के कानून प्रधानतया मनु, नारद तथा भार्गव की स्मृतियों या धर्मशास्त्रों पर आधारित थे। एक अभिलेख के अनुसार राजा जयइन्द्रवर्मदेव मनुमार्ग (मनु द्वारा प्रतिपादित मार्ग) का अनुसरण करते थे। (P-254)
(III)      धम्मथट या धम्म्सथ नाम के ग्रन्थ वर्मा देश की आचार संहिताएँ और सविधान है। ये मनु आदि की स्मृति पर आधारित है । सोलहवी सदी में बुधाघोश ने उसे ‘मनुसार’ नाम से पाली भाषा में अनुदित किया है। धम्मथट के मनुसार नाम होना ही यह सूचित करता है की मनुस्मृति या मानव संहिता के अधर पर इसकी रचना की है। धम्म्सथ वर्ग के अनेक ग्रन्थ सतरहवीं और अठारहवीं सदियों में वर्मा में लिखे गये उनके साथ भी वर्मा का नाम जुड़ा हुआ है।
(IV)     कम्बोडिया के लोग मनुस्मृति से भली भांति परिचित थे। राजा उदयवीर वर्मा के सदोक काकमेथ से प्राप्त अभिलेख में ‘मानव नीतिसार’ का उलेख्य है, जो मानव सम्प्रदाय का निति विषयक ग्रन्थ था। मनु द्वारा ही मानव विचार सम्प्रदाय का प्रारंभ किया था। यशोवर्म के ‘प्रसत कोमनप’ से प्राप्त अभिलेख में मनुसंहिता का एक श्लोक भी दिया गया है। जो मनुस्मृति अ.2, श्लोक 136, प्र. 178 पर प्राप्त है। इसमें सामान व्यवस्था का विधान है।
(V)      राजा जयवर्मा प्रथम के अभिलेख में दो मंत्रियो का उल्लेख्य है, जो धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र के ज्ञाता थे । मनुसंहिता सद्र्श ग्रंथो को धर्मशास्त्र कहा जाता था। जो धर्मशास्त्र कम्बूज (कंबोडिया) देश में विशेष रूप से प्रचलित थे, उसमे मनुसंहिता का विशिष्ट स्थान था।
(VI)     बाली द्वीप, कम्बोडिया, चम्पा (दक्षिण वियतनाम, वर्मा, मलेशिया के अनुसार वर्णन मिलता है की वैदिक परम्परानुसार चार वर्णों की व्यवस्था थी। मंत्रोचारण पूर्वक यग्य(yagy) हुआ करते थे, वेदों और धर्मशास्त्रो पर आधारित ही आश्रम पद्धित से पठन पाठन होता था।
(VII)    थाईलेंड के लोग स्वमं को सूर्यवंशी और राम का वंशज मानते है। सूर्यवंशी राम का वंश सातवें वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से ही आरंभ होता है। अतः उनका वंश भी मनु का वंश है। इस प्रकार वे भी मनु के वंशज या संतान है। (“रामकथा की सर्जन भूमि रहा है थाई देश” – डॉ वेदग्य आर्य , दैनिक ट्रिब्यून (14-10-1990)
(10) The Cambridge history of India  में पञ्च भागो में इस बात का विशेष उल्लेख्य है की जब अंग्रेजो ने एशिया पर अधिकार किया तो कसी किस देश में और भारत में कहाँ कहाँ मनु का संबिधान चलता था या उसका गहरा प्रभाव था। वर्मा का विवरण देते हुये बताया है की वहां किस प्रकार मनुस्मृति के आधार पर संविधान बने। आदि संविधान निर्माता के रूप में मनु इतने प्रसिद्ध थे की प्रत्येक नए सविधान निर्माता को मनु की उपाधि से पुर्कारा जाता था –
Several of Alaungpaya’s Court poets were also field officers, such as Letwethondara (P-513) who served under the walls of Pegu; Letwethondara had been a writer to the Hluttaw council under the last king of Ava, and was one of the staff taken over by Alaungpaya. About 1750 the sonta Sayadaw (abbot) of Hsinbyugyun, mindu district, compiled the Manu Ring dhammathat (Law Book), which started the Fashion of attributing the decisions of Kaingsa Manu (P-497) to the ancient Sage Manu. By Alaungpaya’s order, his minister, the soldier Mahaarishi Uttamjaya, compiled the Manu Kye dhammathat, a compilation of existing laws and customs which passed into general use owing to its encyclopedic nature and to its written in simple Burmese with very little Pali.” (P-TV, P-508,509)
          “The wareru we owe the earliest law book in Burma that now survives. The Hindu colonists who came to the Delta a thousand years before had brought with them traditional laws ascribed to the ancient Sage Manu; theses law books were handed down in the Talaing Monasteries.” (Vol III, P551)
(11) इसी प्रकार नेपाल, बर्मा, थाईलेंड, बालीद्वीप, तिब्बत, श्रीलंका, जावा (इंडोनेशिया), सुमात्रा, कम्बोडिया आदि दुसरे देशो में भी मनु और मनुस्मृति का प्रभाव है, इनकी संस्कृति –सभ्यता और साहित्य के निर्माण में मनु या मनुस्मृति का प्रभाव ही नहीं बल्कि ये स्वंम को ‘मनु का वंशज’ भी मानते है और बालिद्विप में तो अभी तक मनु का ही वर्णाश्रम व्यवस्था चल रही है।
(12) “A History of Sankrit Literature’ में प्रष्ट 108 पर प्रो. मैकडानल स्पष्ट लिखते है की मनु मानव का पिता है;
Among the numerous ancient priests and heroes of Regvedas the most important is Manu, the first sacrifice and ancestor of the human race. The poet refer to him as ‘Our Father’ and speak of sacrifices as the people of Manu. (p-108)
(13) न्यूयार्क (अमेरिका) से प्रकाशित इनसाक्लोपिडिया में भी यही मत व्यक्त किया गया है की मनु मानव जाति के आदि पुरुष है –‘The name of Manu for the Primeval Law giver and father of mankind has a history going back to the ‘Rigveda’ (Encyclopedia of the Social Science p-260)
(14) अमेरिका से प्रकाशित ‘दी मैकमिलन फैमिली इनसाक्लोपिडिया” में भी कहा गया है की मनु मानव जाति के आदिपुरुष है और वही महत्वपूर्ण ग्रन्थ मनुस्मृति के प्रणेता है –
“Manu is the progenitor of the human race. He is thus the Lord and guardian of the living, and his name is attached to the most important codification of Hindu Law the manava Dharmshastra (Law of Manu).” (p131)
(15) ब्रिटेन से प्रकाशित ‘दी इनसाक्लोपिडिया ब्रिटानिका” में लिखा है –
in the mythology of India the first man, the legendary author of an important Sanskrit Cod of Law, the Manu-smriti.” (p-583)
(18) ऑक्सफ़ोर्ड से प्रकाशित ‘ दी ऑक्सफ़ोर्ड इंग्लिश डिक्सनरी में प्र. 284 पर मैन शब्द को मनु से सम्बन्ध बताया है देखे अन्य शब्द जो इंग्लिश में प्रयोग होते है  -
मेनिस  - Mennis         मनेस – Mannes          मैनिस  - Manis 
मैन्स - Mans            मनुस – Manuys          मनीस  - Mannis

(16) उपरोक्त मत को ‘दी न्यु इनसाक्लोपिडिया ब्रिटानिका’ में लिखा है  -
“Manu, the name is cognate with the Indo-European “Man” and also has an etymological with the Sanskrit verb man – “To think” (p-583)

(17) महात्मा गाँधी ने ‘वर्ण व्यवस्था’ पुस्तक में लिखा है “कि जाट पांत और गलत बातें मनु की लिखी अर्थात असली नही है। यह बाद के लोगों ने मिली है। वर्ण आश्रम व्यवस्था की जो तस्वीर आजकल पेश की जा रही है वह सही और असली नही है। असली व्यवस्था तो गुणकर्म योग्यता पर आधारित थी। बाद में समाज ने उसे छोड़ दिया।“ महात्मा कहते है “में मानता हूँ की वर्ण धर्म समाज की ऊँची से ऊँची भलाई के लिय सोची गई बढ़िया से बढ़िया प्रथा है। आज तो हम इसका ढोंग ही देखते है। हिन्दुओ को चाहिए की वर्ण धर्म की इस जूठन का नाश करके वे अपनी पुराणी शान को फिर से कायम करे। अगर इस  वर्णाश्रम को ही आप उखाड़ना चाहते है, तो आप हिन्दू धर्म को ही उखाड़ फेकेंगे।” (P-14,15)     
“आज हम जिसे वर्ण व्यवस्था मानते है, उसे में नही मानता, आज वर्ण धर्म मिटा हुआ दिखाई देता है। एक वर्ण भी अपना धर्म छोड़ देता है तो वर्ण मिट जाता है।“
विश्व के विद्वानों की लिस्ट बहुत लम्बी है जिहोने मनुस्मृति के विषय में उल्लेख्य लिखे।

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(2)

कवन जाति 

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जातीय बहस पर मजा लेने के लिए, शानदार मसाला और ए पूरी तरह C/P किया हुआ है। इसकी कोई भी बात प्रमाणिक होने का दावा नहीं है। ऐसे में दिमाग का खुला होना बेहद जरूरी है और इसे किसी पक्ष-विपक्ष में न माना जाय। वैसे इसके मनोरंजक होने में कोई संदेह नहीं है-
जैसे कि एक सवर्ण बहस कर रहा है- "जब आरक्षित वर्गीय के घर आरक्षित वर्गीय ही पैदा होता है ....और अनारक्षित के अनारक्षित ....यह वर्ग की ही बीमारी है ......मैं कहता हूँ .....मैं जन्म से सवर्ण हूँ ....पर सामाजिक आर्थिक स्तर से शूद्र ......पर ये वर्ग योजना मुझे sc का प्रमाण पत्र नहीं देगी ........तो सवर्ण के सवर्ण होना तो मजबूरी भी है और लाजिमी भी .....
एक पोस्ट ए भी मिली कि "लोग ए भी जान लें तो अच्छा होगा कि कौन लोग कैसे थे जो बाद में ब्राह्मण बने-
a) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे। परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की। ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है।
(b) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे। जुआरी और हीन चरित्र भी थे। परन्तु बाद मेंउन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये। ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया। (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(c) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए।
(d) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र होगए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। (विष्णु पुराण ४.१.१४)
(e) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए | पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। (विष्णु पुराण ४.१.१३)
(f) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। (विष्णु पुराण ४.२.२)
(g) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए। (विष्णु पुराण ४.२.२)
(h) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए।
(i) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने।
(j) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मणहुए। (विष्णु पुराण ४.३.५)
(k) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया । (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए। इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्यके उदाहरण हैं।
(l) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने।
(m) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपनेकर्मों से राक्षस बना।
(n) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ।
(o) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे।
(p) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया। विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया।
(q) विदुर दासी पुत्र थे। तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया।

मित्रों, ब्राह्मण की यह कल्पना व्यावहारिक है कि नहीं यह अलग विषय है किन्तु भारतीय सनातन संस्कृति के हमारे पूर्वजो व ऋषियो ने ब्राह्मण की जो व्याख्या दी हे उसमे काल के अनुसार परिवर्तन करना हमारी मूर्खता मात्र होगी। वेदों-उपनिषदों से दूर रहने वाला और ऊपर दर्शाये गुणों से अलिप्त व्यक्ति चाहे जन्म से ब्राह्मण हों या ना हों लेकिन ऋषियों को व्याख्या में वह ब्राह्मण नहीं हे. अतः आओ हम हमारे कर्म और संस्कार तरफ वापस बढे।
"कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम" साकारित करे.
सर्वं खल्विदं ब्रह्मं. ओम.

और हाँ! अब आते हैं मनूस्मृति पर, 
मनुस्मृति में ए भी है-

ब्राह्मण शब्द को लेकर भ्रांतियां एवं उनका निवारण
by-डॉ विवेक आर्य (fb post से)
ब्राह्मण शब्द को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं। इनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है।  क्यूंकि हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातिवाद है।  ब्राह्मण शब्द को सत्य अर्थ को न समझ पाने के कारण जातिवाद को बढ़ावा मिला है।
शंका 1 ब्राह्मण की परिभाषा बताये?
समाधान-
पढने-पढ़ाने से,चिंतन-मनन करने से, ब्रह्मचर्य, अनुशासन, सत्यभाषण आदि व्रतों का पालन करने से,परोपकार आदि सत्कर्म करने से, वेद,विज्ञान आदि पढने से,कर्तव्य का पालन करने से, दान करने से और आदर्शों के प्रति समर्पित रहने से मनुष्य का यह शरीर ब्राह्मण किया जाता है।-मनुस्मृति 2/28
                                     

शंका 2 ब्राह्मण जाति है अथवा वर्ण है?
समाधान- ब्राह्मण वर्ण है जाति नहीं। वर्ण का सीधा अर्थ केवल चयन या चुनना ही नहीं है और सामान्यत: शब्द वरण भी यही अर्थ रखता है। व्यक्ति अपनी रूचि, योग्यता और कर्म के अनुसार अनुकूल वर्ण को स्वयं तो वरण करता है पर उसे अंततः वरण करने का अधिकार समाज ही देता है, जब वह उसको इसके योग्य पाता या समझता है। इस कारण इसका नाम वर्ण है। वैदिक वर्ण व्यवस्था में चार वर्ण है।  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
चयनित कर्म है आधार पर जो ब्राह्मण बन जाता है उसके अधिकृत कार्य होते हैं, विधिवत पढ़ना और पढ़ाना, यज्ञ करना और कराना, दान प्राप्त करना और सुपात्रों को दान देना।
चयनित कर्म है आधार पर जो क्षत्रिय  बन जाता है उसके अधिकृत कर्म है विधिवत पढ़ना, यज्ञ करना, प्रजाओं का पालन-पोषण और रक्षा करना, सुपात्रों को दान देना, धन ऐश्वर्य में लिप्त न होकर जितेन्द्रिय रहना।
चयनित कर्म है आधार पर जो  वैश्य बन जाता है उसके अधिकृत कर्म है पशुओं का लालन-पोषण, सुपात्रों को दान देना, यज्ञ करना,विधिवत अध्ययन करना, व्यापार करना,धन कमाना,खेती करना।
चयनित कर्म है आधार पर जो  शुद्र बन जाता है उसके अधिकृत कर्म है सभी चारों वर्णों अर्थात समाज के सभी व्यक्तियों के लिए सेवा या श्रम करना।
शुद्र शब्द को मनु अथवा वेद ने कहीं भी अपमानजनक, नीचा अथवा निकृष्ठ नहीं माना है। मनु के अनुसार चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य एवं शूद्र आर्य है।-   मनु 10/4
                                                                          
शंका 3- मनुष्यों में कितनी जातियां है ?
समाधान- मनुष्यों में केवल एक ही जाति है।  वह है "मनुष्य"। अन्य की जाति नहीं है।

शंका 4- चार वर्णों का विभाजन का आधार क्या है?
समाधान- वर्ण बनाने का मुख्य प्रयोजन कर्म विभाजन है। वर्ण विभाजन का आधार व्यक्ति की योग्यता है। आज भी शिक्षा प्राप्ति के उपरांत व्यक्ति डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि बनता है। जन्म से कोई भी डॉक्टर, इंजीनियर, वकील नहीं होता। इसे ही वर्ण व्यवस्था कहते है।
शंका 5- कोई भी ब्राह्मण जन्म से होता है अथवा गुण, कर्म और स्वाभाव से होता है?
समाधान- व्यक्ति की योग्यता का निर्धारण शिक्षा प्राप्ति के पश्चात ही होता है। जन्म के आधार पर नहीं होता है।  किसी भी व्यक्ति के गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर उसके वर्ण का चयन होता हैं। कोई व्यक्ति अनपढ़ हो और अपने आपको ब्राह्मण कहे तो वह गलत है।
मनु का उपदेश पढ़िए-
जैसे लकड़ी से बना हाथी और चमड़े का बनाया हुआ हरिण सिर्फ़ नाम के लिए ही हाथी और हरिण कहे जाते है वैसे ही बिना पढ़ा ब्राह्मण मात्र नाम का ही ब्राह्मण होता है।-मनुस्मृति 2/157
शंका 6-क्या ब्राह्मण पिता की संतान केवल इसलिए ब्राह्मण कहलाती है कि उसके पिता ब्राह्मण है?
समाधान- यह भ्रान्ति है कि ब्राह्मण पिता की संतान इसलिए ब्राह्मण कहलाएगी क्यूंकि उसका पिता ब्राह्मण है।  जैसे एक डॉक्टर की संतान तभी डॉक्टर कहलाएगी जब वह MBBS उत्तीर्ण कर लेगी।   जैसे एक इंजीनियर की संतान तभी इंजीनियर कहलाएगी जब वह BTech उत्तीर्ण कर लेगी। बिना पढ़े नहीं कहलाएगी। वैसे ही ब्राह्मण एक अर्जित जाने वाली पुरानी उपाधि हैं।
मनु का उपदेश पढ़िए-
माता-पिता से उत्पन्न संतति का माता के गर्भ से प्राप्त जन्म साधारण जन्म है। वास्तविक जन्म तो शिक्षा पूर्ण कर लेने के उपरांत ही होता है। -मनुस्मृति 2/147
                                   

शंका 7- प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए क्या करना पड़ता था?
समाधान- प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए शिक्षित और गुणवान दोनों होना पड़ता था।
मनु का उपदेश देखे-
वेदों में पारंगत आचार्य द्वारा शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के उपरांत ही उसका वास्तविक मनुष्य जन्म होता है।-मनुस्मृति 2/148
ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, ये तीन वर्ण विद्याध्ययन से दूसरा जन्म प्राप्त करते हैं। विद्याध्ययन न कर पाने वाला शूद्र, चौथा वर्ण है।-मनुस्मृति 10/4
आजकल कुछ लोग केवल इसलिए अपने आपको ब्राह्मण कहकर जाति का अभिमान दिखाते है क्यूंकि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे। यह सरासर गलत है। योग्यता अर्जित किये बिना कोई ब्राह्मण नहीं बन सकता।  हमारे प्राचीन ब्राह्मण अपने तप से अपनी विद्या से अपने ज्ञान से सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शन करते थे। इसीलिए हमारे आर्यव्रत देश विश्वगुरु था। 
                                        

शंका  8-ब्राह्मण को श्रेष्ठ क्यों माने?
समाधान- ब्राह्मण एक गुणवाचक वर्ण है। समाज का सबसे ज्ञानी, बुद्धिमान, शिक्षित, समाज का मार्गदर्शन करने वाला, त्यागी, तपस्वी व्यक्ति ही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी बनता है। इसीलिए ब्राह्मण वर्ण श्रेष्ठ है। वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण को अगर सबसे अधिक सम्मान दिया गया है तो ब्राह्मण को सबसे अधिक गलती करने पर दंड भी दिया गया है। 
मनु का उपदेश देखे-
एक ही अपराध के लिए शूद्र को सबसे दंड कम दंड, वैश्य को दोगुना, क्षत्रिय को तीन गुना और ब्राह्मण को सोलह या 128 गुणा दंड मिलता था।- मनु 8/337 एवं 8/338
इन श्लोकों के आधार पर कोई भी मनु महाराज को पक्षपाती नहीं कह सकता।
शंका 9- क्या शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र बन सकता है?
समाधान -ब्राह्मण, शूद्र आदि वर्ण क्यूंकि गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर विभाजित है। इसलिए इनमें परिवर्तन संभव है। कोई भी व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण नहीं होता। अपितु शिक्षा प्राप्ति के पश्चात उसके वर्ण का निर्धारण होता है।
मनु का उपदेश देखे-
ब्राह्मण शूद्र बन सकता और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते है। -मनुस्मृति 10/64
शरीर और मन से शुद्ध- पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्राह्मण जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है।   -मनुस्मृति 9/335
                  
जो मनुष्य नित्य प्रात: और सांय ईश्वर आराधना नहीं करता उसको शूद्र समझना चाहिए। -मनुस्मृति 2/103

जब तक व्यक्ति वेदों की शिक्षाओं में दीक्षित नहीं होता वह शूद्र के ही समान है।-मनुस्मृति 2/172
ब्राह्मण- वर्णस्थ व्यक्ति श्रेष्ठ–अतिश्रेष्ठ व्यक्तियों का संग करते हुए और नीच- नीचतर व्यक्तिओं का संग छोड़कर अधिक श्रेष्ठ बनता जाता है। इसके विपरीत आचरण से पतित होकर वह शूद्र बन जाता है। -मनुस्मृति 4/245
जो ब्राह्मण,क्षत्रिय या वैश्य वेदों का अध्ययन और पालन छोड़कर अन्य विषयों में ही परिश्रम करता है, वह शूद्र बन जाता है। -मनुस्मृति 2/168
शंका 10. क्या आज जो अपने आपको ब्राह्मण कहते है वही हमारी प्राचीन विद्या और ज्ञान की रक्षा करने वाले प्रहरी थे?
समाधान- आजकल जो व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर अगर प्राचीन ब्राह्मणों के समान वैदिक धर्म की रक्षा के लिए पुरुषार्थ कर रहा है तब तो वह निश्चित रूप से ब्राह्मण के समान सम्मान का पात्र है। अगर कोई व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर ब्राह्मण धर्म के विपरीत कर्म कर रहा है। तब वह किसी भी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने के लायक नहीं है। एक उदहारण लीजिये। एक व्यक्ति यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है, शाकाहारी है, चरित्रवान है और धर्म के लिए पुरुषार्थ करता है। उसका वर्ण ब्राह्मण कहलायेगा चाहे वह शूद्र पिता की संतान हो। उसके विपरीत एक व्यक्ति अनपढ़ है, मांसाहारी है, चरित्रहीन है और किसी भी प्रकार से  समाज हित का कोई कार्य नहीं करता, चाहे उसके पिता कितने भी प्रतिष्ठित ब्राह्मण हो, किसी भी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने लायक नहीं है। केवल चोटी पहनना और जनेऊ धारण करने भर से कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। इन दोनों वैदिक व्रतों से जुड़े हुए कर्म अर्थात धर्म का पालन करना अनिवार्य हैं। प्राचीन काल में धर्म रूपी आचरण एवं पुरुषार्थ के कारण ब्राह्मणों का मान था। 
            इस लेख के माध्यम से मैंने वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण शब्द को लेकर सभी भ्रांतियों के निराकारण का प्रयास किया हैं। ब्राह्मण शब्द की वेदों में बहुत महत्ता है।  मगर इसकी महत्ता का मुख्य कारण जन्मना ब्राह्मण होना नहीं अपितु कर्मणा ब्राह्मण होना है।  मध्यकाल में हमारी वैदिक वर्ण व्यवस्था बदल कर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। विडंबना यह है कि इस बिगाड़ को हम आज भी दोह रहे है। जातिवाद से हिन्दू समाज की एकता समाप्त हो गई।  भाई भाई में द्वेष हो गया। इसी कारण से हम कमजोर हुए तो विदेशी विधर्मियों के गुलाम बने। हिन्दुओं के 1200 वर्षों के दमन का अगर कोई मुख्य कारण है  तो वह जातिवाद है। वही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। आईये इस जातिवाद रूपी शत्रु को को जड़ से नष्ट करने का संकल्प ले।
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फिर से जान लीजिए ए पूरा ज्ञान c/p से प्राप्त हुआ है। बस एक जगह लाने की कोशिश की गयी है। जो सोशल नेटवर्क पर आए दिन चलता रहता है। अच्छा लगे या बुरा? बस! गंभीर मत होइए! हंसिए, और अनावश्यक बहस में बिलकुल शामिल नहीं होना है।
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Comments

  1. सच से तो हम सब वाकिफ हैं
    मनमाफिक को चुन लेगा
    बाकी का जाने क्या होगा

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