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राज्यों के पुनर्गठन की आवश्यकता

जैसा कि सब लोग अवगत हैं कि उ०प्र० आबादी की दृष्टि से पूरी दुनिया में एक बड़ी इकाई है और इसके विकसित हुए बिना भारत अपने लक्ष्यों को नहीं प्राप्त कर सकता इसके लिए   इसे तीन भागों में बाँटा जाना अति आवश्यक है। जिससे प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। जो कुछ इस प्रकार हो सकता है-
(1) उ० प्र०- इसमें केन्द्रीय संभाग के 10 जिले और पूर्वी संभाग के 28 जिले मिलाकर यानी कि 38 जिलों का प्रदेश हो जिसके विकास के लिए- कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, बनारस और इलाहाबाद का एक पंचभुज हो सकता है, जो इस प्रदेश के विकास के लिए इंजन का काम करेंगे।
(2) रूहेलखंड - इसमें पश्चिमी संभाग के 30 जिलों से बनाया जाना चाहिए।
(3) बुंदेलखंड- इस संभाग में UP के 7 जिले आते है और तकरीबन इतने ही जिले MP के आते हैं। यह इलाका हमारे काफी पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। ऐसे में इसके समग्र विकास के लिए एक राज्य के रूप इसका अस्तित्व अति आवश्यक है।
    वैसे और भी प्रदेश हैं जो उस हाथी की तरह हैं जिसके सभी अंग सही ढंग से काम नहीं कर रहे है और उस राज्य के अंदर ही घोर विषमता है ऐसे में उन्हें गतिशील करने के लिए आवश्यकता के अनुसार उनको आकार देने का वक्त आ गया है। इसके लिए राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन तत्काल किया जाना चाहिए। ऐसे राज्यों की श्रेणी में तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, प० बंगाल और जम्मू कश्मीर को भी शामिल किया जा सकता है। जहाँ प्रशासनिक केन्द्रों से भयावह भौगोलिक दूरियाँ हैं। ऐसे में सदइच्छा के बाद भी वहाँ पहुँचा नहीं जा सकता।

From- my fb post- (19 March 2017)

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  1. वैसे और भी प्रदेश हैं जो उस हाथी की तरह हैं जिसके सभी अंग सही ढंग से काम नहीं कर रहे है

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