मानस से

रामचरित मानस 


वैसे आप अपनी समझ और जरूरत के हिसाब से कुछ भी समझने के लिए आजाद हैं। अब "रामचरितमानस" की इसी चौपाई को लीजिए ...
*"ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी"*
१. ढोल (वाद्य यंत्र)-
ढोल को हमारे सनातन संस्कृति में उत्साह का प्रतीक माना गया है इसके थाप से हमें नयी ऊर्जा मिलती है. इससे जीवन स्फूर्तिमय, उत्साहमय हो जाता है. आज भी विभिन्न अवसरों पर ढोलक बजाया जाता है. इसे शुभ माना जाता है.
२. गंवार {गांव के रहने वाले लोग )-
गाँव के लोग छल-प्रपंच से दूर अत्यंत ही सरल स्वभाव के होते हैं. गाँव के लोग अत्यधिक परिश्रमी होते है जो अपने परिश्रम से धरती माता की कोख अन्न इत्यादि पैदा कर संसार में सबका भूख मिटाते हैं. आदि-अनादि काल से ही अनेकों देवी-देवता और संत महर्षि गण गाँव में ही उत्पन्न होते रहे हैं. सरलता में ही ईश्वर का वास होता है.
३. शुद्र (जो अपने कर्म व सेवाभाव से इस लोक की दरिद्रता को दूर करे)-
सेवा व कर्म से ही हमारे जीवन व दूसरों के जीवन का भी उद्धार होता है और जो इस सेवा व कर्म भाव से लोक का कल्याण करे वही ईश्वर का प्रिय पात्र होता है. कर्म ही पूजा है.
४. पशु (जो एक निश्चित पाश में रहकर हमारे लिए उपयोगी हो) -
प्राचीन काल और आज भी हम अपने दैनिक जीवन में भी पशुओं से उपकृत होते रहे हैं. पहले तो वाहन और कृषि कार्य में भी पशुओं का उपयोग किया जाता था. आज भी हम दूध, दही. घी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न इत्यादि के लिए हम पशुओं पर ही निर्भर हैं. पशुओ के बिना हमारे जीवन का कोई औचित्य ही नहीं. वर्षों पहले जिसके पास जितना पशु होता था उसे उतना ही समृद्ध माना जाता था. सनातन में पशुओं को प्रतीक मानकर पूजा जाता है.
५. नारी ( जगत -जननी, आदि-शक्ति, मातृ-शक्ति )-
नारी के बिना इस चराचर जगत की कल्पना ही मिथ्या है नारी का हमारे जीवन में माँ, बहन बेटी इत्यादि के रूप में बहुत बड़ा योगदान है. नारी के ममत्व से ही हम हम अपने जीवन को भली-भाँती सुगमता से व्यतीत कर पाते हैं. विशेष परिस्थिति में नारी पुरुष जैसा कठिन कार्य भी करने से पीछे नहीं हटती है. जब जब हमारे ऊपर घोर विपत्तियाँ आती है तो नारी दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनकर हमारा कल्याण करती है. इसलिए सनातन संस्कृति में नारी को पुरुषों से अधिक महत्त्व प्राप्त है.
सकल तारणा के अधिकारी से यह तात्पर्य है-
१. सकल= सबका
२. तारणा= उद्धार करना
३. अधिकारी = अधिकार रखना
उपरोक्त सभी से हमारे जीवन का उद्धार होता है इसलिए इसे उद्धार करने का अधिकारी कहा गया है।
       अपनी सुविधा और राजनीतिक लक्ष्यों के लिए हर चीज का उपयोग अपने फायदे के अनुसार लोग करते आए हैं। इसे रोका तो नहीं जा सकता, पर अपने स्तर पर हम समझ जरूर सकते हैं किसी एक खास संदर्भ कहाँ से कहाँ ले जाकर उसके अर्थ का अनर्थ कर दिया जाता है। जहाँ एक ओर खुद को आधुनिक और समस्त अधिकारों के पक्ष में खड़ा होने वाला एक वर्ग है, जो सदैव यह साबित करता रहता है कि वंचितों के पक्ष में ही वह सब कुछ कर रहा है। बस उसकी एक शर्त है कि इन वंचितों का अगुआ यानि कि नेता सिर्फ़ वही रहेगा और उसी की सारी बात सच मानी जाएगी। हाँ एक बात और अगर कोई वंचित कोई और विचारधारा से सहमति रखता है तो उसे वंचित नहीं माना जाएगा...
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