सलाम-जापान


नियागी,फुकुशिमा में सिर्फ तबाही ही नज़र आती है, सब कुछ कूड़े के ढेर में तब्दील हो गया है. सुनामी की चपेट में आए ए वो जगह हैं जो मनुष्य और प्रकृति के बीच हो रहे टकराव का क्रूर परिणाम हैं या हम कहें कि प्रकृति कैसे मनुष्य कि सारी तैयारियों को कुछ पलों में नेस्तनाबूत कर देती है कि सारे  सिद्धांत और खोज नाकाफी लगने लग जाते हैं | आदमी प्रकृति के आगे हर बार बौना साबित हो जाता है. जब भी ए घटनाएँ घटती है, हमारे सीखने और समझाने के लिए ढेर सारी चीजें छोड़ जाती हैं. अब यह हमारे ऊपर है कि हम अपने जीने और रहने के तरीके कैसे बनाते और अपनाते हैं. इन घटनाओं के बाद घटने वाली दुर्घटनाओं में एक बड़ी सीख हर बार यह तो मिलती ही है कि प्रकृति से हम जीत नहीं सकते. इसलिए टकराव का रास्ता छोड़ना होगा. अपने विकास, उपलब्धियों और खोजों को प्रकृति से जोड़ना आवश्वक होता जा रहा है, विकास में संघर्ष और असंतुलन को दूर करना सभी सरकारों और संगठनों कि पहली प्राथमिकता होनी चाहिए क्योकि बाज़ार और उसका मुनाफा तभी हासिल होगा जब लोग बचे होंगे. नहीं तो इस आत्मघाती विकास को प्राकृतिक घटनाएँ महाविनाश में बदल देंगी.
                                                                                                                             इस दुःख और आपदा में भी कुछ बेमिसाल चीज़ें देखने को मिल रही हैं जो जापानिओं कि उपलब्धि ही कही जाएगी, जहाँ  एक ओर दुनिया भर के टी.वी. और अखबार लोगों को डराने और परमाणु खतरे से आगाह करने में लगे हैं, जिससे  एक नई बहस और बुद्धिवादी, मानवतावादी या फिर पर्यावरण प्रेमी होने के नए आयाम रचने कि कोशिश कि जा रही है और सरकारों कि आलोचना करने कि नई ऊर्जा मिल गई है. वहीं जापान के लोग एक दम शांत हैं, उन्हें न तो प्रकृति से शिकायत है और न ही सरकार से. इस भयानक तबाही और सब ख़त्म होने के बावजूद भी अपने लोगों के बचे होने कि उम्मीद है. जापान सरकार ने भी गायब लोगों को मृत घोषित नहीं किया है और लोगो कि उम्मीदों पर भरोसा बनाए रखा है.
                                                         जापानियों में फिर से खड़े होने कि ताकत कमाल की है, उन्होंने द्वितीय विश्व  युद्ध कि भयानक तबाही को बहुत ही कम समय में पीछे छोड़ खुद को दुनिया का सर्वाधिक विकसित देश बना डाला. जापानियों का अपने देश और अपने लोगों से कमाल का प्यार है. यह प्यार ही उनमे इस बात का आत्मविश्वास भरता है कि बहुत जल्द सब ठीक हो जाएगा, हर चीज पर काबू पा लिया जाएगा और सब कुछ पहले से भी अच्छा हो जाएगा. अब यही आत्मविश्वास शांत रहने कि प्रेरणा देता है जो उसे सिर्फ साढ़े तीन लीटर पानी पर गुज़र करने को तैयार कर देता है और चुपचाप लाइन में खड़ा हो अपनी बारी का इंतजार करने लग जाता है, उनमे किसी भी प्रकार कि कोई जल्दी नहीं है क्योंकि वह यह जानते है कि उसके आगे उसी के भाई-बहन खड़े है, जो उसी जैसी स्थिति से गुज़र रहे  हैं. उसे यह भी पता है कि किसी भी चीज़ को बनाने और बदलने कि शुरुआत खुद से ही होती है और जापानिओं का यह जज्बा ही, पूरी दुनिया में उनका अलग मुकाम बनता है. जापानियों  के इसी न हारने, न शिकायत करने और फिर उठ खड़े होने कि आदत को हम सलाम करते हैं || 
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