General means unreserve

हम लोग किसी भी मुद्दे पर निष्पक्ष बातचीत करने को तैयार नहीं, खासतौर पर यदि वह  जातीय-धार्मिक हुआ तो पहले से सब कुछ तय मनिए। तब सबकुछ शोर शराबे वाला, आक्रामक बहस में बदल जाता है। जहाँ सारे लोग सिर्फ चिल्लाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण संसद है और उसी का अनुसरण टीवी बहस से लेकर चाय की दुकान तक किया जाता है।
चलिए गरमी पैदा करने वाले विषय आरक्षण पर कुछ बात करते हैं। तो आरक्षण में कुल चार categories का बोध होता है।
1- General
2-Obc
3-Sc
4-St
अब समस्या कब शुरू होती है जब इस वर्ग व्यवस्था को वर्ण व्यवस्था जैसा मान लिया जाता है जो कालांतर में पूरी तरह एक बंद दकियानूसी जाति व्यवस्था में बदल जाती है जो खुद के श्रेष्ठ होने वाले भ्रम पर टिका है। थोड़ा बारीकी से गौर करिए तो आज की जो जातीय राजनीतिक व्यवस्था है वह इसे पूरी तरह से जाति व्यवस्था में बदल चुकी है। आप खुद को बुद्धि जीवी मानने के कारण इससे असहमत हो सकते हैं, पर! सच तो यही है।
        अभी कुछ दिन पहले चाय की दुकान पर समर्थक और विरधी जो कि आम लोगों के बीच से हैं, उन्हीं की बातचीत का उदाहरण देते हैं, इन लोगों की विशेषता ए है कि ए अपनी जाति के कारण ही किसी खास दल के समर्थक ही नहीं, बल्कि पूरी तरह भक्त हैं और इनमें से ज्यादातर लोग party के pumplate को किसी भी विषय पर पूर्ण और अंतिम सत्य मान लेते हैं।
           खैर! इनकी बहस और बोध पर आते हैं, तो ए सभी लोग इन categories को अपने जाति के हिसाब से अपना विशेषाधिकार समझते हैं और एक सामान्य बोध ए है या कराया जाता है कि सामान्य मतलब सवर्ण जातियों से होता है और ए भी एक तरह का आरक्षण है जो सवर्ण जातियों को है। जबकि यह unreserve, merit based होती है और इसमें ऊपर की merit में आने वाला हर व्यक्ति अर्ह होता है, जिसमें किसी जाति या category से कोई मतलब नहीं होता। बशर्ते उसने category का फायदा न लिया हो, जैसे किसी ने उम्र या फिर cutoff का फायदा लिया है तब वह सिर्फ़ अपनी category में ही Qualify करेगा, ए संशोधन कुछ समय पहले माननीय Supreme Court ने किया है।
              इस तरह जो categories हैं वो सिर्फ तीन हैं और सामान्य जैसी कोई category नहीं है जिसे एक category की तरह सम्बोधित किया जाता है। ऐसे में General की जगह None लिखा जाय तो ज्यादा अच्छा होगा। जिसे कुछ इस तरीके से किया जा सकता है-
1-Obc, 2-Sc, 3-St, 4-None
               अब दूसरे बिन्दु पर आते हैं। वह है इसका आकलन, देश को आजाद हुए और इस व्यवस्था को लागू हुए 70 साल हो चुके हैं और कम से कम किसी भी परिवार की तीन से चार पीढ़ियाँ गुजर चुकी हैं, तो अब किसी भी समाज या जातीय समूह पर इसका क्या और कितना प्रभाव पड़ा, किसका सशक्तिकरण हुआ और कौन पिछड़ा रह गया। कब तक उन जातीय समूहों को किस वर्ग में रखा जाय, इस पर भी एक सामान्य प्रक्रिया के तहत निरंतर विचार और  विश्लेषण होते रहना चाहिए, क्योंकि यह कोई जाति नहीं है जिसे छोड़ने पकड़ने में अलग से मसक्कत करनी पड़े, समय-समय पर इसका स्पष्ट और निष्पक्ष आकलन जरूरी है।
        यदि इतने साल के बाद भी वंचित लोगों की स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो कहाँ कमी रह गयी और तब हमें कुछ अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत होगी कि हम अपने वंचित समूहों को कैसे खुद से जोड़कर राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल कर पाए़ं, तो फिर बिना किसी के भक्त बने अपने को ज्ञान से समृद्ध करिए या फिर नारे लगाने और झंडा ढोने के लिए तैयार होइए आपकी मर्जी। ऊक सुझाव ए भी है कि what's app और fb के अलावा google गुरू भी हैं, जहाँ हर चीज की पूरी details है। उसको भी थोड़ा search करके पढ़ लीजिए आँख बंद करके किसी पर भरोसा मत करिए और सबसे तेज media वाले की तरह दूसरे का पक्ष जाने बिना किसी निष्कर्ष पर मत पहुँचिए।
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Comments

  1. कहते हैं कब्र में सुकून की नींद आती है
    अब मजे की बात ए है की ए बात भी
    जिंदा लोगों ने काही है

    ReplyDelete
  2. इस दुनिया को,
    आबाद रखने की यही शर्त है,
    इसका खारापन सोखने को,
    हमारे पास,
    एक समुंदर हो।

    ReplyDelete
  3. तुम रोशनी लेकर
    यूँ रात में
    क्यों फिरते रहते हो
    भला कौन खो गया है
    जिसकी तलाश में
    अंधेरे से लड़ते रहते हो
    यह रोशनी कितनों को
    रास्ते पर ले आएगी
    इसका अंदाजा तो नहीं है
    मगर तुम कहां हो
    यह सबको बता देगी।

    ReplyDelete

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