मेरा गाँव | My village

#Sonai, #सोनाई Uruva, Prayagraj 
यह दृश्य हमारे गाँव की "बम्बा देवी" का है। जो कि हमारी "ग्राम्य देवी" हैं। जैसा कि पुराने समय में हर गाँव के अपने देवी-देवता हुआ करते थे और हर घर में अपने-अपने ठाकुर महराज। अब ठाकुर महराज अधिकांश घरों से लुप्त हो चुके हैं। जबकि गांवों में उनके देवी-देवता बरकरार हैं और ऐसे दृश्य प्रायः हर गाँव में मिल जाते हैं।
   यहाँ के पूजा पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ पूजा का सारा काम महिला पुजारी करती है और जिस परिवार के लोग सदा से करते आ रहे हैं वो पासी जाति (SC) से हैं। अब यहाँ जाति के बारे में इस तरह लिखना अच्छा तो नहीं लगता...
  पर अपने समाज की इस खूबसूरती का जिक्र किया जाना चाहिए कि हम किस तरह की विरासत को अब भी संजोए हुए हैं कि एक ब्राह्मण बाहुल्य, वो भी गांव में, एक दलित, वो भी महिला, पुजारी है... हां पूजा कब होगी इसकी घोषणा भी यही करती हैं आमतौर पर जब गेहूँ की कटाई हो चुकी होती है और गांव के सभी लोग लगभग खाली होते हैं और जेठ का महीना तप रहा होता है। प्रायः इसी समय गांव के सभी लोग तीन दिनों तक अपने रसोई घरों में खाना नहीं बनाते, बल्कि घर के पिंड से बाहर, या पेड़ों की छांव में बिना तेल, मसाला यानी एकदम सादा भोजन.. इसके बाद सामूहिक पूजा... और बम्बा देवी का आशीर्वाद... 
   यह जानकारी यहाँ तक नहीं रुकती, यह फोटो गाँव के उत्तर वाली बम्बा देवी का है जो "बम्बा बारी" (बाग- हलांकि अब पेड़ न के बराबर हैं) में विराजमान हैं। इसी तरह रेलवे लाइन के दक्षिण में भी "बम्बा देवी" हैं और यहाँ की जिम्मेदारी "चमरौटी" के परिवार के पास है। गाँव में पहले अपने पहचान के आधार पर या फिर अपनी और परिवार की सुरक्षा के लिए यह "बभनान, पसियान, खटिकान, कुनबियान, ठकुरान की बसावट हुआ करती थी और इसके पक्ष-विपक्ष में अपने-अपने विमर्श हैं। फिलहाल इसके वास्तविक मतलब समझने हों तो राजनीतिक लक्ष्यों वाले परिभाषाओं और धारणाओं से मुक्त होना पड़ेगा।
     अब गांवों में भी जातीय पुरवा (मुहल्ला) टूट रहे हैं क्योंकि हर आदमी सड़क से जुड़ना चाहता है और रोजी-रोटी पूरी तरह शहर केंद्रित हो चुका है। ऐसे में अच्छा आवागमन, घर तक बिना किसी परेशानी, किसी भी वक्त और मौसम में पहुँच सकना अब पहली जरूरत बन गयी है।

     इस सड़क तक पहुँच और रोजगार की तलाश उसे अपने घरों से बहुत दूर ले जा रहा है और आज भी गांव में शादी-विवाह की रश्म बिना "बम्बा देवी" और "दूर बबा" के पूरी नहीं होती और जाति कभी कोई समस्या की तरह नहीं रही। आजकल जैसे ही परधानी का चुनाव घोषित होता है पूरे माहौल का राष्ट्रीयकरण हो जाता है... और गांव चुनाव के बाद लगातार अपने जख्म भरता रहता है और घाव भरने से पहले फिर चुनाव आ जाता है 
यही सच है,
हमारा, हमारे गाँव का ...
और शायद..
आपका, आपके गाँव का.. 
#rajhansraju
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Comments

  1. इस दुनिया को,
    आबाद रखने की यही शर्त है,
    इसका खारापन सोखने को,
    हमारे पास,
    एक समुंदर हो।

    ReplyDelete

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