Phobia Politics

डर की राजनीति 

दलित, अल्पसंख्यक, उदारता या secularism को 
खतरा, विमर्श और उनके इसी आधार पर संगठित होने की संभावना तभी तक है जब तक उन्हें मोदी की वजह से सत्ता से दूर रहने का ड़र सताता रहेगा और इन संगठनों को भी सत्ता मिलते ही मोटी मलायी खाने की होड़ मच जाती है। वैसे भी भारत के इतिहास में BJP के पूर्ण बहुमत वाली सरकार को तो सिर्फ चार साल हुए हैं... ऐसे में भारत को उदार, जातिमुक्त, वैज्ञानिक सोच से परिपूर्ण राष्ट्र का विमर्श करने वालों को मोदी का शुक्रिया कहना चाहिए कि मोदी की वजह से वो सब एक हो गये हैं और अब ए खुद सत्ता पाकर देश बचा लेंगे। अब वंचितों के सारे अधिकार जो मोदी सरकार ने छीन लिये, जिसे बाकी सरकारों ने दे रखे थे, वह उन्हें तुरंत मिल जाएगा।
    इस सत्य को स्वीकार करना इतना आसान नहीं है क्योंकि यहाँ मोदी का एक तरफ से महिमामंडन हो रहा है और ऐसे में आपको बुद्धि जीवी न माने जाने का खतरा है क्योंकि हमारे यहाँ एक निश्चित लकीर पर चलने को ही सही माना जाता है। जरा सोचकर बताइए आप लेखन और विमर्श में लगातार किसकी आलोचना कर सकते हैं... तो क्या बापू की तरह, बाबा साहब की कोई समालोचना होती है.. या फिर इस्लामिक बुद्धि जीवी, क्या इस्लाम के उदारवादी पक्ष को सामने लाते हैं? क्या दलित चिंतक कभी दलितों में व्याप्त ऊँच नीच की समस्या या अन्य समस्याओं के खिलाफ कोई एक जुट प्रयास करते दिखाई दिए हैं? अगर उनका पूरा विमर्श सुनना हो तो वह सिर्फ़ यह रहता है कि सवर्ण जातियों के लोग कितने बुरे और चालाक हैं और अतीत का सारा बदला आज की पीढ़ी से ले लेना है और स्वयं का सशक्तिकरण कैसे हो ए बात तो कहीं होती ही नहीं, उनका पतन कैसे हो, उनको नीचा कैसे दिखाया जाय, सारी बात यहीं आके रुक जाती है। शिक्षा जैसी चीज पर कोई बात नहीं होती, होनी भी नहीं चाहिए क्योंकि जो आदमी यह बात कर रहा है अब वह इतना सम्पन्न है कि उसे अपनी जाति, समाज का नेता यानी वही ब्राह्मण कहलाने में संदेह नहीं है और यह तभी सम्भव है। जब लोगों में असुरक्षा बोध निरंतर बनाए रखा जाय। वर्तमान में इन संगठनों के लिए और इनके द्वारा मोदी को भी इसी तरह गढ़ा जा रहा है। जो मोदी को सत्ता में ले आयी है और मोदी का यह अति विरोध ही, मोदी को ताकतवर बनाती है। राजनीति में आपको सदैव एक विरोधी चाहिए, जो आपके सामने एक लक्ष्य जैसा दिखाई दे, इसके लिए एक प्रतीक या चेहरा चाहिए.. वो कोई भी हो सकता है, जैसे दलित नेता बनने के लिए ब्राह्मणवाद, मोदी, RSS.. वैसे ही मोदी के लिए देश की सुरक्षा, राहुल गांधी, Islam phobia. अगर गहराई में देखा जाय तो वास्तव में कुछ हो ही नहीं रहा है और जीवन में आगे बढ़ने का संघर्ष व्यक्तिगत ही है जहाँ हर व्यक्ति को अपना यथार्थ ढूंढना है और मजा नेता बनने में है। आपकी जाति और पार्टी कोई भी हो...
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Comments

  1. इन रास्तों
    पगडंडियों पर
    लौट कर आना नामुमकिन तो नहीं है
    पर बगैर उंगलियों के लड़खड़ाने की
    अब हिम्मत नहीं है

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