Citizenship

नागरिकता 

नागरिकता हमारे यहाँ संविधान में सिर्फ कागजी दस्तावेज नहीं है बल्कि यह समस्त भारतीयों को प्राप्त एक स्वाभाविक अधिकार है। जो राजनीतिक दलों या फिर व्यक्तियों के बयानबाजी से प्रभावित नहीं होती क्योंकि यह अधिकार पूरी तरह संविधान और कानून से संरक्षित है। 
    राजनीति की अपनी मजबूरियां हैं। वैसे भी दलीय सरकारों का बनना लोकतंत्र की एक स्वभाविक प्रक्रिया है। इसी क्रम में राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए सभी राजनीतिक दल और महत्वाकांक्षी नेता नये-नये शगूफा गढ़ते रहते हैं और उसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसका कितना, विरोध होता है। यह विरोध ही उसके पक्ष में खास तरह का राजनीतिक ध्रुवीकरण करवाता है।
       चलिए फिलहाल नागरिकता पर ही बात करते हैं तो आपको मलूम होना चाहिए कि आधार कार्ड, राशनकार्ड... ए नागरिकता का प्रमाण नहीं माने जाते तो इसका मतलब ए नहीं है कि इन documents की कोई आवश्यकता नहीं है? बल्कि यह व्यक्ति के पहचाने जाने की एक विकेंद्रित व्यवस्था है कि आपको अलग-अलग कार्यों के लिए फलां-फलां document चाहिए तो इसका फायदा यह है कि व्यक्ति के पहचान का अधिकार किसी एक जगह केंद्रित नहीं होता या फिर नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे अलग तरह की समस्याएं जन्म लेगी और यह डर भी एक बहुलतावादी समाज में स्वाभाविक है कि सत्ता कहीं शोषण का कारण न बन जाए। 
       इस तरह की सोच और चीजों को ठीक करने के दूसरे प्रयास निरंतर होते रहे हैं और इस प्रयास में हमारे पास किसी भी काम के लिए कागजी अम्बार बड़ता गया और आपके लिए कैसे भी करके, किसी भी काम के लिए सारे कागजात पूरा करना, जंग जीतने जैसा है और इसी जंग की जद्दोजहद कम करने के लिए आधार कार्ड की शुरुआत की गयी मतलब अंगूठा लगाइए, पूरी तरह paperless, sim, bank account...ration.. Rail reservation, pension, scholarship.. आपके हाथ में। पर अभी यह चलना शुरू ही हुआ था कि कुछ छोटी-मोटी घटनाओं जैसे कुछ लोग राशन नहीं ले पाए, और e-fraud, कुल मिलाकर data security एक बड़ा मुद्दा बन गया। मतलब smart phone, social network के जमाने में... 
     खैर मुद्दा तो है ही... Supreme Court में writ... Judgment.. Condition apply... आधार आधा हो गया.. अब बिना आधार सिम ले सकते हैं। यहाँ बात होनी चाहिए कि इसको पहले से अच्छा और सुरक्षित कैसे बनाया जाए। जबकि हमने सिर्फ एकतरफ़ा... अब सुना है सरकार  Data security bill लाने वाली है। सोच लीजिए आपको किस तरफ रहना है... वैसे ज्यादातर लोगों की स्थिति match fixing जैसी है..
https://youtu.be/4zvDuaKzmgY
       तो बात यही हो रही थी कि हमारे पास यदि स्वाभाविक नागरिकता है तो उसका हमारे पास कोई एक निश्चित कागजात नहीं है बल्कि जब हमारी नागरिकता को किसी प्रकार की चुनौती मिलती है तब हम कहते है कि इन-इन कारणों से हम भारतीय हैं। जिसका उल्लेख नागरिकता अधिनियम में है। जिसे यहीं नीचे पढ़ लीजिए.... 
     जैसा कि दुनिया के सभी देश अपने नागरिकों का एक रिकार्ड रखते हैं और अपने संसाधनों को सही लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं। चलिए हम कुछ और सोचते हैं तो इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? इतना बड़ा देश, इतनी बड़ी आबादी, इतनी तरह सभ्यता-संस्कृति, सोच-विचार... एक शाश्वत भिन्नता हर जगह विद्यमान है। हमारे-आपके किसी भी निर्णय से नाराज होने वालों कि न्यूनतम संख्या भी करोड़ों में होती है। मतलब हमारे न्यूनतम संख्या की बराबरी अच्छे खासे देश अपनी पूरी आबादी से नहीं कर सकते।  बाप रे... चलिये कोई बात नहीं, हम ऐसे ही हैं।
      तो एक काम करिए खूब पढ़िये, समझिए और जब भी कोई बात कहिए उसमें तथ्य और तर्क हो, मतलब दम हो। न कि विरोध के लिए विरोध या फिर समर्थन के लिये समर्थन...
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https://rajhansraju.blogspot.com/2019/12/blog-post.html

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नागरिकता -

       हमारे पास भारत का नागरिक होने का सामान्य परिस्थितियों में कोई प्रमाण नहीं है क्योंकि हमारे पास किसी भी प्रकार नागरिक होने का विधिक और व्यवस्थित, कोई रिकार्ड या दस्तावेज नहीं है अलग-अलग समय पर एक नागरिक रजिस्टर बनाने के बारे में सोचा गया और सर्वोच्च न्यायालय के फटकार और निगरानी में असम में, वो भी 1985 के असम समझौते को ध्यान में रखकर एक कोशिश की गयी, जो भ्रष्ट सरकारी तंत्र और तमाम विसंगतियों की वजह से उतना संतोषजनक नहीं था क्योंकि उसमें असम के अधिकारों की सुरक्षा का मामला स्थानीय स्तर पर एक बड़ा मुद्दा बन गया और 1971 की deadline के कारण, अपनी संतति और निवास प्रमाणित करना आसान काम नहीं था। हालांकि तब की मतदाता सूची और दूसरे कागजात सरकार ने online जारी कर रखा है उसके बाद भी लोगों को सही होने के बाद भी खुद को सही प्रमाणित करने में पसीने छूट गए। वहीं जुगाड़ और लेनदेन करके अपात्र लोगों ने शीघ्रता से कागजी कार्रवाई पूरी कर ली और इसी परेशानी का हर जगह साहित्यिक व्याख्या हो रही है या यूँ कहिए सरकार को अच्छे से घेरा जा रहा है। जबकि जो हो रहा है वह propaganda ही है। जिसे सरकार पर कुछ खास वर्ग का अविश्वास, देश को एक निरंतर agitation mode में दिखा रहा है जबकि सब कुछ विशुद्ध राजनीतिक है। 

     तो आइये जान लेते हैं कि भारतीय संविधान में नागरिकता के प्रावधान क्या हैं- भाग 2 (Article 5-11)
1-जन्म के द्वारा नागरिकता
26 जनवरी 1950 के बाद परन्तु 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति जन्म के द्वारा भारत का नागरिक है।
1 जुलाई 1987 को या इसके बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक है यदि उसके जन्म के समय उसका कोई एक अभिभावक भारत का नागरिक था।
7 जनवरी 2004 के बाद भारत में पैदा हुआ वह कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाता है, यदि उसके दोनों अभिभावक भारत के नागरिक हों अथवा यदि एक अभिभावक भारतीय हो और दूसरा अभिभावक उसके जन्म के समय पर गैर कानूनी अप्रवासी न हो, तो वह नागरिक भारतीय या विदेशी हो सकता है।
2- वंश के द्वारा नागरिकता
26 जनवरी 1950 के बाद परन्तु 10 दिसम्बर 1992 से पहले भारत के बाहर पैदा हुए व्यक्ति वंश के द्वारा भारत के नागरिक हैं यदि उनके जन्म के समय उनके पिता भारत के नागरिक थे।
10 दिसम्बर 1992 को या इसके बाद भारत में पैदा हुआ व्यक्ति भारत का नागरिक है यदि उसके जन्म के समय कोई एक अभिभावक भारत का नागरिक था।
3 दिसम्बर 2004 के बाद से, भारत के बाहर जन्मे व्यक्ति को भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा यदि जन्म के बाद एक साल की अवधि के भीतर उनके जन्म को भारतीय वाणिज्य दूतावास में पंजीकृत ना किया गया हो. कुछ विशेष परिस्थितियों में केन्द्रीय सरकार के अनुमति के द्वारा 1 साल की अवधि के बाद पंजीकरण किया जा सकता है। एक भारतीय वाणिज्य दूतावास में एक अवयस्क बच्चे के जन्म के पंजीकरण के लिए आवेदन देने के साथ अभिभावकों को लिखित में उपक्रम को यह बताना होता है कि इस बच्चे के पास किसी और देश का पासपोर्ट नहीं है।
3-पंजीकरण द्वारा नागरिकता
केन्द्रीय सरकार, आवेदन किये जाने पर, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत किसी व्यक्ति (एक गैर क़ानूनी अप्रवासी न होने पर) को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है यदि वह निम्न में से किसी एक श्रेणी के अंतर्गत आता है:--
भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले सात साल के लिए भारत का निवासी हो
भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी भी देश या स्थान में साधारण निवासी हो
एक व्यक्ति जिसने भारत के एक नागरिक से विवाह किया है और पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले सात साल के लिए भारत का साधारण निवासी है
उन व्यक्तियों के अवयस्क बच्चे जो भारत के नागरिक हैं
पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति जिसके माता पिता सात साल से भारत में रहने के कारण भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हैं।
पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति, या उसका कोई एक अभिभावक, पहले स्वतंत्र भारत का नागरिक था और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले एक साल से वह भारत में रह रहा है।
पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति जो सात सालों के लिए भारत के एक विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकृत है और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले वह एक साल से भारत में रह रहा है।

4-समीकरण के द्वारा नागरिकता
एक विदेशी नागरिक समीकरण के द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है जो बारह साल से भारत में रह रहा हो. इसके लिए आवश्यक है कि आवेदक 7 साल की अवधि में कुल 5 साल के लिए भारत में रहा हो और आवेदन से पहले उसने 12 महीने का समय भारत में व्यतीत किया हो।
भारत के संविधान की शुरुआत में नागरिकता
26 नवम्बर 1949 को भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवासित व्यक्ति भारतीय संविधान के सांगत प्रावधानों के अनुसार स्वतः ही भारत के नागरिक बन गये। (अधिकांश संवैधानिक प्रावधान 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आये) भारतीय संविधान ने पाकिस्तान के उन क्षेत्रों से आने वाले अप्रवासियों की नागरिकता के सम्बन्ध में भी प्रावधान बनाये हैं, विभाजन से पहले भारत का हिस्सा थे।
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NDTV वाले अखिलेश शर्मा का यह लेख भी पढ़ लीजिए 👇👇👇👇

क्या आप जानते हैं कि किसी भी भारतीय की नागरिकता कैसे खत्म हो सकती है? नागरिकता कानून में इसका प्रावधान है। ऐसा सिर्फ तीन तरीक़ों से ही हो सकता है:

1. कोई भी व्यक्ति किसी अन्य देश का नागरिक बनने के बाद स्वतः ही भारतीय नागरिकता का त्याग कर दे।
2. कानून के ज़रिए नागरिकता खत्म करना। जब कोई भारतीय नागरिक किसी अन्य देश का नागरिक बन जाता है तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः ही समाप्त हो जाती है क्योंकि भारत दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता।
3. वंचन ( धारा10) केवल पंजीकरण या प्राकृतिककरण के जरिए प्राप्त की गई नागरिकता को ही रद्द किया जा सकता है। निम्नलिखित परिस्थितियों में, सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद, केंद्र सरकार किसी व्यक्ति को नागरिकता से वंचित करने का आदेश पारित कर सकती है:
(i) पंजीकरण या प्राकृतिककरण का प्रमाण पत्र धोखाधड़ी, गलत बयानी या छिपाव के माध्यम से प्राप्त किया गया था।
(ii) उस व्यक्ति ने भारत के संविधान के प्रति अरुचि या अप्रसन्नता दिखाई है।
(iii) व्यक्ति ने युद्ध के दौरान दुश्मन के साथ संवाद किया है।
(iv) उस व्यक्ति को भारत की नागरिकता प्राप्त करने के पांच साल के भीतर किसी देश में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। (v) व्यक्ति 7 वर्षों की निरंतर अवधि के लिए भारत के बाहर एक साधारण निवासी रहा है (जब तक कि निवास का उद्देश्य अकादमिक या सरकारी सेवा नहीं था। (स्रोत लाइव लॉ)

इन तीनों ही बिंदुओं से स्पष्ट है कि जो जन्म या वंश से ही भारत के नागरिक हैं उनकी नागरिकता किसी भी सूरत में नहीं छीनी जा सकती। वे तब तक भारत के नागरिक हैं जब तक कि वे स्वयं ही इसका त्याग नहीं कर देते या फिर किसी अन्य देश का नागरिक बनने से उनकी भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त नहीं हो जाती।

ऐसे में सवाल उठता है कि जब सीएए और एनआरसी के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे लोग ये कहते हैं कि वे बाप-दादाओं के जमाने से भारत में रहते आ रहे हैं और सीएए- एनआरसी आने से उनकी नागरिकता चली जाएगी तब उनसे पलट कर क्यों नहीं पूछा जाता कि वे किस आधार पर ऐसा कह रहे हैं? देश के किसी कानून में नागरिकता छीनने का प्रावधान नहीं है। जन्म और वंश के आधार पर जिन्हें नागरिकता मिली है वह उनसे कोई नहीं छीन सकता। यह संविधान में लिखा है। क्यों उनकी आशंकाओं का समाधान नहीं किया जाता? क्यों उनके डर को दूर करने के बजाए उसे दाना-पानी डाल कर सींचा जाता है?
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