It's politics
दरअसल इस समय जो पूरा विमर्श किसी भी मुद्दे को लेकर चल रहा है उसमें मोदीजी की anti muslim image और बेचारा मुसलमान वाला concept खेला जा रहा है और अनजाने में यह विरोध मोदी के पक्ष में जा रहा है (क्योंकि अल्पसंख्यक वोट के चक्कर में बहुसंख्यक वोट से हाथ धोना पड़ेगा। इसी वजह से बहनजी और दूसरे तमाम लोग चुप हैं) जबकि हमारे वामपंथी और कांग्रेसी इसे अपने अस्तित्व की लड़ाई मान रहे हैं तो इसका मूल कारण इनका खोया हुआ आत्मविश्वास है जहाँ इन्होंने मोदी को अजेय मान लिया है। विगत चुनावों में इन दलों के हाव-भाव से यह बात आसानी से समझी जा सकती है। जबकि हमारे आम लोग किसी को हौवा नहीं मानते और मात्र एक वोट से सरकारें बदल देते हैं।
हमारे प्रधानमंत्री जी की ताकत उनके विरोधियों की उनसे नफरत है क्योंकि जब विरोधी लगातार विरोध करते हैं तो आम लोगों को लगने लग जाता है कि आदमी सही है और काम कर रहा है इसलिए इतना विरोध हो रहा है। अब CAA के विरोध को देखा जाय तो यह मुस्लिम विरोध बनकर रह गया है और भाजपा विरोधी दलों और संगठनों को स्वंय का अस्तित्व बचाने का यह एक अंतिम रास्ता जैसा लग रहा है और इसको एक इस्लामिक चेहरा दे दिया गया है। फिलहाल anti modi वाला बौद्धिक वर्ग इससे इंकार कर रहा है जबकि यह चेहरा बनाने में उनका भी उतना ही योगदान है। यह भी उतना ही सच है कि उनकी लड़ाई किसी तरह की समानता और न्याय के लिए नहीं है क्योंकि इससे पहले उन्हें सत्ता में रहकर तमाम युगांतरकारी परिवर्तन लाने के अवसर मिल चुके हैं और उन्होंने ऐसी कोई गलती नहीं की जिससे समाज में कोई वास्तविक बदलाव आता और शायद ज्यादा समय तक सत्ता भोगने के कारण विपक्ष की भूमिका और जनता से संवाद करना भूल गए हैं। हमें तो लगता है कि वो संविधान की क्षमता पर भी यकीन नहीं कर पा रहे हैं। थोड़ा सा धीरज तो रखिए सिर्फ पांच साल, जो गलत हुआ है या हो रहा है आप उसे सही कर दीजिएगा। इसके लिए बस चुनाव जीतकर आना है पूरे संविधानिक तरीके से जैसे वर्तमान सरकार ने आपको हराया था उससे ज्यादा और शानदार तरीके से आप भी हराइए और सत्ता के मद में चूर हो जाइए।
खैर आगे बढ़ते हैं तो जान लीजिए कि हमारे यहाँ अजेयता जैसी कोई चीज़ नहीं है। चाहे तो इसका जवाब, थोड़ा इन परिणामों पर गौर करिए और आंध्रप्रदेश, उड़ीसा और झारखंड चुनाव को समझिए। जहाँ मोदीजी को क्षेत्रीय दलों ने मुद्दा नहीं बनने दिया। उनकी कोई आलोचना नहीं की और मीडिया की गाली-गलौज से दूरी बनाए रखी, अंदाजा लगाइए कि राष्ट्रीय मीडिया में ए भी खबर नहीं चल रही थी कि मुख्य प्रतिद्वंद्वी कौन है और परिणाम हमारे सामने है। सोचने कि बात है कि हमारे विपक्ष के स्टार प्रचारक मोदी जी को अपना प्रधानमंत्री नहीं मानते। ऐसे में लोकतंत्र, संविधान की चिंता कहाँ तक उचित होगी? ऐसे ही हम कोई भी लड़ाई लड़ने से पहले ही हार जाते हैं, तो यह हमेशा हमें तय करना होता है कि लड़ना है कि नहीं, और लड़ना है तो कैसे?
#rajhansraju
**********************
Comments
Post a Comment