Shahinbagh
शाहीनबाग
सही-गलत किसी कोने में छोड़ देते हैं, सलाम इस जज्बे को जो खुद के होने का यकीन दिलाता है। मैं सही-गलत नहीं, इस जज्बे के साथ हूँ। जो आवाज उठाना, खड़ा होना, सिखाता है क्योंकि जिंदगी में शुरूआत ही सबसे कठिन होती है और जब कोई लड़ना सीख लेता है तो उसे कोई और सही-गलत, बहुत दिन तक, नहीं समझा सकता।
धीरे-धीरे वह-सही क्या है?
वह यह भी जानने लग जाता है।
ऐसे ही उसमें समझने और ढूंढने की एक आदत आ जाती है और तब सोचिये.. यह आदत उसे कहाँ तक ले जाएगी... .?? ..
अब एक दूसरा पहलू भी देखते हैं कि सच में यह सब कुछ प्रायोजित न हो बल्कि हमारी महिलाओं ने अगर हक, स्वतंत्रता, समानता अधिकार, संविधान जैसे शब्दों का अर्थ समझ लिया तो क्या होगा? वैसे कर्तव्य वाला जो शब्द है, उसके अर्थ का ज्ञान हमें हमारी महिलाओं को देखकर ही होता है क्योंकि उनके पास इस कर्तव्य के विरासत को संजोने की जिम्मेदारी जन्म लेते ही मिल जाती है और वह इस बोध और दायित्व को अपने जीवन का हिस्सा बना लेती है। आमतौर पर वह किसी भी समाज में अधिकार की मांग नहीं करती या हम यूँ कहें उसे मांगने का कभी अधिकार नहीं दिया गया और तमाम धार्मिक रीति रिवाजों से उसे कसके बांधने की एक निरंतरता चलती रही है और समाज में आज भी कोई महादलित, महावंचित कोई है तो सिर्फ स्त्रियां हैं और इस वंचना को महिलाओं ने इतनी सहजता से आत्मसात कर लिया है कि उन्हें और अन्य लोगों को भी इस बात का बोध ही नहीं होता कि कुछ गलत हो रहा है... सब कुछ एकदम पूरी तरह सामाजिक, धार्मिक और सबको स्वीकार्य, बल्कि वैसा ही बने रहने का एक आग्रह... ठीक, वैसे ही जब कोई लम्बे समय तक अंधेरे में रहा हो तो उसका रोशनी से डरना कोई अस्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं मानी जानी चाहिए बल्कि धीरे-धीरे उसको रोशनी की तरह लेकर चलना चाहिए और जब आहिस्ता से आँख खुलती है तब रोशनी चुभती नहीं और तब वह रोशनी को जीने लगता है।
ऐसे में हमारे स्थापित सामाजिक मूल्यों का क्या होगा? जिसको अब तक उठाने की सर्वाधिक जिम्मेदारी हमारे प्रत्येक समाज में इन्हीं महिलाओं पर थी। सोचिये ए बेहद मौलिक बातें अगर हमारी महिलाओं ने थोड़ा भी समझ लिया तो..
समाज के ठेकेदारों की ताजपोशी उसी दिन बंद हो जाएगी, धर्म की दुकानें बंद हो जाएगी और हाथों में किताबें होंगी, हुनर होगा, कामयाबी होगी, बातचीत होगी, कहानियाँ, कविताएं, मंच होगा, हंसी-ठहाके होंगे, व्यंग्य होगा... ऐसे ही खेल-खेल में हंसी-मजाक में जिंदगी की बड़ी-बड़ी समस्याओं को आसान सा समाधान होगा।
जय हिन्द, जय भारत, जय संविधान
अच्छा है,
किसी बहाने,
उन दीवारों का दरकना,
जो तुझे बांधती हैं।
जबकि तूँ परिंदा है,
आसमान तेरा है,
तेरे पास पंख है,
और ए तेरे हैं,
यह एहसास जरूरी है,
सही-गलत का फैसला,
खुद ही तय करना है,
बस! बिखरे पड़े शब्दों को,
करीने से रखना है,
तुझे कोई,
क्या समझाए,
जब,
तेरे पास तालीम है,
चंद लकीरें खींचनी है
खुद को रौशन करना है,
बस..
पढ़ना है, पढ़ना है।
तूँ भीड़ बिना भी,
मुकम्मल है,
यकीं मानों,
तुझसे ज्यादा,
किसी को कुछ नहीं आता,
बड़ी-बड़ी बातों के लिए,
चंद किताबें पलटनी है,
तेरे पास तालीम है
तेरे हिस्से वाला सच,
तुझे ढूंढ़ना है
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