Jai ho

अपनी भी जय हो, 
तुम्हारी भी जय हो,
 
चलिए एक reality check करते हैं अपने phone के social network वाले app खोलिए और किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि आप अपनी जाति और धार्मिक बोध वाले कितने संगठनों के group में हैं। मनोरंजन के लिए एकाध है तो कोई बात नहीं।
     परंतु.. यदि आपके विश्वसनीय ज्ञान का स्रोत इन्हीं का अध्ययन है तो समझ लीजिए आपका कल्याण हो गया। ऊपर से किसी राजनीतिक दल वाला  group है तो.. आपके लिए वैधानिक चेतावनी... अपने को मानसिक विकारों से बचाने के लिए ऐसे group से तुरंत बाहर निकालिए और इसका आसान तरीका यही है कि अपने जाति और धर्म से इतर मित्र बनाइए और खूब हंसिए ... 
           और ऐसा करने का मन न कर रहा हो तो दूसरी पार्टी के कार्यकर्ताओं या विचारधारा के अंधभक्तों से उलझिए मत क्योंकि आप भी उन्हीं में से एक हैं। ऐसे में अपने देवता के लिए मंगलगान करना, आप ही की तरह उसका भी पुनीत कर्तव्य है। तो बोलो.. जय...  
 (अरे अपना-अपना नारा नहीं लगाना क्या?) 
  अब बात थोड़ी आगे बढ़ाते हैं और सोचिए हममें से ज्यादातर लोग किसी भी बात का समर्थन विरोध क्यों कर रहे हैं। इस मनोवैज्ञानिक का भी आकलन होना चाहिए - 
कोई व्यक्ति अपना थोड़ा सा परिचय देकर कहे तो उसके किसी भी पक्ष में होने पर भला किसे आपत्ति होगी। 
जैसे - :
मैं फलाने... 
फला पार्टी.. 
फलानी विचार धारा... 
का भक्त हूँ। 
जैसे ही यह महा ज्ञान अन्य लोगों तक पहुँचता है, हम सहानुभूति के पात्र बन जाते हैं क्योंकि हमारे विचार के मूल कारण से कम अक्ल लोग भी परिचित हो चुके होते हैं। एक और काम किया जाना चाहिए कि अखबारों और अन्य समाचार व्यापार से जुड़े बड़े और कुटीर व्यापारियों को भी अपना इसी तरह का परिचय स्पष्ट कर देना चाहिए। इससे यह सुविधा हो जाती है कि अपनी भक्ति वाला भजन कहाँ होता है बाकी कौन बिना मतलब पढ़ने लिखने समझने की माथापच्ची करे। कुछ भी समझ लेने से बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाता है क्योंकि आप "अपने" घोषित लोगों का सबसे पहले विरोध करेंगे।
    अरे कहाँ फर्जी परेशान हो रहे हैं फलाने कह रहे हैं, हमारे लिए वही अंतिम सत्य है ... वैसे भी हम समर्थक/विरोधी ठहरे। जो भी हो हमे अपने काम से मतलब... 
सही-गलत गया.... 
 ©️rajhansraju
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  हमारे यहाँ "इश्क़" शब्द जैसे ही कहीं सुनाई पड़ता है तो निश्चित मानिए कि अब कोहराम मचने वाला ही है और इसकी शुरुआत घर से ही होती है, जैसे बच्चों कि हमारे रहते हिम्मत कैसे पड़ी कि उन्होंने ए कारनामा कर दिया। लोग क्या कहेंगे, शर्म आनी चाहिए.. आप का बच्चा इस माहौल में भी ... कम्बख़्त इश्क करता है। जबकि उसे कहीं पत्थर मारना चाहिए था, हिंदू-मुसलमान वाला नारा लगाना चाहिए था, नहीं तो कम से कम अपनी जाति वाली पार्टी का झंडा तो थाम ही लेना चाहिए था। ए तो किसी काम का नहीं है, बहस करता है, सवाल उठाता है और भी बुरी आदतें हैं इसमें, और तो और इसके दोस्त भी ऐसे ही हैं। आज के जमाने में जहाँ लोग चोरी, दलाली और बेइमानी से लाखों, करोड़ो का वारा न्यारा कर रहे हैं तब ई कह रहे हैं कि नुक्कड नाटक से जागरुकता लाएंगे, और बच्चों को कविता, कहानी, पेंटिंग सिखाने चले हैं.. जबकि खुद तो चार पैसा कमाना तो सीख नहीं पाए.. फिर वही बड़ी-बड़ी बात कि इश्क सिर्फ जिस्मानी नहीं होता, यह रुहानी है और यह जरूरी नहीं है कि इश्क केवल इंसान से हो, यह तो किसी नदी, पहाड़ या फिर किताब से भी हो सकता है, हर उस खूबसूरत चीज से हो सकती है। जो इस जहान को और भी खूबसूरत बनाती हो। लो फिर वही प्रवचन शुरू हो गया, भाई तुम जैसे लोग किताबों में ही अच्छे लगते हैं, अपना ज्ञान अपने पास रखो, हमें दो वक्त की रोटी और अपनों की हिफाजत चाहिए .. अरे भाई तुम लोग कइसे आदमी हो इतना लात घूँसा खाने के बाद भी.. एकदम्मइ .. बदलते नहीं हो, .. सच में इश्क का मतलब जैसे तुम्हइ समझते हो .. वैसे कुछ खाए वोए हो कि नहीं ... एक बात अउर कहें .. देश, कविता, कहानी और पेंटिंग से  इश्क करने से ज्यादा लोगों को दिक्कत नहीं होती.. बुरा मत मानिएगा, वैसे आप ज्यादा जानते हैं.. पर ई बताएँगे कि आप किस जाति ..??? rajhansraju








आज सवेरा लेकर आया, 
भरा पूरा एक नया वर्ष, 
दे दिया खामोशी से,
झोली भरके,
न जाने क्या उसने आज? 
अपनी-अपनी गठरी,
सब धीरे-धीरे खोलेंगे, 
किसके हाथ क्या आएगा? 
ए आने वाला पल बतलाएगा, 
कभी खुशियाँ हाथ लगेंगी, 
या फिर आँख छलक जाएगी, 
खूब अँधेरा होगा जब, 
हम जुगनू बन जाएंगे, 
ऐसे ही हम सब, 
हाथ थाम कर एक दूजे का, 
आगे बढ़ते जाएंगे
-Rajhans Raju






















































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