तुम हार नहीं सकते


दोस्त तुम हार नहीं सकते वह भी चंद
 वाहियात लोगों की बेवकूफी भरी बातों से तो बिलकुल भी नहीं। हमारे समाज में जो विष बेलें फैली है वह तुरंत ख़त्म हो जाएगी यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए, वह भी ऐसे हालात में जब सारी चीज़ें सिर्फ नफा-नुकसान के तराजू पर तौली जा रही हो और अधिकतर लोग बेचने-बिकने को तैयार बैठे हो। ऐसे में सच होना और उसके साथ खड़ा होना दोनों ही कठिन काम होगा, सोचिए हमारे जातीय धार्मिक पहचान के कारण कुछ लोग अगर सवाल उठाते हैं वह भी अपनी कमअक्ली के कारण तो ऐसे लोगों के साथ हमें पूरी सहानभूति होनी चाहिए कि अभी इलाज़ की, काफी जरूरत है। 
अगर हम कुछ लोगो की बातों से ही इतने आहत हो जाते हैं और अपने सच्चे होने के एहसास से भी पीछे हटाने को तैयार हो गए तो उन बेसहारा लोगों की आवाज़ कौन बनेगा जो सिर्फ सहते है और जिन्हें  ताकतवर लोग हमेशा कुचलते रहते हैं, चाहे वह गुजरात, मुज़फ्फरनगर या फिर कोई और जगह हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सोचने-समझने की बात यह है कि ऐसे अविश्वास और तिरस्कार के बीच लोग खुद को और अपने लोगों को कैसे संभाल रहे होंगे, हमें तो सिर्फ उनके साथ खड़ा होना है, किसी के हिन्दू, मुसलमान होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, जब लोग गलत होकर अपने स्टैंड से पीछे हटने को तैयार नहीं है तो फिर जो सही है उसे तो बिलकुल भी अपने स्टैंड से पीछे नहीं हटाना चाहिए .....    जब कोई भी आदमी सच्चाई के साथ खड़ा होता है तो उसे किसी भीड़ की जरूरत नहीं होती और उसकी बातों को लोग तुरंत समझ ले यह भी सम्भव नहीं होता क्योकि वह वक़्त से काफी आगे होती हैं। यह अक्सर होता है कि उसके कुछ बोलते ही तमाम पहचान उस पर चिपकाए जाने लग जाते हैं, लोग अपने धंधे से यहाँ भी बाज़ नहीं आते। मै जानता हूँ की तुम कभी हार नहीं सकते, अब तुम सिर्फ एक नाम या व्यक्ति नहीं हो, अब तुम हर उस व्यक्ति में मौजूद हो,  जो न सिर्फ सच बोलता,समझाता है, बल्की सच के साथ खड़ा भी होता है ....     
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