Pahalgam terror attack
Narrative War
Social network पर धंधा करने वाले तमाम बेहद बीमार लोग जिनकी बीमारी लगातार गम्भीर होती जा रही है और मोदी को लेकर जो अवसाद है अब ईलाज लायक भी नहीं रह गया है और ए लगभग कोमा में पहुंच चुके लोग कुछ देखने समझने में सक्षम नहीं रह गये हैं और एक ही बात 2014 से दुहरा रहे हैं और यह मोदी का तीसरा कार्यकाल है, इसका इन्हें विश्वास नहीं हो पा रहा है कि इनकी कोशिशों के बाद भी यह आदमी सत्ता में कैसे बना हुआ है, लोकतंत्र में विरोध लोकतंत्र का स्वाभाविक गुण है परन्तु नफरत ...
हमारे यहां कुछ समुदाय और कथित स्वघोषित बुद्धिजीवी भाजपा, मोदी, संघ के जैसे जन्मजात शत्रु हैं और वह इस दुनिया में इनसे नफरत करने के लिए ही रह रहे हैं नहीं तो कबका ... खैर कौन यह हम सभी लोग जानते हैं उनको हर वक्त मीडिया में रोते हुए हम कब से देख रहे हैं और उनका समस्त ज्ञान किसी एक जगह आकर अटक गया है और शायद इसी कारण लगातार एक ही बात न जाने कब से दुहरा रहे हैं फिलहाल इनके 2029 तक स्वस्थ होने की कोई उम्मीद नहीं है।
वैसे यह सारा खेल खास toolkit के माध्यम से किसी खास narrative के निर्माण में अपनी प्रतिभा का पूरा इस्तेमाल करके मोटी कमाई करना है इनका भारत और भारतियों से कुछ लेना देना नहीं है बस अपने को स्थापित रखना इनका मुख्य लक्ष्य है और इनकी मोटी कमाई इसका प्रमाण है।
ऐसे में हम राष्ट्रवादियों को भी अपना narrative मजबूत करना होगा । हमें मोदी भक्त, संघी ... बोलकर हमारा आत्मविश्वास कम करने कि कोशिश होती है और हम शांत हो जाते हैं जबकि हमें बेहतर तर्कों के साथ अपनी बात लगातार कहते रहना है और ऐसे सम्बोधन से परेशान नहीं होना है बल्कि मुस्कराते हुए, बिना गुस्सा हुए अपनी बात रखनी है, हम संघी नहीं हैं, मोदी भक्त नहीं है हम राष्ट्रवादी हैं, ऐसा हमें कुछ भी नहीं कहना है सामने वाला क्या मानता है यह उसकी समस्या है, इससे हमारे सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए, हम क्या हैं? कौन हैं? हमारा stand clear होना चाहिए
Social network पर कुछ सावधानी बेहद जरूरी है जैसे विरोधियों को गाली देने के लिए उनकी पोस्ट share न करें, screenshot लेकर भी नहीं, उनकी किसी भी प्रतिक्रिया को महत्व नहीं देना है तो इसका एक मात्र तरीका है ignore them उसके बाद report ओर not interested click करिए और ध्यान रखिए पूरी दुनिया में narrative की लड़ाई चल रही है और यही समझने की जरूरत है कि उनका toolkit किस तरह काम करता है। कब किस situation में किसको आगे आना है और और अपने एजेंडे को कैसे justify करना है सब एकदम सेट रहता है और बेचारा, मासूम वाला appealing angle अपनी हर कहानी में वह कैसे ले आते हैं, भूख, गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और साथ में संविधान, आरक्षण भी एक point पर ले आते हैं। इन सब चीजों को एक साथ मिलाकर एक अद्भुत कहानी बननी ही चाहिए और इसके विशेषज्ञ अपने अपने कैमरे को सही ऐंगल पर सेट करते हैं और कलम की धार पैनी होनी चाहिए अब प्रस्तुतीकरण के साथ शानदार मार्केटिंग के लिए शिकार में लग जाते हैं यह हुनर अद्भुत है कहानी का यह ऐंगल काफी बिकाऊ है और इनके उपभोक्ता हमीं हैं वह साहित्य, सिनेमा, comedy सबमें अपनी बात घुमा फिरा कर ले आते है हमको हंसी मजाक में वह feed कर रहा होता है सोचिए पूरी फिल्म में एक दो मिनट के गैर जरूरी ऐसे दृश्य और बातें होती हैं कि उसका उस कहानी से कुछ भी लेना देना नहीं है फिर भी वह message के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है और यह आम लोगों को किसी खास पक्ष में तैयार करने और धीरे-धीरे सहमत कर लेने का तरीका है और बहुत सी चीजों की गम्भीरता ऐसे ही खत्म कर दी जाती है और हमें पता ही नहीं चलता कि हमने कब क्या छोड़ दिया और कब क्या अपनाकर क्या से क्या हो गये और यही सही है, अब हमीं कहने लगे हैं जबकि यह हमारे अंदर धीरे धीरे program किया गया है और एक एजेंडे को लागू करने का सफल प्रयोग है
इन कथित बुद्धिजीवियों की बात सूनिए तो ऐसा लगता है जैसे इससे पहले सबके पास सब कुछ था और अभी चंद दिनों में सब छिन गया। जबकि वजह यह है कि इनके अनुसार ए जो चाहते हैं वह नहीं हो रहा है बल्कि उससे कहीं बेहतर हो रहा है और अपने चयनित सत्य का एजेंडा आगे न बढ़ा पाने के कारण ए लोग दुखी हैं।
इस लड़ाई में हमें अपने eco system को promote करना होगा। जो भारत की बात करता है हम उसके साथ हैं क्योंकि जब तक भारत है तभी तक हम हैं और इसका आसान तरीका है हमें क्या देखना है क्या नहीं देखना है इसकी स्पष्ट समझ बनानी होगी, हमें किसी boycott movement का हिस्सा नहीं बनना बस शांति से boycott कर देना है कि हमारे पैसा किसके पास जाएं यह हमें तय करना है हम कौन सा video कौन सी film देखेंगे इतनी समझ हममें जरूरी है, बस कुछ दिनों सब ठीक हो जाएगा क्योंकि सारा खेल पैसे का, पैसे से है और यह पैसा हमारा है, हम आम लोगों का, इसी ताकत को समझनी है, अब पहलगाम की दुखद घटना के बाद पहली बार हमारे कश्मीरी खुद को Indian कह रहे हैं वह भी जोर जोर ... नहीं तो आपके India में, यही सुनने को मिलता था ... कारण ... पैसा ... उन्हें मालूम है पैसा कहां से आता है और इसके बाद भी आप अपनी बात अपना एजेंडा आगे नहीं बढ़ा रहे हैं तो आपका कुछ नहीं हो सकता ...
समझ गये सारा खेल पैसे का है सोचिए जब पेट पर लात पड़ती है तब क्या होता है हम भारतीय हैं यह कहना कितना आसान हो जाता है, इससे पहले जो लोग खुद को न जाने क्या मानते थे अब ... वह proud Indian हैं और हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई की बातें हो रही हैं
सोचिए हम जिस economy को generate कर रहे है, उसका नियंत्रण हमारे पास नहीं है और हमें हमारे विरोधी लगातार उसका लाभ उठा रहे हैं तो हमारे ऐसा करने से किसकी जेब भर रही है हमें यह खेल समझना होगा और आगे पैसा किसके जेब में जाए यह हमारे हाथ में है और यह सारा खेल इसी eco system का है। हमें अपना narrative मजबूत करना होगा और इसके लिए अपना eco system कौन सा है? क्या है? यह अपने स्तर पर न केवल समझना होगा बल्कि अपने वैयक्तिक स्तर पर ही चलाना भी होगा और यह जितना शांत होगा उतना ही ताकतवर होगा, इसे किसी Rule Book कि जरूरत नहीं है क्योंकि इसे व्यक्ति के स्तर पर होना है जहां हैं वहीं एकल प्रयास ..
अगर ऐसा नहीं होगा तो हम सिर्फ जैसे अब शिकायत कर रहे हैं आगे भी मेरी ग़लती नही है वाली बीमारी का महिमा मंडन करते रहेंगे, मेरा क्या जाता है और फिर बचाने के लिए कुछ नहीं रह जाता
©️Rajhans Raju
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खेल समझिए
हालांकि हमारे तमाम secular, liberal, intellectuals, अब भी यही साबित करने वाली कहानी लगातार ढूंढ़ कर ला रहे हैं कि हिन्दू-मुस्लिम जैसा कुछ भी नहीं है और हमें शुतुरमुर्गी वीरता दिखाते रहने के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि आंख बंद करते ही संकट खत्म हो जाता है और समस्याओं को देखते ही अपनी गर्दन रेत में जितनी गहराई तक हो सके गाड़ देनी चाहिए ..
ए लोग अपना एजेंडा पहले की तरह ही चला रहे हैं इनके तमाम विमर्श वैसे ही चल रहे हैं और इनका बचकाना बड़प्पन कायम है।
"हम भारत के लोग" इसमें सभी भारतीय नागरिक समाहित हैं अलग से किसी को निमंत्रण देने कि आवश्यकता नहीं है कि हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी ही पड़ेगी, यह कहने कि बात नहीं है क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प भी नहीं है हमारी एकजुटता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
हां अगर मुसलमानों पर सवाल उठाए जा रहे हैं तो इसका जवाब उन्हें ही देना है इसमें किसी को हाय तौबा करने कि जरूरत नहीं है, कुछ लोगों को लगता है कि हिन्दू मुसलमान हो रहा है, नहीं होना चाहिए तो अपनी अपनी बंद आंख थोड़ा सा खोलकर इतिहास के चंद पन्ने पलट लेनी चाहिए। अरे महा विद्वान, उदारवादी होने के बोझ के तले दबे सेकुलर, समाजवादी इस देश का विभाजन हिंदू मुस्लिम आधार पर ही हुआ था, यह भोगा हुआ सत्य है, इससे हम बच नहीं सकते और यूपी, बिहार के बहुसंख्यक मुसलमानों ने पाकिस्तान के लिए वोट किया था, यह ऐतिहासिक तथ्य है। ऐसे में अलग से किसी की वकालत करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जो भी जैसे हुआ उसके लिए आज के लोग जिम्मेदार नहीं हैं और हम सब भारत के नागरिक हैं जिनके समान अधिकार के साथ इस देश के लिए कुछ समान और सामान्य कर्तव्य भी हैं जिसका निर्वाह हमें ही करना है
किसी के भी भारतीय होने में कोई संदेह नहीं है पर जब हम अपने जाति और मजहब के कारण आतंकियों और अपराधियों के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं तब बाकी सवाल कैसे नहीं उठेंगे???
और इसका जवाब उसी समुदाय के लोगों को देना है और कौन किस तरफ है ओर यह जब साफ दिखाई पड़ता हो तो भला आंख कैसे बंद की जा सकती है
सोचिए आतंकी ने उससे कहा "मोदी को बता देना" इसका क्या मायने है...
मतलब मोदी हमारा कुछ नहीं कर सकता ..
वह तुम लोगों को ... नहीं बचा पाएगा ..
यह चुनौती क्या सिर्फ मोदी को है ...
तो नहीं ...
यह हम सभी भारतीयों को है...
©️ RajhansRaju
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इसे भी समझिए
जेहादियों की टीम A ने ग्राउंड पर अपना काम कर दिया है
यानी उन्होंने चुन चुन कर हिंदुओं का कत्लेआम कर दिया है
अब टीम B मोमबत्ती जला कहेंगे सब मुस्लिम एक जैसे नहीं होते हम सब भाई भाई का नारा देगा
टीम C इन आतंकियों के मां बाप ओर इसकी पढ़ाई बताएगा और क्यों आतंकी बना कैसे आर्मी ने इसे तंग किया ये सब लिखेगा
टीम D फैक्ट्स के नाम पर इसे आतंकी नहीं सिर्फ कोई पर्सनल दुश्मनी बताएगा और यहां तक हमलावर को हिंदू भी बता सकता है
टीम E उनके लिए मुकदमा लड़ेगा इनको फंडिंग देगा इनको कहेगा यह तो भटके हुए मासूम है इन्हें सजा न दिया जाए
ये सिलसिला हमेशा ऐसा ही चलता रहेगा
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जब तक देश में मदरसे नहीं बंद नहीं होंगे तब तक आतंकवाद ऐसे ही चलता रहेगा
ReplyDeleteआँख बंद करने से मुसीबत नहीं टलती उससे लड़ना पड़ता है
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