The two and a half front war

 Propaganda war

क्या आप दुनिया में साहित्य मानवाधिकार से जुड़े बड़े पुरस्कार चाहते हैं या फिर किसी बड़ी यूनिवर्सिटी में अच्छी स्कॉलरशिप पर शोध के नाम पर विदेश में सुख सुविधा के साथ सेटल होने की सोच रहे हैं, ठीक-ठाक लिख पढ़ लेते हैं तो बस आपको मानवाधिकार, स्वतंत्रता, भाईचारा के पक्ष में बात करनी है, उसके कुछ कीवर्ड है जैसे सरकार से सवाल पूछ रहे हैं हालांकि जो पूछ रहे हैं वह पहले से ही पब्लिक डोमेन में है और आपको हमेशा अपने देश समाज का विरोधी एजेंडा चलाना है कोई भी अपराधी, आतंकी हो उसमें मानवता और बेचारगी वाला ऐंगल ढूंढ कर लाना है हमारी सरकार निकम्मी और नाकाम है और हिंदुओं को कट्टर साबित करने वाले फोटो-वीडियो को कुछ ज्यादा मसाले और तेज आवाज के साथ प्रस्तुत करना है।

मूर्खता भरी बातें लगातार करनी है और खुद को लोकतंत्र का प्रहरी घोषित करते रहना है यह वाला बिजनेस मॉडल इस समय खूब चल रहा है और इस धंधे में लगे लोग खूब पैसा कमा रहे हैं और जो यह ढाई मोर्चे की लड़ाई है उसमें पॉइंट फाइव (.5) वाला हिस्सा, हमारे हिस्से का है जिससे हमें लड़ना है और उसका यही तरीका है कि इन महानभावों के विरुद्ध कोई कैंपेन न चलाया जाए इनके कमेंट बॉक्स में कुछ भी लिखना बंद कर देना चाहिए ऐसा करते ही इनकी रीच अपने आप डाउन हो जाएगी और इससे इनको शहीद और योद्धा बनने का अवसर नहीं मिल पाएगा और यह सिर्फ इनको इग्नोर करके किया जा सकता है इनसे लड़ना नहीं है बस उनकी गंभीरता खत्म कर देनी है क्योंकि यह जो वाहियात, तथ्यहीन एजेंडा मॉडल चलाकर अपना धंधा सेट किए हुए हैं और समाज में एक बड़ी संख्या इनको फॉलो करती है तो इसका कारण भी यही है कि देश की बड़ी आबादी होने के कारण, इन्हें भी कुछ करोड़ लोग बड़ी आसानी से किसी भी तरफ मिल जाते हैं हालांकि वह मुश्किल से एक दो परसेंट ही होते हैं लेकिन धंधे के लिए पर्याप्त हैं सोचिए इनके तमाम दुष्प्रचार के बाद भी मतदाता समूह को ए उलट पलट नहीं पाए जो इनके फैन हैं ए वहीं तक सीमित हैं


अब सोचिए युद्ध हमेशा किसी देश या संगठन के विरुद्ध ही तो होगा। पर इनको युद्ध में उस देश के खिलाफ नहीं बोलना है कि उसकी विचारधारा बर्बर और कट्टर है और युद्ध का कारण सह अस्तित्व से इंकार करना है और दूसरों के अस्तित्व को मान्यता नहीं देना है, ए सच्चे पत्रकार इस घटिया मानसिकता और सोच के विरुद्ध कोई बात नहीं कहेंगे, युद्ध में मौत का कारण इनमें से कुछ भी नहीं था बल्कि आपको अपनी बौद्धिकता साबित करने के लिए कहना है की गोली की गलती थी, करगिल शहीद की बेटी ने कहा कि उनके पिता पाकिस्तान कि वजह से नहीं मरे हैं उनकी मृत्यु का करण युद्ध है और आज उनका कैरियर सेट हो गया।
अब सोचिए कोई यह कहने लगे कि अभी जो पहलगाम में लोग मारे गए उसका कारण इस्लामिक आतंकवाद नहीं है इसका कारण वह गोलियां है जिन्हें दुष्ट मनुष्यों ने बनाया, जो मानव सभ्यता कि सबसे बड़ी शत्रु हैं। वाह क्या साहित्यिक बात कही है, अब फला फला देश के ए वाले पुरस्कार आपकी राह देख रहे हैं, ऐसे ही लगे रहना है
जबकि आप गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं रखते हैं और कैसे किसी को गलत होने से बचाने के लिए नायाब अजूबे गढ़ते रहते हैं यही खेल है इस बिजनेस का, समझिए की आपको हमको ए कैसे ट्रैप करते हैं और
नवयुवकों खासतौर पर यूनिवर्सिटी, कॉलेज के छात्र कैसे फँसते हैं ? उनको उनकी बातें बड़ी आकर्षक लगती है क्योंकि पहले शोषण दमन की ऐतिहासिक कहानियां सुनायी जाएंगी, आपको धीरे-धीरे convince किया जाएगा, फिर एक खास पक्ष वाला साहित्य आपके अंदर कब ठूस दिया गया आपको पता ही नहीं चलेगा और सामने वाला इतना विनम्र, सज्जन और दयालु नजर आएगा कि आपको लगने लगेगा कि इससे महान आदमी कोई हो ही नहीं सकता, साधारण होने के सारे गुण जैसे सिर्फ उसी में है, हालांकि वह न जाने कितने NGO का मालिक है, स्कूल, कालेज का business भी उसके पास है, कब मंत्री, मुख्यमंत्री, ... बन जाएगा इसकी हमेशा संभावना बनी रहती है, इन्हीं कपड़ों में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रमुख वक्ता का रुतबा हासिल है मानवाधिकार का विशेषज्ञ हैं।
अरे इतना प्रभावित होने की जरूरत नहीं है यही इनका बिजनेस मॉडल है, एजेंडा है और दुनिया के सबसे बड़े पुरस्कार पाने और विदेश में सेटल होने का तरीका है इसके बाद अपनी किताबें बेंचकर इसकी रायल्टी लगातार पाते रहना है और यही लोग असली विश्व नागरिक हैं
©️ Rajhans Raju

विरोध का बाजार

हमारे समाज में एक ऐसा बुद्धिजीवी समूह है जो लगातार खास पक्ष में एजेंडा चलाते रहता है सोचिए पहलगाम की घटना को इस्लामी आतंकवादियों ने अंजाम दिया यह कहने की हिम्मत वह पता नहीं क्यों अभी भी नहीं कर पा रहे हैं जबकि पूरी दुनिया और स्थानीय मुसलमान भी यह बात खुलकर बता रहे हैं कि आतंकवादियों ने कलमा पढ़ने को कहा, वह मुसलमान नहीं है इसकी पुष्टि की और आदमियों को इसके बाद कत्ल कर दिया बच्चों और महिलाओं को छोड़ दिया है और कहा कि जाओ मोदी को बता देना कि हम अभी कश्मीर में हैं जो करना है कर लो यह जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक "हम भारत के लोग" हैं उसको खुली चुनौती है क्योंकि संविधान और सरकार हमीं में व्याप्त है और हमीं सरकार और संविधान है इसमें हिंदू मुसलमान सब एक साथ एक जैसे शामिल हैं और किसी पर शक की गुंजाइश नहीं है

लेकिन जो जैसा है जहां पर, जब है उस सच को कहने से पहले हमें ही स्वीकार करना है कि ऐसा है, उसका कोई बचाव नहीं करना है। सोचिए 89-90 में यही हुआ था और इस्लामी आतंकवादियों में ने घरो और लोगों को चिन्हित करके मारा था और उस वक्त अखबारों के अलावा जानकारी के दूसरे बड़े स्रोत नहीं थे ऐसे में नॉरेटिव बनाने वाले इसी तरह के चंद लोग देश को गुमराह करते रहे पर अब सोशल मीडिया पर हर तरह की खबर अंदर बाहर हर तरफ से मिल जाती है ऐसे में झूठ का धंधा करने वाले तमाम बड़े लोग आसानी से एक्सपोज हो जाते हैं अभी दुनिया में narrative की एक बड़ी लड़ाई चल रही है जिसमें विरोध करके ही पैसा कमाने वाले लोगों की एक बड़ी जमात है जो भारत के खिलाफ खड़े रहते हैं यह जो 2.5 मोर्चा वाला कांसेप्ट है उसमें यह जो आधा वाला है ना वह यही लोग हैं देश के अंदर रहकर, देश के खिलाफ काम करते हैं। ए होते तो भारत के नागरिक ही हैं पर इन नागरिकों में भारत बोध कुछ अजीब सा, बीमार सा होता है, अपने आप को उदारवादी आधुनिक सेकुलर साबित करने के चक्कर में कुछ और ही साबित कर देते हैं और इनका स्टैंड जाने-अजाने या फिर रोजी-रोटी के चक्कर में एंटी इंडिया हो जाता है और सोचिए पहलगाम में जो घटना हुई है उसमें आतंकवादियों के लिए भी यह सिंपैथी दिखा रहे हैं कि नहीं उन्होंने हिंदुओं को टारगेट नहीं किया था आतंकवादी है उनको हिंदू मुसलमान से लेना-देना नहीं है।


देखो एक मुसलमान भी तो मरा है मुसलमान ऐसे नहीं होते हैं? अरे कौन कह रहा मुसलमान ऐसे होते हैं? लेकिन जिन आतंकियों ने यह हरकत की वह मुसलमान थे और इस्लाम में एक इस तरह के विचारधारा है कश्मीर में कुछ लोग इस तरह का मुसलमान खुद को बनाना चाहते हैं जो भारत के खिलाफ हैं या एक ऐसी जिहादी मानसिकता है जो भारत में गजवा ए हिंद का सपना देखते हैं और हिंदुओं को अपना दुश्मन मानते है इस सच को हमें कहना होगा सोचो अगर वह कलमा पढ़ने के लिए कह रहे हैं तो कैसे अच्छे मुसलमान हो सकते हैं अब इसका मतलब यह नहीं हुआ कि कश्मीर के सारे मुसलमान ऐसे हैं जैसे कि कुछ हिंदू भी ऐसे हैं ऐसा नहीं है तो सारे मुसलमान ऐसे नहीं है जब भी हम कोई बात करते हैं तो ऐसा कहना पड़ता है लेकिन जो कश्मीर में आतंकवाद है वह बाहर से आए लोग हों या फिर अंदर के लोग हों, क्या बिना स्थानीय समर्थन के कुछ हो सकता है? सोचिए बिना रोटी खाए कोई कितने दिन रह सकता है मतलब स्थानीय मदद बिना कोई आतंकवाद और अपराध नहीं हो सकता है और देश का कोई भी कोना हो अगर वहां इस तरह की समस्याएं हैं तो उसमें स्थानीय लोग भी शामिल माने जाएंगे। अब यह कश्मीरियों की जिम्मेदारी है कि वह कश्मीर को क्या बनाना चाहते हैं इस बार एक खास बात देखने को मिल रही है कि कश्मीरी सड़क पर हैं, मस्जिदों में पहली बार टूरिस्ट पर हमले की निंदा की जा रही है मतलब दूसरे तरह के आतंकी हमले होंगे तो बुरे नहीं है अगर कोई मुसलमान सेना, पुलिस पर हमला करता है तब कश्मीर का मुसलमान आलोचना नहीं करेगा लेकिन टूरिस्ट पर हमला उन्हें नहीं करना चाहिए मतलब यह बात कही जा रही है। क्योंकि अभी तक टूरिस्ट पर हमले नहीं होते थे क्योंकि टूरिस्ट से कश्मीरी को मोटी कमाई होती है इसका मतलब क्या है? फिर यह मैसेज आता है ऐसे वीडियो आते हैं कि देखो सब कुछ सही है हिंदू मुसलमान जैसा कुछ नहीं है ऐसी छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती है..
यह देखो मुसलमान पानी पिला रहा है, मुसलमान खच्चर चला रहा है मुसलमान मदद कर रहा है भाई मुसलमान टूरिस्ट से मोटी कमाई भी कर रहा है और यही सब काम करके ही वह कमाई करता है अगर टूरिस्ट नहीं आएगा तो यहां का मुसलमान किस काम का रह जाएगा कश्मीर की जो इकोनामी है वह टूरिज्म पर ही डिपेंड करती है ऐसे में इस मौसम का इंतजार पूरा कश्मीर करता है जैसे जाड़ा, गर्मी बरसात होता है ना वैसे ही कश्मीर में टूरिस्ट का मौसम होता है, यही गर्मी का मौसम है, मध्यवर्गीय भारतीयों का सस्ता स्वीटजरलैंड जो ठीक थक खर्च करता है
पिछले साल के आंकड़े देखिए, 35 से 40 लाख लोग कश्मीर गए और कश्मीर जाने वाले ए कोई एकदम आम लोग नहीं होते हैं अच्छा खासा पैसा खर्च करने वाले लोग होते हैं। इससे किसको घाटा होगा, किसको फायदा होगा और उसके बाद भी जो लोग बातें कर रहे हैं, उनको क्या कहा जाए ...
सोचिए हमारे जो भी मुसलमान है, कुछ मुसलमान, सभी नहीं, वह किस तरह की बात करते हैं, पाकिस्तान की या फिर इस्लामिक आतंकवादी की, जिसे हम सहते रहते हैं उन्हें कहना चाहिए कि हम इस्लामिक आतंकवाद निंदा करते हैं, इस वजह से अगर कोई मुसलमान किसी पर भी हमला करता तो उसके साथ नहीं है और आप मुसलमान होकर हमला करते तो आपको मुसलमान नहीं माना जाएगा कुछ ऐसी चीज करिए क्योंकि भारत हमारा देश है और हम यहां के नागरिक हैं इस तरह की बातें खुलकर कहनी चाहिए।


ए सच है कश्मीर में काफी बदलाव हुआ है अब टीवी कैमरे और सोशल नेटवर्क पर आम लोग भी ढ़ेर सारी वीडियो बना रहे हैं, लोड कर रहे हैं, कश्मीरियों कि हॉस्पिटैलिटी दिखा, बता रहे हैं कि देखो मुसलमान कितने अच्छे हैं मुसलमान वैसे ही अच्छे हैं जैसे हिंदू अच्छे हैं सोचिए इतना लुटने पिटने के बाद भी कश्मीर में पैसा खर्च करने जा रहे हैं जबकि घाटी का मुसलमान अब भी जो पंडित भगाए गए थे 89-90 में, उनको अपनाने को तैयार नहीं है। मेरे अच्छे मुसलमानों पंडितों का आमंत्रित करो कि आओ अपने घर वापस आओ, कश्मीर तुम्हारा है यह घाटी तुम्हारी है, तुम्हारा उतना ही हक है जितना जैसे हमारा है, तुम मेरे भाई हो और हमारा खून एक है, हमने पूजा पद्धति बदली है, पुर्वज नहीं, कुछ समय पहले हमारे हम हिंदू ही थे,
निश्चित रूप से आप बहुत अच्छे हैं और आपके अच्छे होने का प्रमाण तभी मिलेगा जब आप कश्मीरी पंडितों को अपना लेंगे उनके घर उन्हें लौटा देंगे और वह आपके बीच सुरक्षित महसूस करेंगे और फिर उनसे दोबारा उनका नाम और धर्म नहीं पूछा जाएगा, गोली मारने से पहले, यह जिम्मेदारी कश्मीर के मुसलमान की ही है और उनके बच्चों के हाथ में हथियार न जाए और नया कश्मीर बने ...
अच्छे होने के एक तरह के वीडियो आजकल देखने को खूब मिल रहा है कम से कम शुरुआत तो हुईं है। अब सोचिए पाकिस्तान से हमारे संबंध कैसे हैं। 15 अगस्त 1947 को जब हम आजाद हुए तो हम हिंदू मुस्लिम आधार पर ही बंटे थे बटवारा हुआ, खूब हिंसा हुई दोनों तरफ लोग मारे गए 75 साल से ज्यादा हो चुका है, क्या लगता है हमारे संबंध कभी अच्छे हो पाएंगे, नहीं बहुत मुश्किल है, ऐसे युद्ध जैसे हालात हमेशा बने ही रहेंगे, कम ज्यादा होगा और यह जो इस्लामिक आतंकवाद का बेसिक फंडा है वह कभी शांति नहीं आने देगा। ऐसे में जो इधर या उधर के लोग हैं शादी विवाह वाले संबंध बना लेते हैं अब भी रिश्तेदारियां रखना चाहते हैं, सोचिए उन्हें आप कैसे निभा पायेंगे, भारत की एक मुस्लिम महिला है 10 से 15 साल पहले शादी हुई थी किसी-किसी के 20 साल पहले, लेकिन अभी भी उसके पास भारत का पासपोर्ट है, उन्होंने अभी तक पाकिस्तान की नागरिकता क्यों नहीं लिया, किस खुशफहमी में नहीं लिया, इसी तरह अगर कोई पाकिस्तानी महिला है, यहां आकर बस गई है यहां शादी विवाह कर लिया तो क्या काभी भी कुछ भी अच्छा होने की उम्मीद थी, जो नहीं हुआ, अगर ऐसा है तो आप झूठे हैं और आपका मकसद कुछ और है ...


फिर जब ऐसे हालात होंगे तो निश्चित रूप से आपको दिक्कतें होंगी और मीडिया में आपके वीडियो वायरल होंगे, आपकी भाषण बाजी करने से थोड़ी सी सिंपैथी जनरेट होती है पर हकीकत में कुछ हो नहीं सकता है क्योंकि जब दो मुल्कों के बीच युद्ध होता है तो आम लोगों की जिंदगी बद से बद्तर ही होती है यह भी सच है ऐसे में हमारे भारतीय मुसलमान को यह ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान हमारा मित्र राष्ट्र नहीं है, मात्र इसलिए कि मुसलमान उस तरफ है, आप भी मुसलमान हो इस वजह से कुछ बेहतर हो सकता है, अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप बहुत बड़े संकट में हैं, इससे बाहर निकलिए और सच स्वीकार करिए, पाकिस्तान से हमारे संबंध अच्छे होंगे इस बात कि उम्मीद न करने में ही सबकी बेहतरी है क्योंकि तब आप उस स्तर पर तैयार रहेंगे और बेहतर व्यवहार कर पाएंगे ...
अब जैसे क्रिकेट मैच हो रहा है कुछ लोग पाकिस्तानी टीम का समर्थन कर रहे हैं मतलब राष्ट्रीय टीम का विरोध, इस समर्थन में यह विरोध छिपा हुआ है, फिर कुछ लोग कहेंगे तो क्या हो गया, cricket ही तो इससे किसी की देशभक्ति थोड़ी तय होती है, दूसरे देश के लोग भी तो करते हैं, हां करते हैं पर वह शत्रु राष्ट्र नहीं होते जैसे भारत में क्रिकेट मैच हो रहा है ऑस्ट्रेलिया को अब सपोर्ट करिए कोई दिक्कत नहीं है लेकिन जब कोई पाकिस्तान को सपोर्ट करता है भारत का नागरिक होकर, तब क्योंकि पाकिस्तान हमारा एक शत्रु राष्ट्र है, उससे हमारे संबंध अच्छे नहीं है और उसे हम आतंकी देश मानते हैं, तब ऐसे में जब कोई पाकिस्तान को सपोर्ट करता है, तब उसकी विचारधारा, उसकी सत्य निष्ठा उसकी देशभक्ति पर सवाल उठने लग जाते हैं और तब समस्या होनी स्वाभाविक है ऐसे में हमें तय करना ही पड़ेगा कि हम किस तरफ हैं और कोई बहाना नहीं चलेगा ...
जय हिन्द जय भारत
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Comments

  1. हमें भारत का narrative मजबूत करना है

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  2. ऐसे में जब कोई पाकिस्तान को सपोर्ट करता है, तब उसकी विचारधारा, उसकी सत्य निष्ठा उसकी देशभक्ति पर सवाल उठने लग जाते हैं और तब समस्या होनी स्वाभाविक है ऐसे में हमें तय करना ही पड़ेगा कि हम किस तरफ हैं और कोई बहाना नहीं चलेगा ...

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  3. चौखट जिस दीवार में था
    उससे जब दरवाजा टकराया
    कुंडी का निशान दीवार पर उभर आया
    दरवाजा मुस्कराया,
    उसने पूरी ताकत लगाया था

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