Change is the law of nature

चलो थोड़ा बदलते हैं... हमारे यहाँ निष्पक्षता जैसी कोई चीज नहीं है, social media पर गौर करिए, कथित बुद्धि जीवी, चिंतक जो भी विश्लेषण करता हुआ दिखाई देता है, वह आमतौर पर खुद एक वाद से ग्रसित है और उसका सच उसी वाद के चश्मे से देखा गया होता है.. ए सारे बौद्धिक अपने जातीय, धार्मिक मान्यताओं और विचारों में कोई कमी नहीं देख पाते.. फिर जिन बातों का ए विरोध कर रहे होते हैं.. थोड़ा गौर से इनके देखिए, सुनिए और पढ़िए तो पता चलता है कि ए भी किसी मामले में कमतर तो बिलकुल भी नहीं हैं.. तो हर तरह का विश्लेषण एक पूर्व निर्धारित धारणा को सही साबित करने के लिए ही होता है.. इसमें खुद की जाति और धर्म का ऐंगल आ ही जाता है.. कि आप किस जाति के हैं.. हमारे यहाँ जाति कि पार्टी या पार्टी की जाति का मजेदार दौर चल रहा है.. यही राजनीतिक दलों की सफलता है कि लोगों को भावुक बनाकर आराम से कुछ सीटें जीत लें और सत्ता की मलायी खाते रहें, ऐसे में उस व्यक्ति और दल का न तो विरोध होता है और न ही कोई सवाल पूँछा जाता है, उनकी काबलियत सिर्फ़ उनकी जाति होती है। हमारे यहाँ भक्त तो सब एक जैसे ही हैं.. पर सामने वाला ही भक्त...