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आम लोगों के वाजिब हक के लिए हमारे राजनेता कितने संवेदनशील हैं इसका अंदाजा हम भोपाल गैस कांड से लेकर, हाल में हो रहे किसान आन्दोलनों से लगा सकते हैं | जहाँ हर राजनैतिक दल अपनी चुनावी जरूरतों को पूरा करने में लगा है, चुनाव नजदीक आते ही किसी भी मुद्दे का अर्थ पूरी तरह से बदल जाता है. कहीं हिंदी भाषियों पर हमले होने लगते हैं, तो दूसरी तरफ भाषा और संस्कृति कि याद आने लग जाती है या फिर अचानक धर्म और सम्प्रदाय के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है | सारे मुद्दे और जरूरतें नेताओं के हाथ में आते ही राजनीतिक अखाड़े कि मुहरे बन जाती हैं और सत्ता हो या विपक्ष बारी-बारी अपनी रोटियां सकने में लग जाते हैं | आज तक कोई भी बड़ा नेता किसी विरोध प्रदर्शन के दौरान  पुलिस कि लाठी या गोली का शिकार नहीं हुआ | वह हमेशा आम आदमी ही होता है,    जो किसी न किसी तरीके से व्यवस्था का शिकार होता रहता है |                                                                               आज भी देश के सम्मुख सबसी बड़ी समस्या किसानों कि ही है और अब तक किसानों के लिए कोई स्पष्ट नीति बनाने और लागू करने में सभी  सरकारे नाकाम रही हैं |