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festival and noise

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त्यौहारों में शोर और बाज़ार हमारे सभी त्योहारों का आधार और परम्परा किसानों के फसली मौसम है, जो बदलते ऋतु के हिसाब से अपने खान- पान या फिर कहें आने वाली चुनौतोयों का सामना करने कि तैयारी है, जहाँ सब मंगलमय हो इसी भाव से उत्सव मनाया जाता है. चाहे वह दशहरा, दीपावली, होली या फिर नवरात्र हो इन सभी का मकसद खुद को प्रकृति से जाने-अनजाने में जोड़ने कि कोशिश है. खासतौर पर ग्रामीण  जीवन और संस्कृति के लिए इनकी आवश्यकता और भूमिका अति महत्वपूर्ण है. जहाँ ए आपसी मेल मिलाप का माध्यम बन,रिश्तों में नयी ताज़गी भरा करते हैं. आज बढ़ते शहरीकरण और बाज़ार ने इन त्योहारों पर कब्ज़ा कर लिया है. जहाँ दिखने-दिखाने कि होड़ मची है और बाज़ार ने मुनाफा कमाने के नए-नए तरीके इजाद कर लिए हैं. यहाँ भी सबसे ज्यादा परेशान मध्यवर्ग है जो अपनी धन, समझ, शिक्षा सब में मध्यम ही बना हुआ है. न तो वह आधुनिक बन पाया और न ही परम्परा छोड़ पा रहा है. बाज़ार, शहर, गांव हर जगह वह संतुलन बनाने कि नाकाम कोशिश कर रहा है, एक ओर वह सब कुछ होना और पाना चाहता है पर छोड़ना कुछ भी तैयार नहीं है. ऐसे में हर चीज़ का अजीब...

Jagjeet Singh

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श्रद्धांजली-गजल सम्राट को तुम जग छोड़ के चले गए, तुम्हारे बिना गजल अकेली हो गयी, वह उदास, तन्हा तुम्हें याद कर रही है, तुम्हारी आवाज़ में ढलकर वह निखर जाती थी, हम तक सुनहरे अल्फाज़ शहद कि मिठास लेकर आते थे, तुम्हारे बिना ग़जल कैसे रहेगी, तुम्ही ने तो उसमे नयी जान डाली थी, खास से आम तक तुम्हारी जादुई आवाज़ ने पहुचाई थी. किसी रुख से जब नकाब सरका था, जुल्फ के झटकने से टूटते मोतिओं को जाना था, बचपन में वापस लौटकर कागज़ कि कश्ती चलाई थी, फिर तुम बिना किसी सन्देश हमें छोड़ गए. तुम्हारी हर गजल हमारी धरोहर है, इनमे तुम्हारी सांसों का एहसास छुपा है. जो इस दुनिया के कायम रहने तक हर दिल में रहेगी.  🌹🌹❤️🙏🙏❤️🌹🌹 Jagjit Singh Birth Anniversary: कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी... जगजीत सिंह ने जालंधर में गाया था पहला गीत जालंधर से जगजीत सिंह का रिश्ता बनाए रखने के लिए आल इंडिया रेडियो की बहुत बड़ी भूमिका है। रेडियो पर कार्यक्रम देने लगे तो उस दौर के उभरते शायर सुदर्शन फाकिर से नजदीकियां बढ़ीं। जालंधर AIR पर ही पहला गीत कागज की कश्ती गाकर वह चर्चित हुए थे। By Pankaj Dwivedi गजल गायक जगजीत सि...