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Showing posts from August, 2011

i am anna

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अन्ना  हजारे  कोई भी आन्दोलन जब शुरू होता है. उस पर ढेर सारे सवाल उठाए जाते हैं और एक बड़े जन सैलाब की भागीदारी के बावजूद सरकारी नुमाइंदे और कुछ अति बुद्धिजीवी जो इस समय भी अपनी खलिश  राजनीति कर हैं. खुल के समर्थन में आने के बजाय, अपने को अधिक जानकार साबित करने में लगे हैं. यह सच है की जनलोकपाल भ्रष्टाचार से लड़ने की आखरी और अमोघ अश्त्र नहीं है फिर भी लड़ाई की शुरुआत तो है ही और किसी भी लड़ाई की शुरुआत में आशंका और निराशा का होना भी कोई गलत बात नहीं है क्योंकि आन्दोलन के शुरुआत में इस तरह की चीज़ें होती हैं जो धीरे-धीरे उसके जोर पकड़ने पर बहुत से लोग और चीज़ें अपने आप जुड़ती चली आती हैं जिसे हमने कभी सोचा नहीं होता, वह भी हासिल हो जाता है. बस इस जज्बे को बनाए रखना है, जो काफी कठिन काम है. बहुत सालों बाद हम तिरंगे के नीचे अपनी जाति, धर्म और बाकी चीज़ें भूलकर इकट्ठे हुए है. यह देखना और महसूस करना ही बहुत बड़ी उपलब्धि है. हमने अपने एक होने की लाजवाब मिशाल कायम की है. अब हमें और अधिक अनुशाषित और संयमित दिखना होगा क्योकि पूरी दुनिया हमें देख रही है. साथ ही हमें गाँ...

our government

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हमारी सरकार  हमारे ईमानदार प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री और अन्य मंत्रियों का पूरा समूह बहुत ही काबिल है या हम कहें अपने क्षेत्र में, घोषित तौर पर महान विभूतियाँ हैं. यही नहीं हमारे तमाम सांसद, विधायक, अफसर भी अपने फन में माहिर हैं. इतनी क़ाबलियत और ताकत के बाद भी ए बेचारे आम आदमी की ही तरह लाचार,बेबस या हम कहें बेकार हैं और सब की तरह ए भी व्यवस्था का रोना रो रहें हैं. जब इतना ही लाचार रहना है तो फिर इन पदों पर बने रहने  की क्या आवश्यकता है. हमारे प्रधान मंत्री न तो अपने कैबिनेट को साफ़ सुथरा रख पाए और न ही उसकी ईमानदारी साबित कर पाए हैं. पहले तो कलमाड़ी जैसे लोगों को बढ़ने दिया जाता है. फिर सबकी गर्दन बचाने के लिए कलमाड़ी जैसों की बलि चढ़ा दी जाती है. यह काम हमारे काबिल लोग बखूबी करते आए हैं. वैसे इसके बाद भी हमारी तमाम सहानभूति सत्ताशीर्ष पर बैठे लोगों के साथ ही है, बेचारे कितनी मुश्किल से अपनी कुर्सी बचा पाते हैं. ऊपर से कुछ करने का भी दबाव? सारा समय और हुनर तो कुर्सी बचाए रखने में ही निकल जाता है. वैसे सही निर्णय लेते वक्त भीड़ को नहीं देखा जाता औ...