i am anna


कोई भी आन्दोलन जब शुरू होता है. उस पर ढेर सारे सवाल उठाए जाते हैं और एक बड़े जन सैलाब की भागीदारी के बावजूद सरकारी नुमाइंदे और कुछ अति बुद्धिजीवी जो इस समय भी अपनी खलिश  राजनीति कर हैं. खुल के समर्थन में आने के बजाय, अपने को अधिक जानकार साबित करने में लगे हैं.

यह सच है की जनलोकपाल भ्रष्टाचार से लड़ने की आखरी और अमोघ अश्त्र नहीं है फिर भी लड़ाई की शुरुआत तो है ही और किसी भी लड़ाई की शुरुआत में आशंका और निराशा का होना भी कोई गलत बात नहीं है क्योंकि आन्दोलन के शुरुआत में इस तरह की चीज़ें होती हैं जो धीरे-धीरे उसके जोर पकड़ने पर बहुत से लोग और चीज़ें अपने आप जुड़ती चली आती हैं जिसे हमने कभी सोचा नहीं होता, वह भी हासिल हो जाता है. बस इस जज्बे को बनाए रखना है, जो काफी कठिन काम है. बहुत सालों बाद हम तिरंगे के नीचे अपनी जाति, धर्म और बाकी चीज़ें भूलकर इकट्ठे हुए है. यह देखना और महसूस करना ही बहुत बड़ी उपलब्धि है. हमने अपने एक होने की लाजवाब मिशाल कायम की है. अब हमें और अधिक अनुशाषित और संयमित दिखना होगा क्योकि पूरी दुनिया हमें देख रही है. साथ ही हमें गाँधी और गाँधीवाद को समझने का साक्षात् अवसर मिला है. आज के हिंसक और उपभोक्ता बन चुके समाज में हम अपने अस्तित्व की लड़ाई इस तरीके से भी लड़ सकते हैं और अपने अधिकारों को हासिल कर सकते हैं. इसके लिए किसी तोड़फोड़ और गोला बारूद की जरूरत नहीं है. वैसे भी मरने और मारने वाले दोनों अपने हैं.
आज जिस तरीके से आम आदनी अन्ना के साथ खड़ा है वह उनकी विश्वशनियता और लोगों की आस्था का अनुपम उदहारण है, जो हमारे राजनैतिक नेतृत्व के असफल होने का परिणाम है और इस बात को हमारे नेताओं को मान लाना चाहिए. अब कितने नेता भ्रष्ट हैं कितने अच्छे है का सवाल नहीं है बल्कि आपको जो काम करना चाहिए था, जिसके लिए जानता ने आपको चुना था, वह आपने नहीं किया और आपने अपना सम्मान और विश्वास दोनों खो दिया. इसलिए अन्ना के पीछे, आज लाखों लोग चलने को तैयार हैं.
सही अर्थों में देखा जाए तो हमारे राजनैतिक नेतृत्व को भी खुद को साबित करने का महान अवसर मिला है, जहाँ वह बिना किसी बहाने और लागलपेट के क्रन्तिकारी बदलाव की शुरुआत कर सकता है और अपने को शानदार इतिहास का हिस्सा बना सकता है. अब उन्हें खुद तय करना है की आने वाली पीढियां उन्हें कैसे याद करें.हमारी व्यवस्था में तमाम खामियां आ गयी हैं जो हमारे लोकतंत्र को कमजोर बना रही हैं और हमारे टालते रहने की महान राजनैतिक परम्परा कोढ़ में खाज का काम करती रही है. हमारे जितने भी ईमानदार और काबिल सांसद हैं क्या वह इस बात की पहल नहीं कर सकते की संसद का एक ऐसा सत्र तत्काल शुरू किया जाय जिसमे सभी जरूरी और रुके हुए कानूनों पर न केवल तत्काल बहस किया जाय, बल्कि उन्हें पारित भी किया जाय और इसके लिए चाहे जितने दिनों तक संसद को काम करना पड़े वह करे. जिसमे लोकपाल, महिलाआरक्षण, पुलिससुधार, चुनावसुधार, न्यायिकसुधार जैसे  विधेयकों को तुरंत पारित किया जाय. अब ऐसा न करने और होने के ढेर सारे कारण गिनाए जा सकते हैं. पर करने का एक ही कारण होगा कि हमें करना है, आज ही करना है, अभी करना है, बस बहुत हो चुका..      
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