Supreme Court जिंदाबाद
IPC की धारा 377 और 497 के सन्दर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को लेकर अभद्र टिप्पणी करना या वाहियात जोक बनाना बंद करिए और अपने समाज की सच्चाई स्वीकार करिए कि हमारे बीच में हमारे ही लोगों की एक छोटी या थोड़ी बड़ी संख्या में इस तरह के सामान्य, स्वाभाविक लोग हैं, जिनका जीवन देखने, जीने और समझने का तरीका कुछ अलग है और वो एक मुखर स्थापित सामाजिक व्यवस्था के हिसाब से सही नहीं है। लेकिन वो हैं और उनके संबंध किसी जोर जबरदस्ती या किसी भी तरह के अपराध का कारण नहीं है। सब कुछ बालिग लोगों के बीच सहज, समझ और सहमति का परिणाम है। तो फिर समाज, कानून के रखवाले moral policing के बजाय अपना ध्यान कुछ दूसरे जरूरी कामों में लगाएं तो सबके लिए ज्यादा अच्छा रहेगा। किसी भी समाज में जब विरोधाभासी चीजें सामने आती हैं, हालांकि ए सारी चीजें हमेशा से थी। अब उन्हें स्वीकार करने की हिम्मत रखने वाले लोग सामने आ रहे हैं, तो ऐसे में समाज के प्रबुद्ध वर्ग से उम्मीद की जाती है कि वह सच के साथ खड़ा हो और सर्वोच्च न्यायालय ने यही किया है, उसने उस अस्तित्व को मान्यता दी है जो ...