another blast in mumbai
आतंकवाद- मानव सभ्यता की जघन्यतम खोज. जिसमे उन लोगों को निशाना बनाया जाता है. जिनकी कोई गलती नहीं होती, इसका शिकार वह आम आदमी होता है. जो मुश्किल से अपनी रोज़ी रोटी जुटा पाता है. यह आम आदमी हर वक़्त अपनी जान जोखिम में डाले रहता है. चाहे वह लोगों की सुरक्षा में लगा सामान्य पुलिस वाला हो या फिर सेना का जवान. वह यही आम आदमी होता है, जो हर जगह सबसे पहले गोली खाने भेजा जाता है. आज हम जिस तरह के वैश्विक समाज की रचना कर रहें हैं. वहां असुरक्षा की भावना दिनों दिन बढ़ती जा रही है. इसके लिए किसी देश, समुदाय या व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. बल्कि यह विश्व के गाँव बनने की प्रक्रिया में सामूहिक असफलता का परिणाम है. जहाँ ताकतवर सब कुछ अकेले ही हड़प लेना चाहता है और उसमे उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी जैसी चीज़ों का कोई बोध नहीं है. ऐसे में हालात दिनों दिन ख़राब ही होंगे. चाहे कितनी भी बड़ी सेना तैयार कर लिया जाय और उसे आधुनिकतम हथियारों से लैस करके भी आतंकवाद की लड़ाई नहीं जीती जा सकती है. क्योंकि यह सारी व्यवस्था कुछ हथियार बंद आतकवादियों को ही मार सकती है और मरने-मारने का यह सिलसिला निरंतर चलत