another blast in mumbai

आतंकवाद- 

मानव सभ्यता की जघन्यतम खोज. जिसमे उन लोगों को निशाना बनाया जाता है. जिनकी कोई गलती नहीं होती, इसका शिकार वह आम आदमी होता है. जो मुश्किल से अपनी रोज़ी रोटी जुटा पाता है. यह आम आदमी हर वक़्त अपनी जान जोखिम में डाले रहता है. चाहे वह लोगों की सुरक्षा में लगा सामान्य पुलिस वाला हो या फिर सेना का जवान. वह यही आम आदमी होता है, जो हर जगह सबसे पहले गोली खाने भेजा जाता है.
आज हम जिस तरह के वैश्विक समाज की रचना कर रहें हैं. वहां असुरक्षा की भावना दिनों दिन बढ़ती जा रही है. इसके लिए किसी देश, समुदाय या व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. बल्कि यह विश्व के गाँव बनने की प्रक्रिया में सामूहिक असफलता का परिणाम है. जहाँ ताकतवर सब कुछ अकेले ही हड़प लेना चाहता है और उसमे उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी जैसी चीज़ों का कोई बोध नहीं है. ऐसे में हालात दिनों दिन ख़राब ही होंगे. चाहे कितनी भी बड़ी सेना तैयार कर लिया जाय और उसे आधुनिकतम हथियारों से लैस करके भी आतंकवाद की लड़ाई नहीं जीती जा सकती है. क्योंकि यह सारी व्यवस्था कुछ हथियार बंद आतकवादियों को ही मार सकती है और मरने-मारने का यह सिलसिला निरंतर चलता रहेगा और खतरनाक होता जाएगा. हम जितना अधिक ताकत और हथियरों का इस्तेमाल करेंगे, आतंकी भी उतने ही अधिक भयावह और विध्वंशक होते जाएँगे. आज जो हथियार हमारी सेना के पास हैं , उससे कहीं अधिक आधुनिक हथियार आतंकियों के पास पहले से मौजूद हैं क्योंकि हथियार बनने वाली कंपनी को सिर्फ पैसा चाहिए. वह हथियार भारत. पाकिस्तान  या कोई आतंकी संगठन खरीदे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. आतंकवाद बाकायदा कारोबार बन चुका है. जहाँ आतकी घटनाओं से शेयरों के मूल्य निर्धारित होते हैं. वहीं रियल स्टेट में माफिया की पकड़ और मजबूत होती जाती है.
सब कुछ ऐसे घुल मिल गया है कि यह समझ पाना मुश्किल होता जा रहा कि वास्तव में असली आतंकवादी कौन है? हमारे वह राजनेता, ठेकेदार, सरकारी कर्मचारी या फिर उद्योगपति जो अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करके लाखों, करोड़ों बनाते हैं और हजारों लोगों को उनके वाजिब हक से वंचित कर देते हैं या फिर वे विक्षिप्त लोग जो सिर्फ गुलामी कि मानसिकता रखते है और कहीं भी बम विस्फोट कर लोगों की जान इसलिए ले लेतें हैं की सरकार उनसे डरे और उनकी चर्चा होती रहे. जबकि उन्हें भी मालूम है कि चंद आम लोगों के मरने से किसी देश कि सत्ता या सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. कुछ ही घंटों में सब सामान्य हो जाएगा. कितनी भी बड़ी घटना घटे हमारे चैनेल बदलते ही सब पहले जैसा हो जाता है.
आतकवाद के खिलाफ अंतिम लड़ाई जैसी कोई चीज़ नहीं है क्योंकि इसका जन्म विचारात्मक असहमति से होता है. जिसमे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को जबरदस्ती पूरा करने के लिए कुछ लोग धर्म को एक खतरनाक और कारगर हथियार में परिवर्तित कर देते हैं और इसके बाद रही-सही कसर जात,भाषा,क्षेत्र जसे छुटभैये पूरा कर देते हैं. इसका परिणाम हत्याओं कि एक श्रंखला होती है. जहाँ किसी के सही गलत होने का कोई अर्थ नहीं होता.
इस विचारधारा को पनपने से रोकने का आसान तरीका है "सही शिक्षा" शिक्षा ही वह सबल हथियार है या हम कहें हमें एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था कि आवश्कता है जो लोगो को अनुशासित, उदार और मानवीय गुणों से युक्त कर सके और लोगों को सभी धर्मों, जातियों, भाषाओँ का सम्मान करना सिखाए. कुल मिलाकर हम एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था का निर्माण करे जो लोगों को निजी स्वार्थों से ऊपर उठा सके, हमारे राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप एक ऐसा पाठ्यक्रम हो जो पूरे देश में में समान रूप से लागू हो. उसका माध्यम, बोर्ड कुछ भी हो, वह पढाई चाहे निजी, सरकारी, मदरसा, विद्यामंदिर या अन्य स्कूलों में हो, वहां पढाई जाने वाली किताबें एक जैसी होनी चाहिए.
अपने देश में स्काउट और एन.सी.सी. कि भूमिका अधिक निर्णायक साबित हो सकती है. जिसे हम हर बच्चे के लिए अनिवार्य बना सकते हैं, जो बच्चों में देश, समाज, धर्म, पर्यावरण, यातायात के नियमों का बोध आसानी से विकसित कर सकता है. इसके माध्यम से बच्चे अन्य समुदाय, भाषाओँ, क्षेत्रों को अच्छे से समझ सकते हैं और उनके अन्दर स्वीकार्यता का भाव बढ़ता है और परायापन कम होने लगता है. तब एक अपनापन और लगाव बढ़ने लग जाता है. यही अपनापन एक दूसरे को जोड़ता है. जो आतंकवाद जैसी समस्याओं को ख़त्म करने का दीर्घगामी और सहज प्रयास हो सकता है. जहाँ हर किसी के लिए अपनेपन और स्वीकार्यता का भाव मौजूद हो न कि नफ़रत और तिरस्कार का.  
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