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सलाम-जापान

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नियागी,फुकुशिमा में सिर्फ तबाही ही नज़र आती है, सब कुछ कूड़े के ढेर में तब्दील हो गया है. सुनामी की चपेट में आए ए वो जगह हैं जो मनुष्य और प्रकृति के बीच हो रहे टकराव का क्रूर परिणाम हैं या हम कहें कि प्रकृति कैसे मनुष्य कि सारी तैयारियों को कुछ पलों में नेस्तनाबूत कर देती है कि सारे  सिद्धांत और खोज नाकाफी लगने लग जाते हैं | आदमी प्रकृति के आगे हर बार बौना साबित हो जाता है. जब भी ए घटनाएँ घटती है, हमारे सीखने और समझाने के लिए ढेर सारी चीजें छोड़ जाती हैं. अब यह हमारे ऊपर है कि हम अपने जीने और रहने के तरीके कैसे बनाते और अपनाते हैं. इन घटनाओं के बाद घटने वाली दुर्घटनाओं में एक बड़ी सीख हर बार यह तो मिलती ही है कि प्रकृति से हम जीत नहीं सकते. इसलिए टकराव का रास्ता छोड़ना होगा. अपने विकास, उपलब्धियों और खोजों को प्रकृति से जोड़ना आवश्वक होता जा रहा है, विकास में संघर्ष और असंतुलन को दूर करना सभी सरकारों और संगठनों कि पहली प्राथमिकता होनी चाहिए क्योकि बाज़ार और उसका मुनाफा तभी हासिल होगा जब लोग बचे होंगे. नहीं तो इस आत्मघाती विकास को प्राकृतिक घटनाएँ महाविनाश में बदल देंगी.