Posts

नशाखोरी

Image
अब क्या , कभी भी सामाजिक व्यवहार में नशे को रोक पाना नामुकिन ही रहा है , राज्य चाहे जितने कडे कानून बना ले , नशा करने वाले कोई न कोई तरीका निकाल ही लेते हैं । इसको रोकने के जितने कठोर कानून बनाए जाते है। उससे जुडे अपराधी और माफिआ उतने ही अधिक ताकतवर होते जाते है क्योंकि उनका मुनाफा और बढ़ जाता है। इसके शिकार ज्यादतर गरीब लोग होते हैं क्योकि तब ए लोग तेज़ , सस्ता और खतरनाक नशीले पदार्थों का सेवन करने को बाध्य होते हैं। नशा ऐसी आदत है कि यह किसी कानून के डर या उपदेश से नहीं रोका जा सकता है। तमाम राज्यों में शराब बंदी जैसे कानूनों के होने बवज़ूद ज़हरीले शराब से मरने की घटनाएँ इसी वज़ह से रोकी नहीं जा सक रही है। अब तो शराबखोरी प्रतिबंधित कराने के बजाय , कैसे पीना चाहिए कि आपको कम से कम नुकसान हो पर ज्यादा जोर होना चाहिए। अकेलापन , अवसाद आज़ की सच्चाई है। घर , कार्यस्थल और प्रार्थना स्थलों को अपनी भूमिका ठीक करनी होगी। वैसे किसी की भूमिका कम नहीं है परंतु घर का परिवेश सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता जो सारी मुसीबतों से लडने की ताकत देता है और यह लडने का आत्मबल ही तमाम बुराइयों से दूर रखता है  सच त

right to coffin

Image
                        कफ़न का अधिकार  किसी मृतक को अंतिम विदाई देने का हर मज़हब ने एक तरीका बनाया है। उसका मकसद मृतक को अंततः सम्मान से रुखसत करना है। चाहे वह सैनिक हो या फिर आम आदमी, उस देह को किसी झण्डे से ढका जाय या उस पर फूलों की पर्त बिछा दी जाय, नहीं तो किसी मामूली कपड़े का ही कफ़न हो। उस देह को हम अपने-अपने तरीके से विदा करते हैं। चलो आज उसका सफ़र ख़त्म हुआ और हम उस देह को विदा करने चल पड़ते हैं। चाहे वह श्मशान की आग हो या कब्रिस्तान की मिट्टी। इन जगहों पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार नहीं होता। शायद इस वज़ह से भी आमतौर पर सभी को आग और मिट्टी मिल ही जाती है। वैसे जब हम किसी मृत देह को लेकर कुछ दूर चलते हैं तो वास्तव में यह यात्रा हम अपने देह की सीमा का स्मरण करने के लिए करते हैं। देह के फ़ना (ख़त्म) होने का तरीका सभी तरह के भेद ख़त्म कर देता है। अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा सबके देह की एक ही हालत होती है। खुशनसीब हुए तो यह मिट्टी या आग नसीब होती है। कोई राख बन के मिट्टी में मिल जाता है तो कुछ लोग थोड़ा सा ज्यादा वक़्त लेते हैं इस मिट्टी की आगोशी में  पहुँचने के लिए।