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Manusmriti

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मनुस्मृति के विषय में  विश्व के विद्वानों का मत °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° C/P- यह social media से प्राप्त ज्ञान है। ऐसे तमाम रोचक जानकारियों को एक जगह सहेज लेने में कोई हर्ज नहीं है।                  ********** मनु प्रतिष्ठा स्थानीय, राष्ट्रिय नही विश्व व्यापी है। विश्व के सभी विद्वानों ने मनु की प्रशंसा की है इस प्रकार मनु एक महान और व्यापक प्रभाव बाले महापुरुष है, जिनका भारत ही नही विश्व के अधिकांश साहित्य, इतिहास, वंशपरम्परा, संस्कृति, सभ्यता आदि से गहरा सम्बन्ध है। मनु के सम्बंधित मान्यताये विश्व के विद्वान लेखको में स्थापित और मान्यता प्राप्त है। 1.   ‘A history of Sanskrit Literature’ में संस्कृत साहित्य के समीक्षक यूरोपीय विद्वान लेखक ए. बी. कीथ मनुस्मृति के विषय में लिखते है की यह किसी समुदाय विशेष के लिए नही अपित राष्ट्र के समस्त वर्गों के लिए समानरूप से मार्गदर्शक है। इसका महत्व ‘ला बुक’ और धर्मशास्त्र दोनों तरह है। इसमें जीवन की अभिव्यक्ति और राष्ट्र की अंतरात्मा साकार हो उठी है। वह कहते है – “The Manusmriti however, is not merely important as

राज्यों का पुनर्गठन

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राज्यों के पुनर्गठन की आवश्यकता- जैसा कि सब लोग अवगत हैं कि उ०प्र० आबादी की दृष्टि से पूरी दुनिया में एक बड़ी इकाई है और इसके विकसित हुए बिना भारत अपने लक्ष्यों को नहीं प्राप्त कर सकता इसके लिए   इसे तीन भागों में बाँटा जाना अति आवश्यक है। जिससे प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। जो कुछ इस प्रकार हो सकता है- (1) उ० प्र०- इसमें केन्द्रीय संभाग के 10 जिले और पूर्वी संभाग के 28 जिले मिलाकर यानी कि 38 जिलों का प्रदेश हो जिसके विकास के लिए- कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, बनारस और इलाहाबाद का एक पंचभुज हो सकता है, जो इस प्रदेश के विकास के लिए इंजन का काम करेंगे। (2) रूहेलखंड - इसमें पश्चिमी संभाग के 30 जिलों से बनाया जाना चाहिए। (3) बुंदेलखंड- इस संभाग में UP के 7 जिले आते है और तकरीबन इतने ही जिले MP के आते हैं। यह इलाका हमारे काफी पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। ऐसे में इसके समग्र विकास के लिए एक राज्य के रूप इसका अस्तित्व अति आवश्यक है।     वैसे और भी प्रदेश हैं जो उस हाथी की तरह हैं जिसके सभी अंग सही ढंग से काम नहीं कर रहे है और उस राज्य के अंदर ही घोर विषमता है ऐसे मे