Posts

Showing posts from May, 2018

अहं ब्रह्मास्मि

Image
विमर्श जाति विमर्श में गाली गालौज एक अनिवार्य शर्त जैसा नजर आता है और ज्यादातर लोग किसी वाद या फिर राजनीतिक दल के समर्थक, विरोधी होने का कारण उनका अपना जाति बोध है। हलाँकि वो खुद को जाति वाद और ब्राह्मण वाद के सबसे बड़े विरीधी होते हैं। पर खुदकी जाति को लेकर भावुक हो जाते हैं और अपने जातीय, धार्मिक या दलीय चेतना के बोध में उन्हें कोई खोट नजर नहीं आता। खैर आगे बढ़ते हैं- वास्तव में जिससे संघर्ष करने की बात कही जाती है वह ब्राह्मणवादी मानसिकता है यानि कि वर्चस्ववाद के खिलाफ, लेकिन यह बात कहते कहते जो विमर्श होता है वह जाति विमर्श  के रूप में सामने आता है जिसमें जातियों का विरोध, समर्थन शुरू हो जाता है, फिलहाल आज की राजनीति पर गौर करिए तो हर पार्टी और संगठन एक तरह की ब्राह्मणवादी मानसिकता से ग्रसित है और उसका सर्वोच्च नेतृत्व कैसा है, क्या वह किसी और को कुछ और बनने की गुंजाइश दे रहा है? तो वह ठीक ब्राह्मणों जैसा ही है जिसमें किसी संगठन को कुछ खास लोग नियंत्रित कर रहे हैं, जो संगठन का अगुआ यानी ब्राह्मण है और यही बात हमेशा से होती आयी है। जब कबीर और मीरा जैसे ज्ञानियों से किसी प...

Dear, Facebookie

Image
प्रिय,         फेसबुकियों और ह्वाट्स ऐपियों. जैसा कि आप सभी महान और विशिष्ट जन शायद! यह जानते हैं कि इस समय देश दो तरह के लोगों में विभाजित है- पहला है मोदी समर्थक और दूसरा है मोदी विरोधी।       लोकतंत्र की रक्षा में लगे social media के सैनिक आमतौर पर मोदी विरोधी गैंग के होते हैं जिनका व्यवहार एकदम भक्तों जैसा ही होता है। बस उनका देवता कोई और होता है जो हर बात की व्याख्या बिना जाति, धर्म वाले ऐंगल के कर ही नहीं सकते और जिस बात के लिए भक्तों की आलोचना करते हैं, वह भी उसी बिमारी के शिकार हैं। वह खुद को भी उतने ही कट्टर, मूर्ख, अशिष्ट साबित करते रहते हैं। आप ऐसे किसी भी profile को देख लीजिए वो कहीं भी किसी को जोड़ने की बात नहीं करते, वो सिर्फ़ उकसाते हैं, कि बदला लो, मारो .. सामने वाला कितना बुरा है और हम लोग कितने सीधे, साधे, बेचारे हैं। हमारी समस्या का कारण हम तो बिलकुल भी नहीं हैं... सारा दोष वही पाकिस्तान का है और वो भी यही कहते हैं। यही वाली व्याख्या हर वक्त चलती रहती है और किसी वास्तविक समस्या और उसके समाधान की कोई चर्चा नहीं होती। ...

मानस से

Image
रामचरित मानस  वैसे आप अपनी समझ और जरूरत के हिसाब से कुछ भी समझने के लिए आजाद हैं। अब "रामचरितमानस" की इसी चौपाई को लीजिए ... *"ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी"* १. ढोल (वाद्य यंत्र)- ढोल को हमारे सनातन संस्कृति में उत्साह का प्रतीक माना गया है इसके थाप से हमें नयी ऊर्जा मिलती है. इससे जीवन स्फूर्तिमय, उत्साहमय हो जाता है. आज भी विभिन्न अवसरों पर ढोलक बजाया जाता है. इसे शुभ माना जाता है. २. गंवार {गांव के रहने वाले लोग )- गाँव के लोग छल-प्रपंच से दूर अत्यंत ही सरल स्वभाव के होते हैं. गाँव के लोग अत्यधिक परिश्रमी होते है जो अपने परिश्रम से धरती माता की कोख अन्न इत्यादि पैदा कर संसार में सबका भूख मिटाते हैं. आदि-अनादि काल से ही अनेकों देवी-देवता और संत महर्षि गण गाँव में ही उत्पन्न होते रहे हैं. सरलता में ही ईश्वर का वास होता है. ३. शुद्र (जो अपने कर्म व सेवाभाव से इस लोक की दरिद्रता को दूर करे)- सेवा व कर्म से ही हमारे जीवन व दूसरों के जीवन का भी उद्धार होता है और जो इस सेवा व कर्म भाव से लोक का कल्याण करे वही ईश्वर का प्रिय पात...