To intellectuals
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आदरणीय बुद्धिजीवियों, निश्चित रूप से आप एक बड़ी brand हैं (क्योंकि बुद्धिजीवी महिला है) और आपको लगता है कि आप जितना कह रही हैं उतना ही सही है और बड़ा नाम होने का यही फायदा है कि आपकी किताब और लेख आसानी से बिकता रहता है और बकवास करने पर ज्यादा popular होता है। आपके ऐसे गुणों से सम्पन्न होने की वजह से मीडिया कवरेज की guarantee तो हो ही जाती है। अभी इनका random साक्षात्कार किसी news channel पर देख रहा था। इसके बाद psephologist आदरणीय महानुभाव जी का भारतीय परंपरा वाला quote जो स्वामी विवेकानंद जी का का उद्धरण था। आपकी बेहतरीन बातें सच में सपनों के सच होने का यकीन पैदा करती हैं। पर आप लोगों की वैचारिक परम्परा से हमारे समाज में क्या वास्तव में कोई बदलाव आया, हम आज तक अपना समाजवाद क्यों नहीं ढूँढ़ पाए और सोचिये भारत जैसे जटिल सामाजिक ताने-बाने में उधार का विचार कब तक सांसे ले सकता है। उसका दम धीरे धीरे घुट रहा है, इस बात को स्वीकार कर लीजिए। हमारे यहाँ का वामपंथी समाजवाद हकीकत से न जाने कितना दूर है और वह किताबों, मीडिया और चंद लोगों के बीच सिमट कर रह गया है, जहाँ सर्वहारा के लिए