RSS
RSS प्रमुख मोहन भागवत जी ने विज्ञान भवन में जिस विद्वता से अपनी बात रखी वह निश्चित रूप से सराहनीय है। इस मंच के माध्यम से उन्होंने एक तरह से संघ को लेकर जो दूसरी तमाम दूसरी धारणाएं थी, उनका निराकरण करने का सार्थक प्रयास किया और अपने पक्ष को बड़ी शालीनता और विश्वास से लोगों के समक्ष रखा। हमें लगता है दूसरे संगठनों को भी इसी तरह मंच पर आकर अपनी बात कहनी चाहिए और अपने मकसद, तौर-तरीकों, आय, नीतियों और दर्शन से सभी को परिचित कराना चाहिए कि आपकी समाज में आवश्यकता और प्रासंगिकता किस बात के लिए है। हम सबको अपनी राय बनाने का पूरा हक है कि हम किस तरह की विचारधारा को स्वीकार करें, पर दूसरों को सुनने की आदत तो डालनी ही पड़ेगी क्योंकि सामने वाले का पक्ष, बिना सुने, जाने, उसके बारे में राय बनाना किस भी आधार पर सही नहीं कहा जा सकता। हम आमतौर पर अपने जातीय, धार्मिक बोध और परिवार के संस्कार (training) के कारण किसी खास बात को सही गलत मानने की एक पूर्व निर्धारित प्रक्रिया जैसे किसी computer की programming में होता है, कुछ उसी तरह का व्यवहार करने लग जाते हैं और यह हमारे सोचने,