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RSS

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RSS प्रमुख मोहन भागवत जी ने विज्ञान भवन में जिस विद्वता से अपनी बात रखी वह निश्चित रूप से सराहनीय है। इस मंच के माध्यम से उन्होंने एक तरह से संघ को लेकर जो दूसरी तमाम दूसरी धारणाएं थी, उनका निराकरण करने का सार्थक प्रयास किया और अपने पक्ष को बड़ी शालीनता और विश्वास से लोगों के समक्ष रखा।       हमें लगता है दूसरे संगठनों को भी इसी तरह मंच पर आकर अपनी बात कहनी चाहिए और अपने मकसद, तौर-तरीकों, आय, नीतियों और दर्शन से सभी को परिचित कराना चाहिए कि आपकी समाज में आवश्यकता और प्रासंगिकता किस बात के लिए है।    हम सबको अपनी राय बनाने का पूरा हक है कि हम किस तरह की विचारधारा को स्वीकार करें, पर दूसरों को सुनने की आदत तो डालनी ही पड़ेगी क्योंकि सामने वाले का पक्ष, बिना सुने, जाने, उसके बारे में राय बनाना किस भी आधार पर सही नहीं कहा जा सकता।       हम आमतौर पर अपने जातीय, धार्मिक बोध और परिवार के संस्कार (training) के कारण किसी खास बात को सही गलत मानने की एक पूर्व निर्धारित प्रक्रिया जैसे किसी computer की programming में होता है, कुछ उ...

आयुर्वेदिक दोहे

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∥ आयुर्वेदिक दोहे ∥  (1)  दही मथें माखन मिले,          केसर संग मिलाय, होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय.. (2)  बहती यदि जो नाक हो,            बहुत बुरा हो हाल, यूकेलिप्टिस तेल लें, सूंघें डाल रुमाल.. (3)  अजवाइन को पीसिये ,            गाढ़ा लेप लगाय, चर्म रोग सब दूर हो, तन कंचन बन जाय.. (4)  अजवाइन को पीस लें ,         नीबू संग मिलाय, फोड़ा-फुंसी दूर हों, सभी बला टल जाय.. (5)  अजवाइन-गुड़ खाइए,         तभी बने कुछ काम, पित्त रोग में लाभ हो, पायेंगे आराम.. (6)  ठण्ड लगे जब आपको,              सर्दी से बेहाल, नीबू मधु के साथ में, अदरक पियें उबाल.. (7)  अदरक का रस लीजिए.         ...

we the Indian

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            हमारे लोग जितनी ऊर्जा दूसरे जाति, धर्म और राजनीतिक दल के लोगों को गलत साबित करने में लगाते हैं। उसका थोड़ा सा हिस्सा यदि अपने कथित समाज के लोगों के बीच सिर्फ शिक्षा प्राप्त करने की प्रेरणा देने में लगा दें तो सारा मंजर बदल जाएगा।         पर इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि पीछे जात, धर्म.. का झंडा लेकर चलने वाले नहीं मिलेंगे। तो समझदारी इसी में है कि ज्यादा से ज्यादा लोग जाहिल रहें। जो जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगाएं और अपने कथित नेता की बात को अंतिम सत्य की तरह स्वीकार करें। तो बोलिए जातिवाद... सम्प्रदायवाद...... बाकी अपनी जात.. धर्म.. जैसी सुविधा हो जोड़ लीजिए।         आजादी के सही मायने यही है कि हम कोई जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे.... जबकि अधिकार सभी चाहिए... जैसे चोरी करने, भ्रष्टाचार का, सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने का, गंदगी करने का, कहीं भी जाम लगाने, धक्का मुक्की करना का। ए सब हमारा राष्ट्रीय चरित्र, जैसा बन गया है।       अभी आगे भी है, इसके बाद भी गर्व क...