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Citizenship

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नागरिकता  नागरिकता हमारे यहाँ संविधान में सिर्फ कागजी दस्तावेज नहीं है बल्कि यह समस्त भारतीयों को प्राप्त एक स्वाभाविक अधिकार है। जो राजनीतिक दलों या फिर व्यक्तियों के बयानबाजी से प्रभावित नहीं होती क्योंकि यह अधिकार पूरी तरह संविधान और कानून से संरक्षित है।      राजनीति की अपनी मजबूरियां हैं। वैसे भी दलीय सरकारों का बनना लोकतंत्र की एक स्वभाविक प्रक्रिया है। इसी क्रम में राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए सभी राजनीतिक दल और महत्वाकांक्षी नेता नये-नये शगूफा गढ़ते रहते हैं और उसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसका कितना, विरोध होता है। यह विरोध ही उसके पक्ष में खास तरह का राजनीतिक ध्रुवीकरण करवाता है।        चलिए फिलहाल नागरिकता पर ही बात करते हैं तो आपको मलूम होना चाहिए कि आधार कार्ड, राशनकार्ड... ए नागरिकता का प्रमाण नहीं माने जाते तो इसका मतलब ए नहीं है कि इन documents की कोई आवश्यकता नहीं है? बल्कि यह व्यक्ति के पहचाने जाने की एक विकेंद्रित व्यवस्था है कि आपको अलग-अलग कार्यों के लिए फलां-फलां document चाहिए तो इसका फायदा यह है कि व्यक्ति के पहचान का अधिकार किसी एक जगह के

Jai ho

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अपनी भी जय हो,  तुम्हारी भी जय हो,   चलिए एक reality check करते हैं अपने phone के social network वाले app खोलिए और किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि आप अपनी जाति और धार्मिक बोध वाले कितने संगठनों के group में हैं। मनोरंजन के लिए एकाध है तो कोई बात नहीं।      परंतु.. यदि आपके विश्वसनीय ज्ञान का स्रोत इन्हीं का अध्ययन है तो समझ लीजिए आपका कल्याण हो गया। ऊपर से किसी राजनीतिक दल वाला  group है तो.. आपके लिए वैधानिक चेतावनी... अपने को मानसिक विकारों से बचाने के लिए ऐसे group से तुरंत बाहर निकालिए और इसका आसान तरीका यही है कि अपने जाति और धर्म से इतर मित्र बनाइए और खूब हंसिए ...             और ऐसा करने का मन न कर रहा हो तो दूसरी पार्टी के कार्यकर्ताओं या विचारधारा के अंधभक्तों से उलझिए मत क्योंकि आप भी उन्हीं में से एक हैं। ऐसे में अपने देवता के लिए मंगलगान करना, आप ही की तरह उसका भी पुनीत कर्तव्य है। तो बोलो.. जय...    (अरे अपना-अपना नारा नहीं लगाना क्या?)    अब बात थोड़ी आगे बढ़ाते हैं और सोचिए हममें से ज्यादातर लोग किसी भी बात का समर्थन विरोध क्यों कर रहे हैं। इस मनोवैज्ञान

It's politics

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दरअसल इस समय जो पूरा विमर्श किसी भी मुद्दे को लेकर चल रहा है उसमें मोदीजी की anti muslim image और बेचारा मुसलमान वाला concept खेला जा रहा है और अनजाने में यह विरोध मोदी के पक्ष में जा रहा है (क्योंकि अल्पसंख्यक वोट के चक्कर में बहुसंख्यक वोट से हाथ धोना पड़ेगा। इसी वजह से बहनजी और दूसरे तमाम लोग चुप हैं) जबकि हमारे वामपंथी और कांग्रेसी इसे अपने अस्तित्व की लड़ाई मान रहे हैं तो इसका मूल कारण इनका खोया हुआ आत्मविश्वास है जहाँ इन्होंने मोदी को अजेय मान लिया है। विगत चुनावों में इन दलों के हाव-भाव से यह बात आसानी से समझी जा सकती है। जबकि हमारे आम लोग किसी को हौवा नहीं मानते और मात्र एक वोट से सरकारें बदल देते हैं।      हमारे प्रधानमंत्री जी की ताकत उनके विरोधियों की उनसे नफरत है क्योंकि जब विरोधी लगातार विरोध करते हैं तो आम लोगों को लगने लग जाता है कि आदमी सही है और काम कर रहा है इसलिए इतना विरोध हो रहा है। अब CAA के विरोध को देखा जाय तो यह मुस्लिम विरोध बनकर रह गया है और भाजपा विरोधी दलों और संगठनों को स्वंय का अस्तित्व बचाने का यह एक अंतिम रास्ता जैसा लग रहा है और इसको एक इस्लामिक