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Saadat Hasan Manto | मंटो की कुछ कहानियाँ

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Pakistani writer बेख़बरी का फ़ायदा लबलबी दबी – पिस्तौल से झुँझलाकर गोली बाहर निकली. खिड़की में से बाहर झाँकनेवाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया. लबलबी थोड़ी देर बाद फ़िर दबी – दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली. सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में हल होकर बहने लगा. लबलबी तीसरी बार दबी – निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज़्ब हो गई. चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर हो गई. पाँचवी और छठी गोली बेकार गई, कोई हलाक हुआ और न ज़ख़्मी. गोलियाँ चलाने वाला भिन्ना गया. दफ़्तन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया. गोलियाँ चलानेवाले ने पिस्तौल का मुहँ उसकी तरफ़ मोड़ा. उसके साथी ने कहा : “यह क्या करते हो?” गोलियां चलानेवाले ने पूछा : “क्यों?” “गोलियां तो ख़त्म हो चुकी हैं!” “तुम ख़ामोश रहो....इतने-से बच्चे को क्या मालूम?” करामात लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए. लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे, कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से...

Reservation politics | आरक्षण नामा

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aarakshan nama आरक्षण की राजनीति एक बार फिर शुरू हो गई है. जहाँ सही गलत का कोई अर्थ नहीं है. यहाँ सिर्फ राजनैतिक नफा-नुकसान का खेल चल रहा है.हमारे राजनैतिक दलों ने अपना आधार जातीय और धार्मिक समीकरणों पर खड़ा कर रखा है. ऐसे में इनसे किसी नेक नियति की उम्मीद करना बेमानी होगी. अंग्रेजों की बांटों और राज करो की नीति आज भी उतनी कारगर है और हमारे राजनैतिक दल इसका पूरा अनुसरण कर रहें हैं. इनका मकसद सिर्फ सत्ता पाना है और अपने वोट बैंक को बनाए रखना है. हम राजनैतिक दलों और व्यक्तियों की गुंडागर्दी भी इसी अर्थ देख और समझ सकते हैं. जहाँ राजनीति एक व्यवसाय बन गयी है और व्यवसाय चलाने के सारे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं.        आज भी अनुसूचित जातियों और जनजातियों की जो सामाजिक,आर्थिक स्थिति है, वह किसी भी प्रगतिशील समाज के लिए शर्मनाक है. अब भी किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति को शहरों में भी  आसानी से कमरा नहीं मिल पाता और जिस तरह के जातीय पूर्वाग्रह से पढ़ा-लिखा वर्ग भी ग्रसित है, वह वास्तव में शिक्षित होने का अर्थ ही खो देता है. गावों की तो बात ही छोडिए. अभी हमारे एक मित्र जो...