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Etiquette with netiquette

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आनलाइन शिष्टाचार  अब शिष्टाचार और नैतिकता का social network की वजह से, थोड़ा सा विस्तार करने की जरूरत है क्योंकि हंसी, मजाक और व्यंग्य जैसी चीजें, ज्यादातर लोगों की समझ में नही आती और जातीय, धार्मिक आधार पर, कई लोग जरूरत से ज्यादा भावुक और जागरूक होने लग जाते हैं। पूरी बात और संदर्भ को जाने बिना, गाली गलौज शुरू हो जाती है। आइए ऐसे ही कुछ समझदार नेटियों (who always available on line)  की चर्चा करते हैं-        1- किसी भी पोस्ट को फटा फट like करने वाले, भले उनकी समझ में कुछ न आए और उनका उससे दूर दूर तक कोई वास्ता न हो और अगर पोस्ट किसी महिला की हुई तो उसमें comment जरूर करेंगे और बेचारे hot के अलावा कोई शब्द जानते ही नहीं। जबकि इन महापुरुष का यहाँ, कहीं से कोई वास्ता नहीं होता।        2- इसके बाद C/P और share करने वाले होते हैं। वो उस फोटो, video की सच्चाई बिलकुल भी नहीं जानना चाहते कि किसका, कब का और कहाँ का है? फिर उस व्यक्ति की खासतौर पर महिला की अपनी निजता(privacy) होगी, जिसका आपको ध्यान रखना है। हो सकता कोई अपराध...

media ka agenda

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मीडिया गीरी हमारा मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग, जिस निष्पक्षता, उदारता की माँग कर रहा या उसके लिए संघर्ष करता दिखाई दे रहा है, क्या वास्तव में वह खुद उदार और निष्पक्ष है। तो जवाब??? वो खुद अपने संस्थान को देख लें, किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं है। खैर सबको पता है, आपका भी अपना एक एजेंडा है। वास्तव में प्रेस का काम जनता को सरकार से बचाना है और यह काम सरकार की आलोचना से ही शुरू होती है। जो सत्ता में बैठे लोगों को एहसास कराती है कि यह लोकतंत्र है और आप मालिक नहीं हैं। लेकिन प्रेस की जगह अब मीडिया ने ले लिया है, सब कुछ live, trp यानी बाजार के हाथ में है। यह एक तरह का live, entertainment है और इस तरह का वाहियात मनोरंजन परोसने वालों को प्रेस नहीं कहा जाना चाहिए।      इस समय मीडिया में घटनाओं को खास नजरिए से देखने और बताने का जबरदस्त मुकाबला हो रहा है। जिसमें सब जगह खतरा और डर का जिक्र हो रहा है। सबसे ज्यादा पड़ोसी मुल्क से देश को खतरा है। अब मजेदार युद्ध शुरू होने वाला है, बस एक ओवर में सब निपट जाएगा... हद हो गयी। इसके बाद दलित, अल्पसंख्यक, जो एकदम बेचारे सीधे-साधे सदियों ...