मीडिया गीरी


हमारा मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग, जिस निष्पक्षता, उदारता की माँग कर रहा या उसके लिए संघर्ष करता दिखाई दे रहा है, क्या वास्तव में वह खुद उदार और निष्पक्ष है। तो जवाब??? वो खुद अपने संस्थान को देख लें, किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं है। खैर सबको पता है, आपका भी अपना एक एजेंडा है। वास्तव में प्रेस का काम जनता को सरकार से बचाना है और यह काम सरकार की आलोचना से ही शुरू होती है। जो सत्ता में बैठे लोगों को एहसास कराती है कि यह लोकतंत्र है और आप मालिक नहीं हैं। लेकिन प्रेस की जगह अब मीडिया ने ले लिया है, सब कुछ live, trp यानी बाजार के हाथ में है। यह एक तरह का live, entertainment है और इस तरह का वाहियात मनोरंजन परोसने वालों को प्रेस नहीं कहा जाना चाहिए।
     इस समय मीडिया में घटनाओं को खास नजरिए से देखने और बताने का जबरदस्त मुकाबला हो रहा है। जिसमें सब जगह खतरा और डर का जिक्र हो रहा है। सबसे ज्यादा पड़ोसी मुल्क से देश को खतरा है। अब मजेदार युद्ध शुरू होने वाला है, बस एक ओवर में सब निपट जाएगा... हद हो गयी। इसके बाद दलित, अल्पसंख्यक, जो एकदम बेचारे सीधे-साधे सदियों से सताए हुए हैं, इनको पसंद का खाना खाने से रोका जा रहा है... समझ में नहीं आता पूरे देश में वो कौन से लोग हैं जिनके पास सिर्फ यही काम है कि वो हर जगह पहरेदारी में लगे रहे, वह भी अवैतनिक। अरे हम 125 करोड़ से अधिक लोगों से मिलकर बनते हैं। जिसमें हर तरह की विचार धारा के लोग हैं और कई दशकों के शासन के बाद भी कोई एक विचार, पंथ, धर्म या कितना महान या बड़ा शासक रहा हो भारत की विविधता या भारतियता को किसी एक खाँचे में बाँध नहीं पाया क्यों कि हमारा जो जनमानस है वह बड़ा ही मस्त, बेपरवाह टाइप है। जो किसी को गम्भीरता से नहीं लेता, वह शोर भी चुपचाप सुनता रहता है, तो लोगों को लगने लगता है कि सब मुझसे सहमत हैं। जबकि वह आकलन कर रहा होता है। सोचने कि बात है कि तमाम विशेषज्ञ चुनावों का क्या-क्या विश्लेषण करते रहते हैं और गाँव के कथित अशिक्षित, आम लोग सरकारें बदल देते है, बिना किसी शोर शराबे के। ऐसे में  सिर्फ एक दूसरे पर भरोसा रखने की जरूरत है, चंद अपराधियों की वारदातों को किसी भी समुदाय से न जोड़े। हाँ अपने "भारत" और "भारतीय" होने पर भरोसा रखिए। अति मनोरंजन से भी कुछ दिनों में ऊब जाते है और जब उत्साह बहुत ज्यादा होता है तो वह उतनी ही जल्दी खत्म होता है।
rajhansraju

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