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OSHO

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झूठ अनेक, मगर सत्य! सिर्फ एक सत्य से दोस्ती कठिन  जीवन के हर आयाम में सत्य के सामने झुकना मुश्किल है और झूठ के सामने झुकना सरल। ऐसी उलटबांसी क्यों है? उलटबांसी जरा भी नहीं है; सिर्फ तुम्हारे विचार में जरा सी चूक हो गई है, इसलिए उलटबांसी दिखाई पड़ रही है। चूक बहुत छोटी है, शायद एकदम से दिखाई न पड़े, थोड़ी खुर्दबीन लेकर देखोगे तो दिखाई पड़ेगी। सत्य के सामने झुकना पड़ता है; झूठ के सामने झुकना ही नहीं पड़ता, झूठ तुम्हारे सामने झुकता है और इसीलिए झूठ से दोस्ती आसान है, क्योंकि झूठ तुम्हारे सामने झुकता है और सत्य से दोस्ती कठिन है, क्योंकि सत्य के सामने तुम्हें झुकना पड़ता है। अंधा अंधेरे से दोस्ती कर सकता है, क्योंकि अंधेरा आंखें चाहिए ऐसी मांग नहीं करता, लेकिन अंधा प्रकाश से दोस्ती नहीं कर सकता है, क्योंकि प्रकाश से दोस्ती के लिए पहले तो आंखें चाहिए। अंधा अमावस की रात के साथ तो तल्लीन हो सकता है, मगर पूर्णिमा की रात के साथ बेचैन हो जाएगा। पूर्णिमा की रात उसे उसके अंधेपन की याद दिलाएगी; अमावस की रात अंधेपन को भुलाएगी, याद नहीं दिलाएगी। मिठास के आदी हो गए तुम कहते हो, 'जीवन ...

Freedom : आजादी के मायने

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आजादी के 70 वर्ष: युवा पीढ़ी के लिए देश की तरक्‍की की कल्‍पना करना काफी मुश्किल Tue, 15 Aug 2017 12:48 PM (IST) नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। आज के हिंदुस्तान की नौजवान पीढ़ी के लिए यह कल्पना करना कठिन है कि आजादी के बाद सत्तर साल में देश ने कितनी तरक्की की है। जिन लोगों को ‘आधी रात की संतान’ कहा जाता है वह भी बुढ़ा चुके हैं और उनकी यादें भी धुंधलाने लगी हैं। जब हम स्वाधीनता की सालगिरह मनाने की तैयारी करते हैं तो कुछ युवा यह पूछने लगे हैं कि आखिर इतना जोश-ओ-खरोश किस लिए? रोजमर्रा की जिंदगी की मुसीबतों से परेशान तबका शिकायतों से ही फुर्सत नहीं पाता। उसे तिरंगा फहराना और लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री का राष्ट्र को संबोधित करना एक रस्म अदायगी भर महसूस होता है। हमारी समझ में यह सोच ठीक नहीं। पीछे पलट कर देखें तो इस बात को नकार नहीं सकते कि हमने एक लंबा कठिन सफर तय किया है और बहुत कुछ हासिल किया है जिसका जश्न मनाना चाहिए। 1947 में औसत भारतीय सिर्फ सत्ताईस साल जिंदा रहने की अपेक्षा कर सकता था। आज वह 67-68 वर्ष की दहलीज छूने लगा है। प्लेग, चेचक, पोलियो जैसी महामारियों का उन्मूल...